नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया है। 1996 में पहली बार 13 दिन के लिए वो प्रधानमंत्री बने थे। वाजपेयी करीब साठ साल से ज्यादा वक्त तक संसद के सदस्य रहे। इनमें से करीब चालीस साल वो विपक्ष में रहे। वाजपेयी जी ने नेता विपक्ष के तौर पर इंदिरा गांधी से लेकर पी वी नरसिम्हा राव के शासनकाल की कड़ी आलोचना की और जनविरोधी फैसलों पर संसद से लेकर सड़क तक संग्राम किया। यहां तक कि उन्होंने कई मौकों पर अनोखे तरीके से विरोध दर्ज कराया।

साल 1973 में 12 नंवबर से संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हुई थी। उस वक्त पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विपक्षी दलों के जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा था। सदन में इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग भी उठी थी। उन्हीं दिनों जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी दो अन्य नेताओं के साथ बैलगाड़ी से संसद पहुंचे थे और पेट्रोल की कीमतों में हो रही बढ़ोत्तरी का विरोध दर्ज कराया था।

सरकार से वैचारिक विरोध रखने के बावजूद वाजपेयी जी पक्ष-विपक्ष के चहेते थे। तभी तो धुर-विरोधी सोनिया गांधी ने भी संसद पर आतंकी हमला होने के बाद उन्हें फोन कर उनकी कुशल क्षेम पूछी थी। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने गुजरात में दंगा भड़कने पर वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने की नसीहत दी थी और सख्त लहजे में फटकार लगाई थी। 1996 में 13 दिन की सरकार में पहले अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए उन्होंने लोकसभा में लोभी होने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि वो तोड़-फोड़ कर सरकार बनाना तो दूर उस सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करेंगे। वाजपेयी जी को साल 2014 में सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।