मुस्लिम समुदाय की आतंकी छवि गढ़ने वाले गुजरात पुलिस के अधिकारी हों बर्खास्त:रिहाई मंच

लखनऊ। मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने के लिए गुजरात पुलिस द्वारा नमाजी टोपी पहनाकर माॅक ड्रिल कराने को ’सांप्रदायिक गुजरात माॅडल’ का एक और घिनौना उदाहरण बताते हुए रिहाई मंच ने माॅक ड्रिल कराने के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी व सूरत एसपी को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की है। 

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा है कि मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने के लिए गुजरात पुलिस ने जिस तरह से नमाजी टोपी का सहारा लिया, ठीक उसी तरह हिन्दुत्ववादी संगठन के लोग भी करते हैं। नांदेड में जहां हिन्दुत्ववादी आतंकी बम बनाते हुए उड़ गए थे वहां भी नकली दाढ़ी-टोपी मिली थी। सांप्रदायिकता भड़काने का यह संघ का पुराना इतिहास है जिसके शिकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी हुए थे। आज जिस गोडसे की मूर्ति हिंदू महासभा लगाने का अभियान लिए हुए है, उसके देशद्रोही गोडसे ने भी राष्ट्रपिता को मारने की जो कई कोशिशें की थीं उसमें भी उसने नकली दाढ़ी-टोपी का सहारा लेकर मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा कि सूरत में गुजरात पुलिस ने नमाजी टोपी पहनाकर मुस्लिम समुदाय की जो आतंकी छवि बनाने की कोशिश की उसने यह फिर स्पष्ट कर दिया है कि हमारी पुलिस में भी सांप्रदायिक व फासिस्ट मानसिकता के लोग मौजूद हैं, जो देश को इसी रास्ते पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। यह संयोग नहीं है मेजर उपाध्याय जैसे लोग, जिन्होंने हिंदू राष्ट्र के लिए जो आतंकी साजिशें रची उसी हिन्दू राष्ट्र की बात संघ प्रमुख मोहन भागवत भी करते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों के एक कुनबे का पुराना इतिहास रहा है कि वह हिन्दुत्ववादी संगठनों के मातहत काम करता रहा है। ऐसे में हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में कार्यपालिका की धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए सूरत में गुजरात पुलिस के जिम्मेदार अधिकारियों को तत्काल बर्खास्त किया जाए। 

रिहाई मंच आजमगढ़ प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि दाढ़ी-टोपी या मुस्लिम पहचान के नाम पर जो सांप्रदायिक बीजारोपण किया जा रहा है उसके शिकार आतंकवाद के नाम पर कैद मुस्लिम कैदी व उनके परिजन भी हैं। उन्होंने बताया कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश की भोपाल सेंन्ट्रल जेल में अक्टूबर माह में जब भइया दूज के दिन, जिस दिन केवल महिलाओं को ही मुलाकात की अनुमति दी जाती है, उस दिन जब महिला परिजन जेल में मुलाकात करने के लिए गईं तो वहां उनका नकाब हटाने के लिए पुरुष पुलिस कर्मियों ने दबाव बनाया। महिला परिजनों द्वारा जब इसका विरोध करते हुए महिला पुलिस की मांग तलाशी के लिए की गई तो पुलिस वालों ने कहा कि इतना पर्दा है तो मुलाकात करने क्यों आती हो? बाद में बड़ी जद्दोजहद के बाद महिला पुलिस आई और उसके बाद उनको जेल में मुलाकात के लिए जाने दिया गया। उसके बाद जेल से निकलते हुए फिर इसी तरह पुलिस वालों ने नकाब हटाने के लिए उन्हें परेशान किया। ठीक इसी तरह पिछले दिनों ऐसी तमाम प्रताड़नाओं के खिलाफ साबरमती जेल में आतंकवाद के आरोप के कैदियों ने अनशन भी किया था। संजरी ने कहा कि पुलिस कर्मियों द्वारा सांप्रदायिक आधार पर मुस्लिम पहचान पर उसी तरह का यह संगठित हमला है जिस तरह का हमला संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल सरीखे हिन्दुत्ववादी संगठन कभी ‘लव जिहाद’, ‘घर वापसी’, तो कभी ‘बहू लाओ बेटी बचाओ’ जैसे सांप्रदयिक अभियानों द्वारा करते हैं।