नई दिल्ली: अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री और सचिन पायलट राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है। इस दौरान उनके साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई पक्ष पर विपक्ष के नेता मौजूद थे।

हाल में हुए पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार बना रही है। अशोक गहलोत को राजस्थान, कमलनाथ को मध्य प्रदेश और भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ की कमान मिली है।

17 दिसंबर 2018 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। अशोक गहलोत 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने और 2008 में अशोक गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। उप मुख्यमंत्री बने पायलट फिलहाल राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। वह लोकसभा सदस्य और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वह अपने जमाने में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत राजेश पायलट के पुत्र हैं।

राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पद के चयन को लेकर लंबी खींचतान हुई। गहलोत और पायलट दोनों इस पद की दौड़ में शामिल थे। मैराथन बैठकों और गहन मंथन के बाद गत 14 दिसंबर को कांग्रेस अध्यक्ष ने गहलोत को मुख्यमंत्री और पायलट को उप मुख्यमंत्री नामित करने का फैसला किया।

राजस्थान में हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में लोकतंत्र की खूबसूरती के कई दिलचस्प नजारे देखने को मिले। जहां 278 करोड़ रूपए की घोषित आय वाली सबसे धनी उम्मीदवार और मौजूदा विधायक इस बार वोटों के मामले में कंगाल साबित हुईं वहीं एक उम्मीदवार अपने अलावा उन छह लोगों को ढूंढ रहा है, जिन्होंने उसे वोट दिया।

दरअसल उसे सबसे कम सिर्फ सात वोट ही मिले हैं। इन विधानसभा चुनाव में सबसे अमीर प्रत्याशी जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल (घोषित आय 287 करोड़ रुपये) थीं। पिछली विधानसभा में सबसे धनी विधायक रही कामिनी गंगानगर सीट पर इस बार अपनी जमानत तक नहीं बचा सकीं। केवल 4887 मतों के साथ वे छठे स्थान पर रहीं।

रोचक बात यह है कि गंगानगर की चर्चित सीट पर निर्दलीय राजकुमार गौड़ विजयी रहे जो कांग्रेस के बागी हैं। विधानसभा चुनाव में कम से कम दो प्रत्याशी ऐसे रहे जिन्हें दस या दस से भी कम मत मिले। इनमें जयपुर में किशनपोल सीट पर निर्दलीय शमीम खान को सात और सादिक को केवल 10 वोट मिले।

राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से 199 सीटों पर सात दिसंबर को मतदान हुआ। कुल 2274 प्रत्याशी मैदान में थे जिनमें से 1822 की जमानत जब्त हो गयी। आंकड़ों के नजरिए से देखा जाए तो 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 88 राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशी उतारे। इनमें भाजपा ने सभी 199 सीटों पर, कांग्रेस ने 194, बसपा ने 189 और आप ने 141 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए।

इसके अलावा 830 निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपना चुनावी भाग्य आजमाया। निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रदर्शन इस बार काफी अच्छा कहा जा सकता है क्योंकि 13 सीटों पर न केवल निर्दलीय उम्मीदवार जीते बल्कि बामनवास, करणपुर, मेड़ता,रतनगढ, पाली, थानागाजी और सिवाना सहित दस सीटों पर वे दूसरे नंबर पर रहे।

यानी कुल मिलाकर साढे़ नौ प्रतिशत मतों के साथ उन्होंने लगभग 25 सीटों पर परिणाम को सीधे सीधे प्रभावित किया। राज्य की थानागाजी सीट पर तो मुख्य मुकाबला ही दो निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच रहा जिसमें कांति प्रसाद जीते और हेम सिंह दूसरे स्थान पर रहे। इसी तरह भाजपा ने इस बार दो धर्मगुरुओं को टिकट दिया था।

सिरवियों के धर्मगुरू और वसुंधरा राजे सरकार में गौ पालन मंत्री रहे ओटाराम देवासी सिरोही में कांग्रेस के बागी संयम लोढ़ा से हार गए। भाजपा ने पोकरण सीट पर विख्यात तारातरा मठ के महंत प्रतापुरी को टिकट दिया था। यहां कांग्रेस के शाले मोहम्मद जीते।