-फ़िरदौस ख़ान

किसी भी देश के लिए सिर्फ़ सरकार का मज़बूत होना ही काफ़ी नहीं होता। देश की ख़ुशहाली के लिए, उसकी तरक़्क़ी के लिए एक मज़बूत विपक्ष की भी ज़रूरत होती है। ये विपक्ष ही होता है, जो सरकार को तानाशाह होने से रोकता है, सरकार को जनविरोधी फ़ैसले लेने से रोकता है। सरकार के हर जन विरोधी क़दम का जमकर विरोध करता है। अगर सदन के अंदर उसकी सुनवाई नहीं होती है, तो वह सड़क पर विरोध ज़ाहिर करता है। जब सरकार में शामिल अवाम के नुमाइंदे सत्ता के मद में चूर हो जाते हैं और उन लोगों की अनदेखी करने लगते हैं, जिन्होंने उन्हें सत्ता की कुर्सी पर बिठाया है, तो उस वक़्त ये विपक्ष ही तो होता है, जो अवाम का प्रतिनिधित्व करता है। अवाम की आवाज़ को सरकार तक पहुंचाता है। आज देश की यही हालत है। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार तानाशाही रवैया अख़्तियार किए हुए। सत्ता में आने के बाद जिस तरह से कथित जन विरोधी फ़ैसले लिए गए, उससे अवाम की हालत दिनोदिन बद से बदतर होती जा रही है। यह फ़ैसला नोटबंदी का हो या जीएसटी का, बिजली और रसोई गैस की क़ीमतें बढ़ाने का हो या फिर बात-बात पर कर वसूली का। इस सबने अवाम को महंगाई के बोझ तले इतना दबा दिया है कि अब उसका दम घुटने लगा है। कहीं मिनिमम बैंलेस न होने पर ग्राहकों के खाते से मनमाने पैसे काटे जा रहे हैं, तो कहीं आधार न होने के नाम पर, राशन कार्ड को आधार से न जोड़ने के नाम पर लोगों को राशन से महरूम किया जा रहा है।

देश की अवाम पिछले काफ़ी वक़्त से बुरे दौर से गुज़र रही है। जनमानस ने जिन लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाकर संसद में, विधानसभा में भेजा था, वे अब सत्ता के नशे में हैं। उन्हें जनमानस के दुखों से, उनकी तकलीफ़ों से कोई सरोकार नहीं रह गया है। ऐसे में जनता किसके पास जाए, किसे अपने अपने दुख-दर्द बताए। ज़ाहिर है, ऐसे में जनता विपक्ष से ही उम्मीद करेगी। जनता चाहेगी कि विपक्ष उसका नेतृत्व करे। उसे इस मुसीबत से निजात दिलाए। ये विपक्ष का उत्तरदायित्व भी है कि वे जनता की आवाज़ बने, जनता की आवाज़ को मुखर करे।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की प्रमुख व कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी देश के हालात को बख़ूबी समझ रहे हैं। सोनिया गांधी अवाम को एक मज़बूत विपक्ष देना चाहती हैं, वे देश को एक जन हितैषी सरकार देना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के ख़िलाफ़ मुहिम शुरू कर दी है। दिल्ली में हुए कांग्रेस के महाधिवेशन में उन्होंने कहा कि पिछले चार साल में कांग्रेस को तबाह करने के लिए अहंकारी और सत्ता के नशे में मदमस्त लोगों ने कोई कसर बाक़ी नहीं रखी। साम-दाम-दंड-भेद का पूरा खेल चल रहा है, लेकिन सत्ता के अहंकार के आगे ना कांग्रेस कभी झुकी है और ना कभी झुकेगी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के तानाशाही तौर तरीक़ों, संविधान की उपेक्षा, संसद का अनादर, विपक्ष पर फ़ज़्री मुक़दमों और मीडिया पर लगाम लगाने का कांग्रेस विरोध कर रही है।

राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव और जम्मू कश्मीर के कठुआ में हुई बलात्कार की घटनाओं के विरोध में गुरुवार आधी रात को इंडिया गेट पर कैंडल मार्च निकाला।

