लखनऊ:
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सोशल मीडिया डिजिटल प्लेटफार्मस की चेयरपर्सन एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने आज लखनऊ में प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश में बढ़ती महंगाई, उच्चतम बेरोज़गारी और कुशासन की विफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित विभाजनकारी एजेंडे का दंश झेल रहे देशवासियों के साथ कांग्रेस पार्टी कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है। लेकिन एक ज़िम्मेदार विपक्षी दल होने के नाते हम भाजपाई सत्ता के मित्र पूंजीपतियों को सरकारी खजाने की लूट की खुली छूट और प्रधानमंत्री से संबंधित इस पूरे अडानी महाघोटाले में हो रहे घोटालों से भी चिंतित हैं। इसलिए हम सरकार को उसकी ज़िम्मेदारी से भागने की इजाज़त नहीं दे सकते और आज‘ हम अडानी के हैं कौन’ श्रृंखला में देश के 23 प्रमुख शहरों में प्रेस वार्ताएं कर रहे हैं।

श्रीनेत ने कहा कि सरकार ने राहुल गांधी के सवालों और कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खरगे जी के भाषण के अंशों को बेशक संसदीय कार्यवाही से हटा दिया हो लेकिन भारत के लोग सब देख रहे हैं कि संसद में क्या हो रहा है। लोग जानना चाहते हैं कि सरकार संसदीय भाषणों का स्तर गिराने की कोशिश क्यों कर रही है और प्रधानमंत्री संसद में प्रासंगिक सवालों के जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि देशवासी जानना चाहते हैं कि कैसे एक संदिग्ध साख वाला समूह, जिस पर टैक्स हेवन देशों से संचालित विदेशी शेल कंपनियों से संबंधों का आरोप है, भारत की संपत्तियों पर एकाधिपत्य स्थापित कर रहा है और इस सब पर सरकारी एजेंसियां या तो कोई कार्यवाही नहीं कर रही हैं या इन सब संदिग्ध गतिविधियों को ही सुगम बनाने में जुटी हैं। भारत के लोग बहुत बुद्धिमान हैं और वे मोदी जी और उनके मित्र पूंजीपतियों के बीच संपूर्ण पारस्परिक तालमेल को समझ सकते हैं। वे जानना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री ने एक मित्र पूंजीपति को विश्व के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति बनाने में मदद क्यों की और वे इस गंभीर अंतरराष्ट्रीय खुलासे पर चुप क्यों हैं?

हम किसी व्यक्ति के दुनिया के अमीरों की सूची में 609वें से दूसरे स्थान पर पहुँचने के खिलाफ नहीं है। लेकिन हम निस्संदेह सरकार द्वारा प्रायोजित निजी एक अधिकारों के खिलाफ हैं क्योंकि वे जनता के हितों के विरुद्ध होते हैं। विशेष तौर पर हम टैक्स हेवन देशों से आपत्तिजनक संबंधों, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एक ख़ास व्यक्ति द्वारा हमारी अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना और राष्ट्रीय संसाधनों का लाभ उठाते हुए एकाधिपत्य स्थापित करने के खिलाफ़ हैं।

उन्होंने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि मोदी सरकार इस मुद्दे पर जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति बनाने से क्यों डर रही है जबकि संसद के दोनों सदनों में उसका अच्छा बहुमत है।

श्रीनेत प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने से पहले कालाधन भारत वापस लाने और हर नागरिक के बैंक खाते में 15-20 लाख रुपऐ डालने का वादा किया था लेकिन आज की कड़वी सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। स्विट्ज़रलैंड के केंद्रीय बैंक के पिछले वार्षिक डेटा के मुताबिक 2021 में स्विस बैंकों में जमा भारतीय व्यक्तियों और कंपनियों का पैसा 14 वर्षों के उच्चतम स्तर 3.83 बिलियन स्विस फै्रक्स (30,500 करोड़ रु. से अधिक) पर पहुँच गया है।

हम जानना चाहते हैं कि टैक्स हेवन देशों से संचालित होने वाली विदेशी शेल कंपनियों से भारत आने वाले काले धन का असली मालिक कौन है? क्या हुआ तेरा वादा, वो कसम वो इरादा? काले धन पर प्रधानमंत्री के वादे का क्या हुआ?

प्रधानमंत्री ने कई बार भ्रष्टाचार से लड़ने में अपनी निष्ठा और नीयत की बातें की है लेकिन उनके क़रीबी मित्र स्पष्ट तौर पर ऐसे अवैध कार्यों में लिप्त रहे हैं जो आमतौर पर माफ़िया, आतंकी और शत्रु देश रहते हैं।

वर्षों से प्रधानमंत्री मोदी ने ईडी, सीबीआई और DRI (खुफ़िया राजस्व निदेशालय) जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग अपने राजनीतिक या सैद्धांतिक प्रतिद्वंदियों को डराने-धमकाने के लिए किया है, साथ ही उन व्यापारिक घरानों को दंडित करने के लिए भी किया है जो उनके पूंजीपति मित्रों के वित्तीय हितों के अनुरूप नहीं हैं।

सुप्रिया श्रीनेत ने आगे कहा कि 1992 में हर्षद मेहता मामले की जाँच के लिए एक जेपीसी का गठन हुआ था जबकि 2001 में एक जेपीसी ने केतन पारेख मामले की जाँच की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव और प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, दोनों को करोड़ों भारतीय निवेशकों को प्रभावित करने वाले घोटालों की जाँच के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों पर विश्वास और भरोसा था। प्रधानमंत्री मोदी को किस बात का डर है? क्या उनके अधीन एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष जांच की कोई उम्मीद है?