मेंस्ट्रुअल हाइजीन को लेकर बालिकाओं को किया जायेगा जागरूक

लखनऊ। मेंस्ट्रुअल हाइजीन से जुड़ी जानकारी के अभाव में शिक्षा और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खराब असर को रोकने के लिये बालिकाओं को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाया जायेगा। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन यूनिसेफ और स्टेफ्री ने मिलकर पहेली की सहेली प्रोजेक्ट के जरिये अगले छह वर्ष तक किशोर उम्र की लड़कियों में मेंस्ट्रुअल हैल्थ व हाइजीन को सुधारने का काम करेंगे। एक अनुमान के मुताबिक भारत में लगभग 11 करोड़ किशोरवय बालिकाओं में मेंस्ट्रुअल हाइजीन व डिस्पोज़ल प्रैक्टिस की जानकारी का अभाव है जिससे उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद 2011-12 रिपोर्ट के अनुसार अपने देश में केवल 38 प्रतिशत रजस्वला लड़कियां मासिक धर्म के बारे में अपनी मांओं से बात करती हैं। शिक्षा मंत्रालय के 2015 के सर्वेक्षण में पता लगा कि गांवों के 63 प्रतिशत स्कूलों में शिक्षिकाओं ने कभी मासिक धर्म के बारे में चर्चा नहीं की कि हाइजीनिक तरीके से इससे कैसे निपटा जाए। जाॅनसन एण्ड जाॅनसन के ब्राण्ड स्टेफ्री और यूनिसेफ की इस भागीदारी का प्रयास है कि ’पहेली की सहेली’ जैसी असरदार कम्यूनिकेश किट को व्यापक स्तर जरूरतमंदों तक पहुंचाया गया, जिससे उन्हें माहवारी के बारे में शिक्षा मिली और उनका जीवन बेहतर हुआ। ’पहेली की सहेली’ राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) में शामिल है; यह 10 से 19 वर्ष के किशोरों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम है। ’’पहेली की सहेली’’ किशोरियों, माताओं और शिक्षकों के लिए एक प्रभावी साधन है। यह न केवल कहानी आधारित चित्रयुक्त फ्लिपबुक है बल्कि इसमें 5 मिनट की 5 लघु फिल्में, पहेलियां, गतिविधि आधारित गेम्स भी शामिल हैं। कुल मिलाकर यह एक मनोरंजक शिक्षाप्रद पैकेज है जो समझाता है कि मेंस्ट्रुएशन क्या है। स्टेफ्री और यूनिसेफ की यह सहभागिता यह समझने पर केन्द्रित है कि मेंस्ट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट में अहम अड़चनें क्या हैं। इसमें दर्शाया गया कि किस तरह से विभिन्न सामाजिक व व्यवहार संबंधी परिवर्तनकारी हस्तक्षेपों -जैसे परस्पर संवाद, सामाजिक लामबंदी व मीडिया आधारित गतिविधियांे- से प्रमुख स्टेकहोल्डरों के बीच जानकारी बढ़ती है, रवैया बदलता है, वो कुशल बनते हैं तथा इससे व्यक्गित, पारिवारिक और सामुदायिक स्तरों पर सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहन मिलता है। जिन इलाकों में यह कार्यक्रम चलाया गया वहां किए गए अनुसंधान में पता लगा कि 93 प्रतिशत लड़कियों ने पीरियड्स के दौरान असुविधा के चलते औसतन एक या दो दिन स्कूल से छुट्टी ली थी। परंतु सैनिटरी नैपकीन, जानकारी और मेंस्ट्रुअल हाइजीन संबंधी ज्ञान तक पहुंच मिलने से स्कूल में उपस्थिति पर तुरंत असर पड़ा; 97 प्रतिशत लड़कियों ने मेंस्ट्रुएशन के दौरान स्कूल जाने की बात स्वीकारी। समुदाय के सदस्यों, किशोरियों, मांओं, फ्रंटलाइन वर्करों व शिक्षकों के बीच परिणाम शानदार रहे। जिन जिलों में ’पहेली की सहेली’ प्रोजेक्ट लागू किया गया वहां मेंस्ट्रुअल हाइजीन अभ्यास में ठोस बदलाव देखा गया और इस प्रकार किशोर वय बालिकाओं के आत्मविश्वास में सुधार देखा गया। बिहार में 74 प्रतिशत और झारखंड में 76 प्रतिशत लड़कियां पैड्स व कपड़ा इस्तेमाल कर रही हैं; सन् 2013 में यह आंकड़ा बिहार में 50 प्रतिशत व झारखंड में 46 प्रतिशत था। किशोरियों ने बेहतर डिस्पोज़ल तरीके अपनाए हैं और वे अब सशक्त हैं कि खुल कर बोल सकें तथा बेहतर स्वास्थ्य व हाइजीन हासिल कर पाएं; जबकि मांएं और शिक्षिकाएं भी अब मुक्त होकर इस विषय पर बात करती हैं। जाॅनसन एंड जाॅनसन इंडिया की वाइस प्रेसिडेंट-मार्केटिंग डिम्पल सिधर ने कहा, ’’स्टेफ्री में हमारा यह मानना है कि हर लड़की को वो अवसर मिलना चाहिए जिससे वह अपना मनचाहा भविष्य बना सके। लेकिन शिक्षा के बगैर यह सपना ही रह जाएगा। अनुसंधान बताते हैं कि मेंस्ट्रुअल हाइजीन और सैनिटेशन सुविधाओं के बारे में जानकारी के अभाव में ज्यादा लड़कियां स्कूल छोड़ती हैं। स्टेफ्री में हम निरंतर किशोरवय बालिकाओं के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं। और यूनिसेफ के साथ अपनी सहभागिता के द्वारा हम किशोर उम्र की लड़कियों को शिक्षित करते हुए इस स्थिति के समाधान हेतु प्रयासरत रहेंगे। ’पहेली की सहेली’ हमारी कोशिश है भारत की बेटियों को शिक्षित व जागरुक बनाने की ताकि वे अपना स्कूल न छोड़ें। यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि डाॅ यास्मीन अली हक ने कहा, ’’यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है कि किशोरियों को मेंस्ट्रुअल संबंधी दर्द या दाग की वजह से स्कूल छोड़ना पड़े। स्टेफ्री के साथ हमारी भागीदारी से असरदार सम्प्रेषण साधन तैयार हुए हैं जिससे लड़़कियों और उनके समुदाय के लोगों को आवश्यक जीवन कौशल प्राप्त हुए हैं जिनसे वे इस मुद्दे को संभाल सकें।