-आशीष वशिष्ठ

इन दिनों देश में ‘व्रत पालिटिक्स’ उफान पर है। दलित समुदाय के हितों की खातिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का उपवास खूब चर्चित हुआ। राहुल के उपवास के बाद संसद में गतिरोध पर प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और करीब 2000 सांसदों-विधायकों ने देश्भर में एक दिन का सामूहिक उपवास रखा। भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने सियासी नफे-नुकसान के हिसाब से उपवास की आड़ में राजनीति चमकाने और गर्माने का काम किया। लेकिन इस उपवास राजनीति में कई अहम सवाल पीछे छूटते दिखाई देते हैं। उन्नाव की बेटी का भाजपा के बाहुबली विधायक पर दुष्कर्म का आरोप और कठुआ में नन्हीं बच्ची के साथ हुए पाश्विक अत्याचार को लेकर देशभर में उबाल है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल और उनकी बहन प्रियंका बेटियों की सुरक्षा को लेकर इण्डिया गेट पर कैण्डिल मार्च में शामिल हो चुके हैं। आए दिन महिलाओं पर होने वाले अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इसमें सबसे ज्यादा मामले दुष्कर्म के हैं। ऐसे में सवाल यह है कि सियासी गुणा-भाग में उलझे नेता कब देश की बेटियों की सुरक्षा, अस्मिता और उन्हें बराबरी का हक देने के लिये उपवास कब रखेंगे।

2012 में निर्भया काण्ड देश के कोने-कोने में गंूजा था। इस लोहमर्षक काण्ड ने देश की आत्मा को बुरी तरह झकझोर डाला था। तत्कालीन यूपीए सरकार ने आनन-फानन फौरी तौर पर कई फैसले बेटियों की सुरक्षा, बराबरी और अस्मिता को लेकर किये। उस घटना के बाद जिस तरह देश एकजुट होकर न्याय के लिए खड़ा हो गया था, उस समय ऐसा लगा कि मानो देश से इस तरह के अपराध का खात्मा हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और रोजाना इस तरह के अपराधों में बढ़ोतरी ही दर्ज की गई।

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में बेटी के साथ जो कुछ भी हुआ और जो हो रहा है वो दुखद है। पीड़ित परिवार की बची-खुची हिम्मत को यूपी सरकार की कार्यप्रणाली और रवैये ने खत्म कर डाला। बलात्कार के 260 दिनों बाद तो प्राथमिकी दर्ज की गई और पाक्सो कानून भी चस्पां किया गया। यह कानून ही गैर-जमानती है, तो आरोपी विधायक को गिरफ्तार करने में इतनी देरी क्यों की गयी? प्रदेश के मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक उस विधायक को ‘माननीय’ संबोधित करते हुए पुख्ता सबूतों से इनकार करते हैं, तो भाजपा की योगी सरकार की कानून-व्यवस्था पर ही सवाल उठना लाजिमी है। एक नाबालिग लड़की से बलात्कार और उसके पिता को पीट-पीट कर मार देने के पीछे कौन गुंडे-मवाली थे, योगी सरकार सबूतों के संदर्भ में असमर्थता जताती रही। फिर भाजपा और गुंडों की अन्य सरकारों में फर्क ही क्या रहा? पीड़िता आत्महत्या का प्रयास कर चुकी है, अब भी जान देने पर आमादा है, क्या बलात्कार की बात कहना कोई बड़ी शान की बात है?

बलात्कार के नए कानून के मुताबिक और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद बलात्कार के आरोप के तुरंत बाद ही आरोपी की गिरफ्तारी होनी चाहिए। पीडिता का बयान ही बुनियादी सबूत माना जाए, लेकिन पाक्सो एक्ट के बावजूद विधायक को यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार न किया जाना सरकारी की मंशा और रीति-नीति पर सवाल खड़े करता है। इस मामले में जिस तरह सरकार आरोपित विधायक के बचाव में खड़ी दिखाई दी, अगर उसका दसवां भाग भी उसने पीड़िता को न्याय देने में लगाया होता तो आज तस्वीर कुछ ओर होती। बहरहाल 260 दिनों के बाद प्राथमिकी और अब सीबीआई जांच को सौंपना! साफ है कि योगी सरकार और भाजपा इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहती हैं। सीबीआई भी तो केंद्र सरकार का ‘तोता’ है।

जम्मू के कठुआ जिले में मासूम बच्ची के साथ जो पाश्विकता हुई, उसे सुनकर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं। कई दिन तक लगातार दुष्कर्म के बाद गला घोंट कर और पत्थर मार कर बेटी की हत्या भी कर दी गई। इससे जघन्य और अमानवीय हरकत और क्या हो सकती है! मामला बीती जनवरी का है, लेकिन अब बवाल मचा है। क्या कसूर था आसिफा का, जो उस बच्ची से इस तरह की दरिंदगी और फिर मर्डर? पूरे प्रदेश में इस खबर को लेकर बवाल मचा है। आसिफा को इनसाफ दिलाने के लिए पूरे प्रदेश में प्रदर्शन हो रहे हैं। एक तरफ तो हमारे देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे लगाए जाते हैं, तो दूसरी ओर समाज के ठेकेदार इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। चार महीनों से लटक रहे इस केस में अभी तक आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। प्रधानमंत्री महिला सुरक्षा, महिला सम्मान और सुरक्षित मातृत्व, बेटियों को लेकर योजनाएं घोषित करते रहे हैं। उनके मकसद साफ हैं, लेकिन उनमें भाजपा वाले ही पलीता लगा रहे हैं।

