लखनऊ: आयुक्त, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग, विपिन कुमार द्विवेदी ने प्रदेश में गन्ना पर्यवेक्षकों के स्वीकृत 3767 पदों का गन्ना क्षेत्रफल के आधार पर जनपदवार पुनर्निर्धारण किया है। गन्ना पर्यवेक्षकों के पदों का निर्धारण इससे पहले वर्ष 1992 में किया गया था, उस समय उत्तराखण्ड राज्य भी उत्तर प्रदेश राज्य में सम्मिलित था। उत्तराखण्ड राज्य के विभाजन के उपरांत विभाग द्वारा गन्ना पर्यवेक्षकों के पदों के जनपदवार पुनर्निर्धारण की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। गन्ना पर्यवेक्षकों के वर्ष 1999 में पंचायतीराज व्यवस्था के अधीन चले जाने के पश्चात् विभागीय कार्यों में आ रही कठिनाईयों के दृष्टिगत पंचायतीराज विभाग ने वर्ष 2004 में गन्ना पर्यवेक्षक को विभाग में वापस कर दिया, परन्तु गन्ना पर्यवेक्षक संवर्ग को पुनर्जीवित करने के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं लिया गया।
इस के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देते हुए गन्ना आयुक्त ने बताया कि गन्ना पर्यवेक्षक संवर्ग के पुनर्जीवित न होने के कारण गन्ना पर्यवेक्षक संवर्ग में होने वाली रिक्तियां न भरे जाने से गन्ना विकास के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने में आ रही कठिनाईयों के दृष्टिगत गन्ना पर्यवेक्षक संवर्ग को वर्ष 2013 में शासन ने पुनर्जीवित करते हुए इस संवर्ग में 3767 पदों की स्वीकृति प्रदान की। शासन द्वारा स्वीकृत किये गये 3767 पदों को प्रदेश के 45 जिलों में आच्छादित गन्ना क्षेत्रफल के आधार पर पुनर्निर्धारण किया गया है। इसी पुनर्निर्धारण के आधार पर गन्ना पर्यवेक्षकों की तैनाती सम्भव होगी। गन्ना पर्यवेक्षकों के पदों के पुनर्निर्धारण के अनुसार कम गन्ना क्षेत्रफल वाले जनपदों में तैनात अधिकांश गन्ना पर्यवेक्षकों को, गन्ना बाहुल्य जिलों में तैनात करने हेतु उनसे मांगे गये 03 विकल्प के आधार पर तैनाती की जायेगी, जिससे गन्ना किसानों को गन्ना पर्यवेक्षकों के माध्यम से विभागीय जानकारियां उपलब्ध हो सकें तथा गन्ना किसान तकनीकी एवं विभागीय योजनाओं का लाभ उठाकर गन्ना उत्पादकता में वृद्धि कर समृद्धशाली बन सकें।