ग़ौरतलब है कि पिछले दिनों सोनिया गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ गठजोड़ बनाने के लिए विपक्षी दलों को रात्रिभोज दिया। सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर हुए इस रात्रिभोज में विपक्षी दल के नेता शामिल हुए, जिनमें समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेइटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) के नेता बदरुद्दीन अजमल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार और तारिक अनवर, राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव और मीसा भारती, जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी, राष्ट्रीय जनता दल के अजित सिंह और जयंत सिंह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद सलीम, द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके) के कनिमोई, बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सुदीप बंदोपाध्याय, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी, जनता दल-सेक्युलर (जेडी-एस) के कुपेंद्र रेड्डी, रेवलूशनेरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के रामचंद्रन और केरल कांग्रेस के नेता भी शामिल हुए। कांग्रेस के नेताओं में राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गु़लाम नबी आज़ाद, अहमद पटेल, एके एंटोनी, मल्लिकार्जुन खड़गे, रणदीप सुरजेवाला आदि नेताओं ने शिरकत की।

सोनिया गांधी बख़ूबी समझती हैं कि इस वक़्त कांग्रेस को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। जब भी पार्टी पर कोई मुसीबत आई है, तो सोनिया गांधी ढाल बनकर खड़ी हो गईं। देश के लिए, देश की जनता के लिए, पार्टी के लिए हमेशा उन्होंने क़ुर्बानियां दी हैं। देश का शासन उनके हाथ में था, प्रधानमंत्री का ओहदा उनके पास था, वे चाहतीं, तो प्रधानमंत्री बन सकती थीं या अपने बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना सकती थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने डॊ। मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। उनकी अगुवाई में न सिर्फ़ कांग्रेस एक मज़बूत पार्टी बनकर उभरी और सत्ता तक पहुंची, बल्कि भारत विश्व मंच पर एक बड़ी ताक़त बनकर उभरा।

राहुल गांधी को कांग्रेस की बागडौर सौंपने के बाद सोनिया गांधी आराम करना चाहती थीं। अध्यक्ष पद पर रहते हुए ही उन्होंने सियासत से दूरी बना ली थी। राहुल गांधी ही पार्टी के सभी अहम फ़ैसले कर रहे थे। लेकिन पार्टी को मुसीबत में देखकर उन्होंने सियासत में सक्रियता बढ़ा दी है। फ़िलहाल वे विपक्ष को एकजुट करने की क़वायद में जुटी हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ एक मज़बूत गठजोड़ बनाना चाहती हैं। क़ाबिले-ग़ौर है कि जब-जब कांग्रेस पर संकट के बादल मंडराये, तब-तब सोनिया गांधी ने आगे आकर पार्टी को संभाला और उसे मज़बूती दी। उन्होंने कांग्रेस की हुकूमत में वापसी के लिए देशभर में रोड शो किए थे। आख़िरकार उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने साल 2004 और 2009 का आम चुनाव जीतकर केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार बनाई थी। उस दौरान देश के कई राज्यों में कांग्रेस सत्ता में आई। लेकिन जब से अस्वस्थता की वजह से सोनिया गांधी की सियासत में सक्रियता कम हुई है, तब से पार्टी पर संकट के बादल मंडराने लगे। साल 2014 में केंद की सत्ता से बेदख़ल होने के बाद कांग्रेस ने कई राज्यों में भी शासन खो दिया। हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने ख़ूब मेहनत भी की, लेकिन उन्हें वह कामयाबी नहीं मिल पाई, जिसकी उनसे उम्मीद की जा रही थी।

अगले साल आम चुनाव होने हैं। उससे पहले इसी साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस के पास बहुत ज़्यादा वक़्त नहीं बचा है। सोनिया गांधी ने रात्रिभोज के बहाने विपक्षी द्लों को एकजुट करने की कोशिश की है। अगर सोनिया गांधी इसमें कामयाब हो जाती हैं, तो इससे जहां देश को एक मज़बूत विपक्ष मिलेगा, वहीं आम चुनाव में पार्टी की राह भी आसान हो सकती है।

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)