संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थियों के लिए उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) ने कहा है कि भारत अपने देश में खतरे का सामना करने वाले शरणार्थियों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा बाध्य है।
रोहंगिया शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने के सवाल पर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा कि भारत ने 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन या 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसलिए भारत ‘गैर- रिफॉलमेंट’ के सिद्धांत या फिर शरणार्थियों को खतरे की जगह न भेजने के कानून के लिए बाध्य नहीं है।
हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस के एक ई-मेल के जवाब में यूएनएचसीआर ने कहा था, “गैर-रिफॉलमेंट का सिद्धांत प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा माना जाता है और इसलिए सभी राज्यों पर बाध्यकारी है, फिर चाहे राज्यों ने रिफ्यूजी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हों या नहीं।
इसके साथ ही भारत प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार साधनों जैसे कि नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, महिला के प्रति हर तरह के भेदभाव को खत्म करने और बच्चों के अधिकारों के लिए आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों के लिए पार्टी है।”
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