लखनऊ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में अध्यादेश के जरिये मोदी सरकार द्वारा किये गये संशोधन की कड़ी आलोचना की है और इसे किसान-विरोधी बताया है। पार्टी से संबद्ध किसान महासभा ने इस अध्यादेश के खिलाफ दो जनवरी को उत्तर प्रदेश समेत देशभर में विरोध दिवस मनाने का एलान किया है, जबकि राजधानी लखनऊ में पार्टी की स्थानीय इकाई इस दिन मार्च निकाल कर अध्यादेश की प्रतियां फूंकेगी।

भाकपा (माले) के राज्य सचिव रामजी राय ने कहा कि संसद से पारित कानून में बिना बहस कराये अध्यादेश के माध्यम से संशोधन करना तानाशाही भरा कदम है। उन्होंने कहा कि 2013 का कानून जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ देशव्यापी किसान संघर्षों के फलस्वरुप संसद से बना था। लेकिन मोदी सरकार उसके महत्वपूर्ण प्रावधानों को दरकिनार कर कारपोरेट भूमि हड़प को सुगम बनाने के लिए अध्यादेश लेकर आई है। यह घोर लोकतंत्र-विरोधी कार्रवाई है।

माले नेता ने इस अध्यादेश को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि मोदी सरकार कारपोरेट की सेवा के लिए भूमि अध्यादेश लाने जैसे आपातकालीन उपाय की जरुरत तो महसूस करती है, लेकिन किसान आत्महत्या की तेजी से बढ़ रही घटनाओं को रोकने के लिए आपात कदम उठाने की आवश्यकता कतई महसूस नहीं करती है। उन्होंने कहा कि देश में अध्यादेश राज चल रहा है। मोदी सरकार पहले कोयला खनन में निजी क्षेत्र को इजाजत देने वाला अध्यादेश लाई। उसके बाद बीमा में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) का अध्यादेश लाई। अब भूमि अध्यादेश लेकर आई है। माले नेता ने कहा कि मोदी सरकार ये कदम आपातकाल की याद दिला रहे हैं।