नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 94 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने आज (16 अगस्त) एम्स में शाम पांच बजकर पांच मिनट पर आखिरी सांसद ली। वाजपेयी पहली बार 13 दिनों के लिए 1996 में पीएम बने थे। वाजपेयी के शुभचिंतकों में भाजपा के अलावा दूसरे दलों के लोग भी शामिल रहे हैं। उन्हीं में एक बड़ा नाम कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी शामिल है। एक समय ऐसा था जब मनमोहन सिंह अटल बिहारी वाजपेयी की आलोचना से काफी आहत हो गए थे लेकिन जब वाजपेयी जी ने उनसे मिलकर राजनीतिक विरोध की सियासी वजहें बताईं तो वो मुस्कुरा पड़े थे और फिर दोनों नेता दोस्त हो गए।

बात 1991 की है, जब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। लिहाजा, मनमोहन सिंह ने देश में आर्थिक उदारीकरण के लिए नई नीतियों का एलान किया था और बजट में उसकी चर्चा की थी। उदारीकरण की यह नीति भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘राव-मनमोहन मॉडल’ कहलाता है। जब मनमोहन सिंह ने बजट भाषण में उन फैसलों को लागू करने का ऐलान किया था तो तत्कालीन नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण में राव-मनमोहन मॉडल की जमकर आलोचना की। इससे मनमोहन सिंह आहत हो उठे थे। पहली बार राजनीति में कदम रखने वाले मनमोहन सिंह आलोचनाओं से नाराज होकर वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देने को सोचने लगे थे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब यह बात पीवी नरसिम्हा राव को पता चली तो उन्होंने पूरा वाकया अटल बिहारी वाजपेयी को फोन कर बताया। इसके बाद वाजपेयी जी ने मनमोहन सिंह से मुलाकात कर उन्हें समझाया था कि उनकी आलोचना राजनैतिक थी, व्यक्तिगत नहीं। वाजपेयी ने राजनैतिक विपक्ष की भूमिका के बारे में भी मनमोहन सिंह को बताया था, तब मनमोहन सिंह ने इस्तीफा देने का विचार टाल दिया थी। उस घटना के बाद मनमोहन सिंह और वाजपेयी जी दोस्त बन गए। पिछले छह हफ्तों से एम्स में भर्ती वाजपेयी जी को देखने आनेवालों में मनमोहन सिंह भी शामिल रहे हैं।