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कांग्रेस की खाट खड़ी कर रहे हैं मठाधीश

आसिफ मिर्जा

सुल्तानपुर। यूपी की 27 सालों की बेहाली का दुखड़ा लेकर कांग्रेस जनता के दरबार में है। खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खाट सभा का आयोजन कर अब तक की बेहाली को उजागर कर रहे। लेकिन पीके के दिमाग के बाद कांग्रेस के कुछेक मठाधीश पार्टी में फिर से पुरानी रवायत कायम कर रहे हैं।उदहारण
के तौर पर इसौली विधानसभा सीट पर दावेदारों के वो चेहरे हैं जो अपने पीछे पांच हजार कार्यकर्ता नहीं रखते वो टिकट की हकदारी में हैं। जिनका प्रमाण
होर्डिंग से हो रहे प्रचार-प्रसार में देखने को मिल रहा है। ऐसे में कहीं यूपी की बेहाली दूर करने का दावा कर रही कांग्रेस खुद बेहाल होकर 'चारों
खाने चित न हो जाए'! पीके के दिमाग के अनुरूप कांग्रेस पार्टी गुजरे चुनावो की अपेक्षा इस बार नए कलेवर में है। नए नारे, नए ढ़ंग का प्रचार-प्रसार। इन सभी नए कामों के बाद कांग्रेस पार्टी अभी भी अपनी पुरानी रवायत पर कायम है। मसलन आपसदारी के ठप्पे से कांग्रेस पार्टी अभी भी नहीं उबरी। यहां इसौली सीट इस बात का जीता जागता प्रमाण है। इलाके में लगी होर्डिंग पर अगर निगाह करें तो कांग्रेस के मठाधीश नेता के दाहिना हाथ मानें जानें वाले नेता को पार्टी
ने प्रदेश संगठन में जगह दी है। जबकि इन नेता जी की पूरी राजनीतिक जमीन दो चैराहों के बीच सिमट कर रह गई है। ऐसे में इन्हीं नेता जी ने इसौली की मुस्लिम बाहुल्य सीट देखते हुए यहां से चुनाव लड़ने का सपना देख अपने आका की दरबारदारी शुरु कर दिया।

उधर एक और नेता जी की आशा जगी की हम भी मुस्लिम और सीट भी मुस्लिम बाहुल्य। उन्होने भी दावेदारी का मन बनाया और होर्डिंग सजा दिया। इत्तेफाक ये की हाल ही में पार्टी ने इन्हें जिला संगठन में जगह भी दे दिया। इनका आलम भी ये कि सरकारी नौकरी में रहे तो खूब गुल खिलाया और जब
से पार्टी में आये तो खूब फोटो छपवाई और फिर हो गए पूरे कांग्रेसी। लेकिन आलम पहले ही वाले नेता जी ही की तरह। न कार्यकर्ता और न ये ज्ञान की कितने बूथ और कितने गांव इलाके में है। जबकि ये सभी वोटों की गिनती में दस हजार के अंदर वाले उम्मीदवार हैं। इसके बाद भी बस दावेदारी की दौड़ है। दरअसल इस दावेदारी की एक वजह तो ये भी है कि कांग्रेस पार्टी का प्रत्याशी किसी दामाद से कम नहीं। चुनाव लड़ने के लिए पार्टी फंड से कुछ लाख तो मिलेंगे ही। दस हजार वोट पाकर नतीजे में हार मिले तो भी दो-चार लाख बचा ही।

खैर ये आपसदारी वाली दरियादिली बदस्तूर अगर कायम रही तो कांग्रेस को एक बार फिर बेहाली से पीके की गणित भी नहीं बचा पाएगी।

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