लखनऊ: वैष्विक स्तर पर बहुत तेजी से हो रहे प्रौद्योगिकीय विकास की वजह से अगले पांच वर्षों में कृत्रिम इंसानी विकल्प यानी रोबोट एक करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां खत्म होने का सबब बन सकते हैं। प्रमुख उद्योग मण्डल एसोचैम के ताजा अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है।

वैष्विक स्तर पर जिस तरह की औद्योगिक क्रान्ति हो रही है, उससे स्वचालन, रोबोटिक्स, थ्री डी प्रिंटिंग, कृत्रिम बुद्धि, जीनोमिक्स के रूप में नुकसानदेह प्रौद्योगिकियां भी सामने आ रही हैं। इनकी वजह से बड़ी संख्या में लोग अपनी नौकरी गंवा रहे हैं। सिर्फ भारत में ही अगले पांच साल के दौरान करीब 10 लाख नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।

ऐसे में एसोचैम ने ‘डिजिटल इंडिया टू रोबोटिक इंडिया’ विषयक अध्ययन में लोगों को सटीक क्षमताओं से लैस करने के लिये सरकार, उद्योग क्षेत्र तथा प्रबुद्ध वर्ग के बीच एक साझीदारी विकसित करने की फौरी आवश्यकता को रेखांकित किया है।

एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी. एस. रावत ने आज लखनऊ में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में इस अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि ‘‘प्रस्तावित साझीदारी के जरिये हमें विषिष्ट क्षमताओं तथा समयानुकूल शिक्षा की उभरती हुई आवश्यकता को पहचानने में मदद मिलेगी। खासकर विकसित देशों से पाठ्यक्रमों की संरचना तैयार करने और उन्हें संचालित करने में सहायता की जरूरत होगी।’’

श्री रावत ने कहा कि ‘‘केन्द्र सरकार को स्वचालन को लेकर एक राष्ट्रीय नीति का स्वरूप तैयार करना चाहिये। इसमें शीर्ष स्तर के विशेषज्ञों, व्यवसाय जगत, सरकार तथा श्रमिक वर्ग के प्रतिनिधियों की राय को शामिल किया जाना चाहिये। इससे हम इस परिवर्तनकाल को कम से कम तकलीफदेह बनाने के लिये कार्ययोजना और दिशानिर्देश तय कर सकेंगे। साथ ही सम्बन्धित पक्षों को सभी लाभ व्यापक तथा समान रूप से साझा किये जाने का आश्वासन भी दे सकेंगे।’’

उन्होंने कहा ‘‘इससे हमारा देश कम से कम उद्योग, निर्माण, परिवहन तथा वितरण के क्षेत्र में स्वचालन रूपी रोबोटिक्स की अनिवार्यता के लिये संवेदित होगा।’’

अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि ‘‘केन्द्र सरकार को अपनी ध्वजवाही योजना यानी मेक इन इंडिया के लिये रोबोटिक्स को प्रमुख तत्व के रूप में जोड़ना चाहिये और उसे वैष्विक निर्माणकर्ताओं को देश में अत्यन्त कार्यदक्ष तथा स्वचालित आपूर्ति श्रंखला सुविधाएं स्थापित करने के उद्देष्य से आकर्षित करने के लिये कार्यक्रम तैयार करना चाहिये।’’

यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि भारतीय उद्योग क्षेत्र को वैष्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी तथा उद्यमियों के लिये देष को आकर्षक बनाने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये रोबोटिक्स प्रौद्योगिकी एक मानी हुई जरूरत है।

एसोचैम का उत्तर प्रदेश की सरकार को सुझाव है कि वह अपनी क्षमता विकास नीति को इस तरह की बनाए जिससे निजी क्षेत्र को अनुकूल माहौल मिले, बेहतर बुनियादी ढांचा उपलब्ध हो, औद्योगिक श्रम शक्ति को क्षमता विकास सम्बन्धी प्रशिक्षण मिल सके और पूरे प्रदेश में ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा मिले।

भारत में अनेक वैश्विक ऑटोमोबाइल कम्पनियांं ने अपना बेस तैयार करना शुरू किया है। इसके अलावा अनेक कम्पनियां स्वनिर्मित वाहनां को दूसरे देशों में निर्यात करने की उम्मीद लगाये हैं। ऐसे में अनेक भारतीय तथा संयुक्त उपक्रम रूपी कम्पोनेंट फर्मों को अन्तर्राष्ट्रीय मानकों से पार पाने के लिये सघन स्वचालन प्रौद्योगिकी की जरूरत होगी।

शुरुआत में कम से कम उन कम्पनियों में स्वचालन तथा रोबोटिक्स अनिवार्य होगा जहां उच्च गुणवत्ता तथा कम लागत के साथ-साथ मानव कामगारों की सुरक्षा को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाती है।

श्री रावत ने कहा ‘‘हमें ऐसे क्षेत्रों में स्वचालन तकनीक को अनिवार्य रूप से अपनाये जाने की उम्मीद करनी चाहिये जहां रेडियोधर्मी सामग्री और संक्षारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे स्पष्ट है कि स्वास्थ्य के लिये खतरनाक उद्योगों में काम करने वालों के लिये रोबोटिक्स उनकी सुरक्षा में मददगार होता है, ना कि उनका स्थान लेता है।’’

श्री रावत ने कहा कि ‘‘वस्तुओं के परिवहन में कंटेनराइजेषन के तेजी से होते इस्तेमाल, पत्तनां के स्वचालन तथा ऐन वक्त पर निर्माण होने से परिवहन कार्य ज्यादा से ज्यादा स्वचालित हो जाएगा। इससे इंसानी हस्तक्षेप की कम से कम जरूरत पड़ेगी।’’

चालकरहित कारें और रेलगाड़ियों का चलन एक संकेत है। वाहनां के कम ईंधन में ज्यादा दूरी तय करने से ईंधन के इस्तेमाल में कमी आयी है। (कारां का 25-30 किलो. प्रति लीटर का माइलेज अब एक सच्चाई बन चुका है। इससे उन्हें कम अन्तराल पर ईंधन देना पड़ता है।) इससे कम पेट्रोल पम्पां तथा मरम्मत की दुकानों की जरूरत पड़ेगी।

नौकरियां खत्म होने की चिन्ताओं का समाधान करते हुए यह अध्ययन कहता है ‘‘सेक्टर के स्वचालन और रोबोटिक्स का इस्तेमाल मानव श्रमिकों के रोजगार की कीमत पर करने की जरूरत नहीं है। इन दोनों का सहअस्तित्व सम्भव है। उद्योगों को रोबोट के इस्तेमाल को प्रतिस्पर्द्धी लाभ लेने की दिषा में उठाये गये कदम के रूप में देखना चाहिये।’’