नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने शुक्रवार को गंगा नदी की स्थिति पर नाराजगी जताते हुए कहा कि हरिद्वार से उत्तर प्रदेश के उन्नाव शहर के बीच गंगा का जल पीने और नहाने योग्य नहीं है। एनजीटी ने कहा कि मासूम लोग श्रद्धापूर्वक नदी का जल पीते हैं और इसमें नहाते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर हो सकता है। एनजीटी ने कहा , ‘‘ मासूम लोग श्रद्धा और सम्मान से गंगा का जल पीते हैं और इसमें नहाते हैं। उन्हें नहीं पता कि यह उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। अगर सिगरेट के पैकेटों पर यह चेतावनी लिखी हो सकती है कि यह ‘ स्वास्थ्य के लिए घातक’ है, तो लोगों को (नदी के जल के) प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जानकारी क्यों नहीं दी जाए?

एनजीटी प्रमुख ए के गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा , हमारा नजरिया है कि महान गंगा के प्रति अपार श्रद्धा को देखते हुए , मासूस लोग यह जाने बिना इसका जल पीते हैं और इसमें नहाते हैं कि जल इस्तेमाल के योग्य नहीं है। गंगाजल का इस्तेमाल करने वाले लोगों के जीवन जीने के अधिकार को स्वीकार करना बहुत जरूरी है और उन्हें जल के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। ’’ एनजीटी ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को सौ किलोमीटर के अंतराल पर डिस्प्ले बोर्ड लगाने का निर्देश दिया ताकि यह जानकारी दी जाए कि जल पीने या नहाने लायक है या नहीं।

एनजीटी ने गंगा मिशन और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दो सप्ताह के भीतर अपनी वेबसाइट पर एक मानचित्र लगाने का निर्देश दिया जिसमें बताया जा सके कि किन स्थानों पर गंगा का जल नहाने और पीने लायक है।

संयुक्त राष्ट्र (United Nation) दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है। यूएन के पास पैसों की भारी किल्लत हो गई है। जिसके बाद यूएन ने अपने सदस्य राष्ट्रों को चेतावनी दी है कि वो संगठन को दिया जाने वाला अपना अनिवार्य नियमित बजट जल्द से जल्द संगठन को दें। यूएन ने अपने सदस्य राष्ट्रों से कहा है कि जब वो अपना अनुदान राशि संगठन को देंगे तब ही संगठन अपना काम सुचारू ढंग से कर पाएगा। न्यूजी एजेंसी पीटीआई के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटेनियो गुटेरेस ने अपने सदस्य राष्ट्रों को इस मामले में चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में महासचिव ने लिखा है कि संगठन को सदस्य राष्ट्रों द्वारा मिलने वाले नियमित अनुदान राशि में देरी होने की वजह से संगठन पैसों की किल्लत से जूझ रहा है। चिट्ठी में सदस्यों को आगाह करते हुए महासचिव ने लिखा है कि इस कैलेंडर साल में संगठन को पैसों की इतनी किल्लत नहीं हुई थी।

यह खत बीते गुरुवार को (26 जुलाई) को इसके 112 सदस्यों को लिखी गई है। हालांकि भारत ने यूएन में अपना अनिवार्य अनुदान राशि पहले ही दे दिया है। भारत ने इसी साल 29 जनवरी तक 17.91 मिलियन डॉलर का भुगतान संगठन को कर दिया था। इस साल जून के आखिर में सदस्य देशों द्वारा 2008 के आकलन के लिए अदा की गई राशि करीब 1.49 अरब डॉलर रही। पिछले साल इसी अवधि में नियमित बजट में जमा राशि 1.70 अरब से कुछ अधिक थी।

अपने खत में महासचिव ने सदस्य राष्ट्रों से कहा है कि नियमित बजट में सदस्य देशों की ओर से अनुदान राशि अदा करने में होने वाली देरी की वजह से नकदी की कमी की जैसी समस्या का सामना हम अभी कर रहे हैं वैसा हमने पहले कभी नहीं किया है। पत्र में लिखा गया है कि ‘‘किसी कलैंडर वर्ष में हमारा धन इतनी जल्दी इतना कम कभी नहीं हुआ। आपको बता दें कि अब तक कुल 81 देशों ने अनिवार्य अनुदान राशि का भुगतान नहीं किया है। इसमें सूडान, सीरिया. अफगानिस्तान, बांग्लादेश, ब्राजील, इजिप्ट, इजरायल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, अमेरिका और जिम्बाब्वे जैसे देश शामिल हैं।