नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के मामले में नया मोड़ आ गया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यूपीए सरकार की अपील को वापस ले लिया है। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
मोदी सरकार ने हलफनामे में 1967 में अजीज बाशा केस में संविधान पीठ के जजमेंट को आधार बनाया है जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को केंद्र सरकार ने बनाया था न कि मुस्लिम ने। केंद्र ने हलफनामे में 1972 में संसद में बहस के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बयानों का हवाला दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर इस संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया तो देश में अन्य अल्पसंख्यक वर्ग या धार्मिक संस्थानों को इनकार करने में परेशानी होगी।
केंद्र ने यूपीए सरकार के वक्त मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उन पत्रों को भी वापस ले लिया है जिनमें फैकल्टी आफ मेडिसिन में मुस्लिमों को 50 फीसदी आरक्षण दिया गया था। केंद्र ने 1967 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ 1981 में संसद में संशोधन बिल पास करते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया। उसे भी मोदी सरकार ने गलत ठहराया है। हलफनामे में कहा गया है कि इस तरह कोर्ट के जजमेंट को निष्प्रभावी करने के लिए संशोधन करना संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने एएमयू से जवाब भी मांगा है। जुलाई में ही मामले की सुनवाई होगी और माना जा रहा है कि मामले को संविधान पीठ में भेजा जा सकता है।
पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कि कोई केंद्रीय यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक का दर्जा कैसे पा सकती है। कोई कालेज अल्पसंख्यक वर्ग चला रहा हो यह तो समझा जा सकता है। एजी मुकुल रोहतगी ने कहा था कि किसी धर्मनिरपेक्ष राज्य में सरकार अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी कैसे स्थापित कर सकती है। अगर एएमयू से अल्पसंख्यक का दर्जा हट जाया है तो उसे भी नियमों के मुताबिक एससी, एसटी और ओबीसी कोटे को आरक्षण देना होगा।
दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 के संशोधन को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले को बरकरार रखा था। 2006 में तत्कालीन यूपीए सरकार और एएमयू ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।