नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अनुसूचित जाति- जनजाति कानून को लेकर 20 मार्च के अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि केन्द्र की पुनर्विचार याचिका पर 10 दिन बाद विस्तार से सुनवाई की जायेगी.

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि सोमवार को आंदोलन कर रहे लोगों ने फैसले को ठीक से पढ़ा नहीं है और उन्हें कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए गुमराह किया है. बता दें कि सोमवार को दलित संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया था. प्रदर्शन के दौरान मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर हिंसा हुई जिनमें 10 लोगों की मौत हो गई और कई दर्जन लोग घायल हुए हैं.

पीठ ने कहा कि उसने SC/ST कानून के किसी भी प्रावधान को नरम या कमजोर नहीं किया है बल्कि सिर्फ निर्दोष व्यक्तियों को गिरफ्तारी से बचाने के लिये उनके हितों की रक्षा की है. पीठ ने कहा कि कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल निर्दोष लोगों को आतंकित करने के लिये नहीं किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका दस दिन बाद विस्तृत सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करते हुये महाराष्ट्र और अन्य पक्षों से कहा कि वे इस दौरान अपनी लिखित दलीलें दाखिल करें.

केन्द्र सरकार ने अपनी पुनर्विचार याचिका में कहा है कि 20 मार्च के न्यायालय के निर्णय में इस कानून के प्रावधानों को नरम करने के दूरगामी परिणाम होंगे. इससे अनुसूचित जाति और जनजातियों के सदस्यों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा. पुनर्विचार याचिका में यह भी कहा गया है कि यह फैसला अत्याचार निवारण कानून, 1989 में परिलक्षित संसद की विधायी नीति के भी विपरीत है.

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में इस कानून के तहत मामलों में गिरफ्तारी के प्रावधान के दुरूपयोग का संज्ञान लेते हुये कहा था कि एक लोक सेवक को उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी की मंजूरी के बाद ही गिरफ्तार किया जा सकता है. इसी तरह, गैर लोक सेवक को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की स्वीकृति से ही गिरफ्तार किया जा सकता है.