लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान द्वारा हिन्दी दिवस पर आयोजित ‘हिन्दी सप्ताह’ का उद्घाटन किया। राज्यपाल ने इस अवसर पर संस्थान द्वारा हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक ‘विषविज्ञान अनुसंधान के नये आयाम’ तथा स्मारिका ‘विषविज्ञान संदेश’ एवं ‘खाद्य एवं उपभोक्ता सुरक्षा समाधान (फोकस)’ के साथ पत्रक पीने योग्य शुद्ध पानी ‘ओनीर’ का विमोचन एवं वेबसाइट ‘फोकस’ का उद्घाटन भी किया। कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक प्रो0 आलोक धवन, संस्थान की मुख्य वैज्ञानिक डाॅ0 पूनम कक्कड, डाॅ0 देवप्रतिम कार चैधरी, हिन्दी अधिकारी श्री चन्द्रमोहन तिवारी सहित संस्थान के अन्य वैज्ञानिक एवं कर्मचारीगण भी उपस्थित थे।

राज्यपाल ने हिन्दी दिवस के इतिहास पर प्रकाश डालते हुये बताया कि 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया था कि हिन्दी देश की राजभाषा होगी। सरकारी संस्थानों में हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग एवं प्रचार-प्रसार करना चाहिए। देश को स्वतंत्रता दिलाने में हिन्दी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दुनिया की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी का तीसरा स्थान है। 112 करोड़ अंग्रेजी, 110 करोड़ चीनी भाषा एवं 70 करोड़ लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं। अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग करने वाले जो हिन्दी जानते हैं, की संख्या को जोड़ दिया जाये तो हिन्दी का प्रयोग करने वालों की संख्या 100 करोड़ से अधिक हो जायेगी। शुद्ध हिन्दी के प्रयोग पर भी विचार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरल हिन्दी के उपयोग से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाई जा सकती है।

श्री नाईक ने हिन्दी की विशेषता का उल्लेख करते हुये कहा कि साहित्यिक भाषा और आम बोल-चाल की भाषा में स्वाभाविक अंतर है। क्लिष्ट हिन्दी की अपेक्षा आम बोल-चाल की भाषा लोगों को सहजता से समझ में आती है। उच्चतम एवं उच्च न्यायालय भी अपने निर्णय हिन्दी में देने का प्रयास कर रहे हैं। हिन्दी को विज्ञान और विधि की भाषा बनाने में विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें सोचना होगा कि जब रूस, चीन, जर्मनी, फ्रांस, जापान आदि अपनी भाषा का प्रयोग कर समर्थ बन सकते हैं तो हम क्यों नहीं बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान अपने अनुसंधानों को आम लोगों तक पहुंचाने के लिये अपना प्रकाशन हिन्दी में ज्यादा से ज्यादा करें।

राज्यपाल ने कहा कि भाषा का लचीलापन उसे लोकप्रियता तक ले जाता है। उन्होंने संसद के अनुभव की चर्चा करते हुये बताया कि उन्होंने एक बार लोक सभा अध्यक्ष को ‘अध्यक्ष महाराज’ कहकर सम्बोधित किया तो हिन्दी भाषी क्षेत्र के सांसदों ने हँसना शुरू कर दिया। बाद में पता चला कि ‘महाराज’ का प्रयोग रसोइये के लिये भी किया जाता है। कभी-कभी दूसरी भाषा का प्रयोग करने से यह पता ही नहीं चलता कि यह शब्द किसी अन्य भाषा का है। भाषा को सुधारने से भाषा का विकास होता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी का सम्मान ही स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत की अस्मिता है।

संस्थान के निदेशक प्रो0 आलोक धवन ने कहा कि संस्थान अपने अनुसंधान को आमजन तक ले जाने के लिये हिन्दी भाषा का सफल प्रयोग कर रहा है। संस्थान की वेबसाइट को भी हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में तैयार किया गया है। उन्होंने बताया कि स्मारिका ‘विषविज्ञान संदेश’ को तीन साल से हिन्दी में प्रकाशन का प्रथम स्थान मिल रहा है।