नई दिल्ली: मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रहमा ने साफ कहा है कि प्रिंट मीडिया में आने वाले विज्ञापनों पर चुनाव आयोग का कोई वश नहीं है। ब्रह्मा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 के दौरान लग रहे आरोप-प्रत्यारोपों और पोस्टर-विवाद पर नाखुशी जताई है और कहा है कि दिल्ली ने इतनी गर्मी पहले किसी चुनाव में नहीं देखी। ब्रह्मा ने कहा कि चुनावों में बयानबाज़ी होती है, लेकिन पार्टियों को अपनी भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए।

आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल पर बने चुनावी पोस्टरों पर सवाल पूछे जाने पर मुख्य चुनाव आयुक्त ब्रह्मा ने कहा कि चुनाव आयोग के पास पर्याप्त अधिकार नहीं है। उनका कहना है कि चुनाव आयोग केवल टीवी पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों की स्क्रीनिंग करता है और प्रिंट मीडिया में आने वाले विज्ञापनों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है।

‘हमने इस बारे में बहुत पहले ही एक प्रस्ताव दिया था, लेकिन प्रिंट मीडिया में आने वाले विज्ञापनों पर अभी हमारा कोई वश नहीं है…’ मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि चुनावों में गर्मा-गर्मी होती है, लेकिन यह उम्मीदवारों की ज़िम्मेदारी है कि वह खुद पर नियंत्रण रखें।

आम आदमी पार्टी की फंडिंग को लेकर उठे विवाद पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने साफ कहा कि उनके पास कोई शिकायत नहीं आई है, लेकिन अगर इस मामले में किसी ने शिकायत की तो वह मामले की जांच के लिए संबंधित एजेंसियों से कहेंगे।

ब्रह्मा ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में सारी पार्टियों में वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की शिकायत की थी, लेकिन आयोग ने सारी वोटर लिस्ट की जांच कर ली है और 90 फीसदी से अधिक गड़बड़ियां दूर कर ली गईं हैं।

जेजे मार्ग पुलिस थाने के वरिष्ठ इंस्पेक्टर अनिल माडवी ने बताया, ‘कास्कर और दो अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 385 (फिरौती के लिए किसी व्यक्ति को घायल होने की स्थिति में पहुंचाना), 323 (अनजाने में आहत करने के लिए सजा) और 34 (साझा नीयत से कई लोगों द्वारा की गयी कार्रवाई) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी है।

बायकुला निवासी 48 वर्षीय पीड़ित ने पहले स्थानीय पुलिस थाने से इस मामले में संपर्क किया, जहां प्राथमिकी दर्ज की गयी और उसके बाद मामले को जे जे मार्ग पुलिस थाने को सौंप दिया गया।

कास्कर को वर्ष 2003 में संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यार्पित कर भारत लाया गया था। दाउद के पांचवें भाई की हत्या के एक मामले और विवादास्पद सारा सहारा मामले में उसकी कथित भूमिका के लिए तलाश थी। सारा सहारा मामले में सरकारी जमीन पर गैर कानूनी तरीके से एक इमारत का निर्माण किया गया था लेकिन वर्ष 2007 में अदालत ने दोनों ही मामलों में उसे बरी कर दिया था।