उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज कराने के बाद अब भाजपा राष्ट्रपति चुनाव के लिए तैयारी करना चाहती है। इसी साल जून में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए 8 मार्च को सोमनाथ में एक बैठक बुलाई गई थी। जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा लाल कृष्ण अआडवाणी को भी बुलाया गया था। चर्चा के दौरान संकेत मिला कि लाल कृष्ण आडवाणी को गुरु दक्षिणा के तौर पर राष्ट्रपति बनाया जा सकता है। हालांकि, अब पांचों राज्यों के नतीजे आ गए हैं तो भाजपा आडवाणी के नाम पर मुहर लगा सकती है। बीजेपी सूत्रों ने बताया कि सोमनाथ में हुई बैठक में मोदी और आडवाणी के अलावा केशुभाई पटेल भी मौजूद थे। उसी दौरान मोदी ने यह संकेत दिया था कि अगर उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे बीजेपी के मन मुताबिक हुए, तो वे अपने गुरु आडवाणी को राष्ट्रपति पद पर देखना चाहेंगे।

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो सोमनाथ में आडवाणी और मोदी की मुलाकात कई मायनों में अहम है। 1990 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा शुरू की थी, तब उन्होंने अपने सारथी के रूप में मोदी को प्रोजेक्ट किया था। यहीं से मोदी की राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई थी। गुजरात में मोदी को सीएम बनाने में भी आडवाणी का बड़ा योगदान रहा है। 2002 के गुजरात दंगों को लेकर मोदी से जब अटल बिहारी वाजपेयी नाराज हुए थे, तो उस वक्त भी आडवाणी ने मोदी का बचाव किया था।

दोनों के बीच दूरियां तब बढ़ी जब 2014 के आम चुनाव में मोदी को पीएम के रूप में प्रोजेक्ट किया गया। उस वक्त आडवाणी ने मोदी का काफी विरोध किया था। लेकिन मोदी चुनाव में जीत गए और पीएम बन गए। इसके बाद आडवाणी ने अवने आप को पार्टी से अलग करके मौन धारण कर लिया। इस दौरान मीडिया में कई तरह की खबरें आई। माना गया कि दोनों के बीच उसी के बाद से एक अनडिक्लेयर्ड कोल्ड वॉर शुरू हो गया। लेकिन जैसे ही यूपी, उत्तराखंड में भाजपा को बहुमत मिली तो आडवाणी ने अपना रूख नरम कर लिया।
बता दें कि 1990 में आडवाणी ने सोमनाथ की रथयात्रा शुरू की थी, तब मोदी 3 दिन पहले ही सोमनाथ पहुंच गए थे। उस वक्त वे आडवाणी के सारथी के रोल में थे। पर अब वक्त बदल गया है। 8 मार्च को मोदी सोमनाथ पहुंचे, उससे पहले ही 7 मार्च को आडवाणी सोमनाथ पहुंच चुके थे।