कानपुर: जमीअत उलमा नगर कानपुर व कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी द्वारा मनाए जा रहे दस दिवसीय इस्लामी निज़ाम ए तलाक़ का सातवा जलसा रौशन नगर में आयोजित हुआ। जिसमें खिताब फरमाते हुए इस्लामिक इल्मी अकादमी के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी कार्यवाहक काजी ए शहर कानपुर ने कहा कि इस समय तीन तलाक और अन्य पारिवारिक और व्यक्तिगत नियमों के प्रति सरकार ने जो फुलझड़ी छोड़ी है और सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की जो सिफारिश की है यह लोगों को बुनियादी मुद्दों से ध्यान हटाने की एक सुनियोजित साजिश है। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार के ढाई वर्षीय भूमिका से यह स्पष्ट है कि वह देश वालों की समस्याओं को हल करने में पूरी तरह असफल है और उसे डर है कि कहीं देश वाले इसका हिसाब न मांग लें इसलिए ध्यान हटाने के लिए इस तरह की फुलझड़ियां छोड़ी जाती हैं। हालांकि सरकार को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि भारत जैसे देश में जहां दर्जनों धर्मों के मानने वाले आबाद हों वहाँ समान नागरिक संहिता लागू केवल मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। सरकार बड़ी होशियारी के साथ धारा 44 का हवाला देती है हालांकि वह एक वैकल्पिक धारा है और एक सलाह है और एक वैकल्पिक धारा के कारण संविधान के बुनियादी प्रावधानों में बदलाव खुली धांधली व बेईमानी है।

मौलाना ने आगे कहा सरकार और अन्य देशों को शरीयत इस्लामी पर निन्दा और उंगली उठाने का अवसर हमारी लापरवाही का अज्ञानता की वजह से मिला है इसलिए जरूरत है कि हम और हमारी युवा पीढ़ी इस्लामी निज़ाम ए शरीअत विशेषकर निकाह व त्लाक़ प्रणाली की जरूरत और प्रक्रिया से परिचित हों ताकि अपने देशवासियों को संतुष्ट कर सकें और उनकी गलतफहमी का निवारण कर सकें वरना हमारी लापरवाही की वजह से इस्लाम कुरआन और नबी की पवित्र जीवनी बदनाम होगी जो हमारे लिए बड़े घाटे की बात होगी।

इस मौके पर आए मस्जिद दरगाह शरीफ के इमाम व खतीब मुफ्ती असदुद्दीन कासमी ने कहा कि इस्लाम एक पूर्ण धर्म है शरीअत मानव जीवन के सभी क्षेत्रों पर लागू होती है तथा हर दौर और हर देश के मनुष्य के लिए समान रूप से कल्याण की गारंटी है। मुस्लिम पर्सनल ला के तहत जो मुद्दें और मामले आते हैं वे पूरी तरह धार्मिक मामले हैं । अगर मुस्लिम पर्सनल ला को समाप्त कर दिया जाए तो हमारी पहचान हमारा व्यक्तित्व सब खत्म हो जाएगा। इसके लिए मुस्लिम पर्सनल ला में हस्तक्षेप हिंदुस्तान के मुसलमान किसी कीमत पर गवारा नहीं कर सकते। हम सब कुछ सहन कर सकते हैं लेकिन धर्म शरीअत से छेड़छाड़ को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। इस्लामी कानूनों इस्लामी प्रकृति के अनुसार हैं और मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं यह नियम अनन्त हैं। जिसमें किसी भी परिवर्तन और संशोधन की गुंजाइश नहीं है। इस मौके पर जलसे के लिए जिम्मेदार हाफिज मुहम्मद आलमीन, मौलाना मुहम्मद साद कासमी, मौलाना मुहम्मद मुस्तफा, मौलाना मुहम्मद जुबैर के अलावा बड़ी संख्या में क्षेत्रीय लोग मौजूद थे।