दिल्ली:
उम्मीद के मुताबिक निर्वाचन आयोग ने एकनाथ शिंदे की टीम को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी है. आयोग ने शुक्रवार को शिवसेना का ‘तीर-कमान’ चुनाव चिह्न भी शिंदे गुट को दे दिया है. निर्वाचन आयोग के इस फैसले से उद्धव ठाकरे को अपनी पार्टी का नाम और पहचान दोनों खोना पड़ा है.

यहीं नहीं चुनाव आयोग ने उद्धव गुट के पार्टी का संविधान को ही अलोकतांत्रिक बता दिया है. इसमें लोगों को बिना किसी के चुनाव के नियुक्त किया गया था. आयोग ने यह भी पाया कि शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों को गुपचुप तरीके से वापस लाया गया, जिससे पार्टी निजी जागीर के समान हो गई. इन तरीकों को चुनाव आयोग 1999 में नामंजूर कर चुका था. इसी के साथ महाराष्ट्र में शिवसेना से अब उद्धव गुट की दावेदारी खत्म मानी जा रही है.

78 पन्नों के आदेश में चुनाव आयोग ने कहा कि विद्रोह के बाद मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे को 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टी के विजयी वोटों के 76 प्रतिशत विधायकों का समर्थन प्राप्त था. इसके साथ ही आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को पिछले साल आवंटित ‘मशाल’ चुनाव चिह्न रखने की अनुमति दी.

चुनाव आयोग के फैसले पर खुशी जताते हुए एकनाथ शिंदे ने कहा, “मैं चुनाव आयोग को धन्यवाद देता हूं. लोकतंत्र में बहुमत मायने रखता है. यह शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की विरासत की जीत है. हमारी असली शिवसेना है.”

वहीं, उद्धव गुट से सांसद संजय राउत ने कहा- ‘इस तरह के फैसले की उम्मीद थी. हमें चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं है.” सूत्रों ने कहा कि उद्धव ठाकरे गुट की ओर से इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.