मोहम्मद आरिफ नगरामी

मोहम्मद आरिफ नगरामी

जकात इस्लाम के बुनियादी रूकन में से एक अहम रूकन है शरीअत इस्लामन ने तमाम इबादती अमाल की अदायगी के तरीके भी अपने मानने वालो को अता फरमाये है जकात भी चूंकि एक इबादती अमल है और माली इबादतों में सबसे अहम अमल है लेहाजा इस बुनियादी अरकान भी शरीअत ने खुद मतीन करके दिये है। चुनाचे जहां जकात देने वालो के लिए शरीअत मुकर्रर फरमाई हे वहां जकात लेने वाले भी खुद ही बताते है। कि जिनके अलावा लोगों को देने से यह अदा ही नही होगी। गोया कि जकात कोई बदया मावजा बला नही है न ही यह ऐसी चीज है जिसे मफादामा के ऐसे रफाही कामों में खर्च किया जा सके। जिनसे आतमुन्नास के फकरे गनी फायदा उठा सकतें न ही इसके लिए इस्तेमाल की आम इजाजत देना काफी है बल्कि उसमें मुस्तहक जकात को गैर मुशरूत तौर पर मालिक बना कर इस का कब्जा करा देना लाजमी है जिसे मालिक बन कर बिला रोक टोक खच्र कर सकें।

शरीअत इस्लाम ने उसे माल का मेल करार दिया और खुद नबी अकरम स.अ. और उनकी आ को इससे दूर रखा है। साफ वाजेह अल्फाज में यह तन्बीह की गयी है कि गैर मुस्तहक जकात लेगा तो जकात का माल असल माल को भी तबाह कर देगा। यहां पहुच कर वह असातजह तलबा मदारिस का अमला जो गनी होने के बावजूद नादार तलबा को खिलाया जाये वाला जकात का खाना बगैर कीमत के खाते है। इन्हे गैर करना चाहिए लेहाजा वह लोग जो अपनी आमदनी बढ़ाने या बचत में इजाफा करने के चक्कर में जकात मांगते रहने की आदत बना चुके है। अपनी परेशानियों पर भी गौर कर लें और इस का अन्जाम भी सोच लें फकहा किराम ने जिस शख्स के पास रोज मर्रा इस्तेमाल की चीजों से ज्यादा सामान बरतन बिस्तर चार पाईयां तीन जोड़े कपड़ेा से ज्यादा कपड़े रेडियो टेलीवीजन वगैरा) सोना चांदी माल तिजारत नकद कौमा हो और उन तमाम की मालियत अगर साढ़े बावन तोला चांदी या उससे ज्यादा की मालियत तक पहुंच जाती है तो उस शख्स के लिए जकात लेना ना जायज लिखा है। लेहाजा घरो में काम करने वाली मुलाजीनों को बेधड़क बगैर तहकीक जकात देने वालो को अपनी जकात की अदायगी या अदम अदायगी के बारे में जरूर गौर व फिक्र करना चाहिए। नीज जकात करने वाले के दरवाजे पर आने वाले हर किसी ना किसी को बगैर तकीक कि आया वह मुसलमान भी है या नही, मुस्तहेक है या नही सै. हाशमी तो नही जकात की करम या अशिया बाट देना भी लम्हा फिक्र यह है कि इसी तरह गरीब इलाकों में मंदरजा अमूर की तहकीक किये बगैर जकात बाटने वालो को भी उलमा से रहनुमाई हासिल करनी चाहिए।
उलमाए किराम ने जकात लेने वालो की चन्द सफात बयान की है जो दर्जा जेल है।

मुत्तकी परहेजगार हो यानी दुनिया से बेरागिब और आखरत के कामों में मशगूल हो अहले इलम हो मशगूलियत इबादतो में आला अशरफ तरीन इबादत हो अपनी किल्लत माश और आमदनी की कमी का रोना हर किसी न किसी के सामने न रोता रहता हों दरहकीकत ऐसा शख्स ऐसा जरूरत मंद है जो जाहिर में गनी है मालदार हो ओर माशी तंगी में ऐसा घिरा हों कि बकदर जरूरत कमाई से कासिर हो ऐसा बीमार या माजूर हो कि कमाई से आजिज हो रिश्तेदार हो कि उमसें सिला रहमी का सवाब है।

