लखनऊ। रिहाई मंच ने जन्तर-मन्तर पर चल रहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ चल रहे जनआंदोलन का समर्थन करते हुए मीडिया से अपील की है वह इस आंदोलन की रिपोर्टिंग में अपनी तटस्थता व विश्वसनियता बनाए रखे। उसे वहीं दिखाना चाहिए जो इस आंदोलन के वास्तविक नेता और संगठन हैं न कि ऊपर से थोपे गए मीडिया और कारपोरेट निर्मित चेहरों को जो हर आंदोलन के अंत में सरकारों से समझौता कर लेते हैं।

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि इस पूरे आंदोलन में देश भर से वामपंथी पार्टियों के नेता-कार्यकर्ता हजारों की तादाद में अपने झंडे और बैनरों के साथ आए हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ एनजीओ के कार्यकर्ताओं ने अन्ना हजारे को केन्द्रित करते हुए एक अलग मंच लगया है। चैनल जिस मंच पर अन्ना को बैठे दिखा रहे थे, वह मंच अन्ना का नहीं था बल्कि वांमपथी पार्टियों माकपा, भाकपा, माले व अन्य दलों का था। जबकि अन्ना का अपना मंच थोड़ी ही दूर पर वीरान पड़ा था। उन्होंने कहा कि वामपंथियों के मंच जिनके आह्वान पर केरल, कश्मीर, उड़ीसा तक से किसान मजदूर आए हैं उनके नेताओं सुनीत चोपड़ा, अतुल अंजान, हन्नान मुल्ला, कविता कृष्णन आदि को साजिशन अनदेखा करते हुए आंदोलन का नेता अन्ना को बताना तथ्यों के साथ छेड़छाड़ है। उन्होंने कहा कि इसी तरह मीडिया में बताया गया कि अरविंद केजरीवाल ने अन्ना के मंच पर आ कर उनके आंदोलन का समर्थन किया जो कि गलत है। अरविन्द केजरीवाल जिस मंच पर गए थे वह वामपंथी पार्टियों का था न कि अन्ना के समर्थकों द्वारा घोषित मंच था।  

रिहाई मंच नेता अनिल यादव ने कहा कि मीडिया का यह आचरण एक वेब साइट (http://www.junputh.com/2015/02/blog-post_25.html)  में गृह मंत्रालय के सूत्र के हवाले से छपी खबर की उनकी तरफ से चैनलों को निर्देशित कर दिया गया है कि आंदोलन में उन्हीं चेहरों को दिखाया जाए जो निगोशिएबल हों यानी जिनसे समझौता किया जा सके, और भी शर्मनाक हो जाता है। जिससे यह साफ होता है कि अपने को गैरराजनीतिक बताने वाले अन्ना और राजगोपाल इत्यादि को सरकार के इशारे से इस आंदोलन का नेता मीडिया बता रही है। ताकि उनसे जरूरत पड़ने पर समझौता किया जा सके जैसा कि तीन साल पहले आदिवासियों के सवाल पर काफी बड़े-बड़े दावों के साथ पीवी राजगोपाल ने दिल्ली तक यात्रा निकाली थी और दिल्ली पहुंचने से पहले आगरा में ही तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश के साथ सौदा कर लिया था और इसी मीडिया ने उस यात्रा में शामिल 12 आदिवासियों जो गर्मी से मर गए थे कि खबर तक नहीं दिखाई।