रष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि एनसीआरबी के 2016 के आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 3,29,243 थी जो 2016 में 2.9 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 3,38,954 हो गई। इन मामलों में पति और रिश्तेदारों की क्रूरता के 1,10,378 मामले, महिलाओं पर जानबूझकर किए गए हमलों की संख्या 84,746, अपहरण के 64,519 और दुष्कर्म के 38,947 मामले दर्ज हुए हैं। वर्ष 2016 के दौरान कुल 3,29,243 दर्ज मामलों में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 49,262, दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल में 32,513 मामले, तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश 21,755 मामले, चैथे नंबर पर राजस्थान में 13,811 मामले और पांचवे स्थान पर बिहार है जहां 5,496 मामले दर्ज हुए थे। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अपराध की राष्ट्रीय औसत 55.2 फीसदी की तुलना में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में उच्चतम अपराध दर 160.4 रही। 2015 में भारत में महिलाओं से बलात्कार के 34651 मामले सामने आए थे। लेकिन ऐसे मामलों की संख्या भी कम नहीं जिनमें समाजिक दबाव के चलते बलात्कार के मामले पुलिस में दर्ज नहीं कराये जाते।

एनसीआरबी के आंकड़ों से साफ है कि देश के नौनिहालों की सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक है। 2010 में दर्ज 5,484 बलात्कार के मामलों की संख्या बढ़कर 2014 में 13,766 हो गई थी। संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2014 तक पोक्सो के तहत दर्ज 6,816 एफआईआर में से सिर्फ 166 को ही सजा हो सकी है, जबकि 389 मामले में लोग बरी कर दिए गए, जो 2.4 प्रतिशत से भी कम है। इसी तरह 2014 तक 5 साल में दर्ज मामलों में 83ः मामले लंबित थे, जिनमें से 95 फीसदी पोक्सो के मामले थे और 88ः ‘लाज भंग’ (बच्ची के साथ बलात्कार) करने के थे। एनसीआरबी के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत महिला की ‘लाज भंग’ के इरादे से किए गए हमले के 11,335 मामले दर्ज किए गए है।

हमारे देश में अदालतें ऐसे ही इंसाफ करने में देर लगाती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब ऐसी घटनाओं की कतारें लग जाएंगी। ऐसे ही अगर कानून इन्हें भी इनसाफ नहीं दिला पाया, तो इस खौफ से गर्भ में लड़कियों को मारने का सिलसिला बढ़ जाएगा, और हो भी क्यों न? जब चार, पांच साल की लड़कियों को इन दरिंदों के हाथों मरना है, तो क्यों न गर्भ में ही मर जाएं? कभी धर्म के नाम पर, कभी मजहब के नाम पर राजनीति का गंदा खेल चलता रहता है और सरकार लोगों को सालों उम्मीद दिलाती रहती है कि अब आरोपी पकड़े जाएंगे। अगर अब भी सरकार उन्नाव और कठुआ केस में दोषियों को सजा नहीं दिला पाती है, तो ऐसी सरकार और न्याय व्यवस्था के होने का कोई फायदा नहीं है। निर्भया कांड के बाद जस्टिस जेएस वर्मा की एक कमेटी ने कानून में व्यापक सुधारों की सिफारिशें की थी। संसद ने अधिकतर पर अपनी मुहर भी लगा दी थी, लेकिन पांच लंबे साल गुजरने के बावजूद निर्भया के बलात्कारियों को अभी तक फांसी के फंदे पर लटकाया नहीं जा सका है। यही हमारे कानूनों की विडंबना है। रेप केस में दोषी को फांसी की सजा देने के लिए सरकार और कितने साल सोच-विचार करने वाली है?

बेटियों से जुड़े सरोकार प्रधानमंत्री और निजी तौर पर मोदी की आत्मा के करीब रहे हैं। उपवास रखने से संसद से जुड़े मसलों का समाधान नहीं हो सकता। वहीं उपवास रखने मात्र से दलितों का भला भी नहीं होने वाला। यदि इसके समानांतर बेटियों की इज्जत को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता उपवास पर बैठे तो उसका सामाजिक संदेश बहुत दूर तक जाएगा। वहीं महिलाओं पर होने वाले दुष्कर्म जैसे अपराध को रोकने के लिए अपनी और समाज की सोच को बदलना होगा और इस तरह के जुर्म को रोकने के लिए आरोपियों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करनी होगी और राष्ट्रहित में महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। कानून में कमियों की वजह से आरोपी आसानी से कानून की आंखों में धूल झोंक बाइज्जत बरी तक हो जाया करते हैं अतः सरकार लोगों के अंदर कानून के प्रति भरोसे को भी मजबूत करे।