जकात की तारीफ जकात लगत में पाक होने और बढ़ने को कहते है शराअन जकात के मानी साहब नसाब शख्स का शराअत पूरी कर लेने के बाद मखसूस माल का किसी मखसूस शख्स को मालिक बना देना है। साहब नसाब उस शख्स को कहते है जिसके पास अपने और जेरे कफालियत अफराद पर उनकी जरूरत पर खर्च करने और अगर इस पर जाती तौर पर किसी का कर्जा हो तो उसको शुमार कर लेने के बाद जरूरत से जयादा इतनी रकम से साढ़े बावन तोले चांदी या इससे ज्यादा खरीदी जा सकती है। मसलन किसी मुसलमान के पास जिन्दगी में पहली मर्तबा इतनी रकम किसी साल के यकुम रमजान में या किसी भी महीने की किसी भी तारीख में जमा हो जाये जो न फौरी तौर पर किसी जरूरत की हो और न ही इस पर किसी का कर्जा हो फिर एक साल मुकम्मल होने के बाद फिर अगले साल के यकुम रमजान को इसी तरह बचत इस मकदार या इससे ज्याद की हो तो ऐसा शख्स शराअन साहबे नसाब कहलाता है।
जकात अदा करने वाले की शराअन मुसलमान होना मर्द या औरत आजाद होना गुलाम पर जकात फर्ज नही आकिल होना मजनू या पागल को जकात नही नाबालिग होना नाबालिग पर जकात फर्ज नहीं माल का मुकम्मल तौर पर मलकियत और कब्जे में हेाना।

जकात फर्ज होने के अमवाल की शराअतः- माल का बकदर नसाब होना माल जरूरीयात असल से ज्यादा होना माल का कर्जो से फारिग होना कजा्र न होने की वजह से वह माल कर्जे के बकियादार होने के हुक्म में है माल का हकीकतन मकदार और मालियत में बढ़ाने वाला होना यानी मालिक चाहे तो अपने माल में इजाफा भी कर सकता है। माल पर साल पूरा गुजर जाना यानी जिस तारीख को मालिक साहब नसाब बना हो अगले साल की इस तरीख को उसकी हिसाब नसाब की हैसियत बाकी हो चाहे दरमियान साल में कमी क्यो न वाकई हो गयी हो। जकात के हिसाब में शामिल होने वाली सोना चीजें माले तिजारत व नकद रकम,
मंदरजा बाला अशिया थोड़ी थोड़ी मकदार में हो और सब मिलाकर साढ़े बावन तोले चांदी की मालियत तक पहुंच जाती हो तो सबकों शामिल करके जकात का हिसाब किया जायेगा। हर हर शे पर अलाहेदा अलाहेदा साल पूरा होना जरूरी नही जकात का साल मुकम्मल होते ही तमाम मजकूरा बाला चीजों की मालियत लगाई जायेगी। चाहे उनमे से बाज चीजें एक लम्हा पहले ही क्यों न मलकियत मे ंआयी हों मजकूरा बाला अशिया की कीमत खरीन नही बल्कि साल पूरा होने पर उनकी मार्केट कीमत से हिसाब किया जायेगा। यानी मालिक अगर खुद उनकेा बाजार में बेचने जाये तो जो कीमत उसे मिलेगी उसका हिसाब किया जायेगा।
जकात की मकदार हरसाल जकात का साल मुकम्मल होने पर मजकूरा बाला चारों अशिया की ठीक ठीक पूरी पूरी मालियत का हिसाब करके उनमें से चालीसवां हिस्सा यानी ढ़ाइ्र फीसद जकात की मकदार है।

जकात के फर्ज हेाने का वक्तः- जकात का साल मुकम्मल होते ही जकात अदा कर देना फर्ज हो जाता है इसमें बगैर किसी अजर के ताखीर करना गुनाह है अलबत्ता जकात का साल मुकम्मल होने से पहले जकात आदा करने से अदा हो जायेगी।

कुरआन व सुन्नत में जकात की फरजियत और फजीलत व अहमियत पूरी वजाहत के साथ बयान की गयी है यह इस्लाम का बुनियादी रूकन ओर एक अहम दीनी फरीजा है मुखतसर लफ्जों में जकात मआशरे से गुरबत के खात्मे माशी और नज्म माशियत का बुनियादी सबब है।