तौक़ीर सिद्दीक़ी

भारतीय रूपये ने आज अपने सर्वकालिक निचले स्तर का नया कीर्तिमान बनाया, एक डॉलर की कीमत अब 77 रूपये 42 पैसे हो गयी. खबर अपने आप में बहुत बड़ी है, ऐसी खबर जिस पर कोई भी देशवासी गौरान्वित महसूस नहीं करेगा, लगभग एक दशक पहले रूपये के अवमूल्यन को बुरा कहा जाता था, 2014 तक आते आते वह देश की गरिमा से जुड़ गया, हर गिरावट पर सरकार को घेरा जाने लगा. पता नहीं राजनीतिक मंचों से क्या क्या बोला जाने लगा. पार्लियामेंट में ज़ोरदार बहस भी होने लगी, बताया जाने लगा रुपया सिर्फ कागज़ का टुकड़ा नहीं बल्कि देश की प्रतिष्ठा होती है, अर्थात रुपया गिरा मतलब प्रतिष्ठा गिरी। प्रतिष्ठा किसकी? देश की और प्रधानमंत्री की.

उस समय मनमोहन-2 की सरकार चल रही थी, CAG द्वारा बहुत से घोटालों का पर्दाफाश हो रहा था जो सारे के सारे बाद में फ़र्ज़ी निकले। CAG ने एक पार्टी विशेष के लिए वह सब अनुमान गढ़े थे. खैर अब तो CAG का कोई महत्व ही नहीं है. क्रूड आयल के दाम भी आसमान छू रहे थे तो तमाम रोक के बावजूद पेट्रोल 72 तक पहुँच गया था. डॉलर भी 64 रूपये पर आ गया था. उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदार मोदी प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे. हर मंच से वह रूपये के अवमूल्यन पर सरकार से सवाल और लोगों को ज्ञान दे रहे थे. पैसे के प्रति गुजरातियों का महत्व बता रहे थे. तब वह नहीं बल्कि देश पूछता था कि रूपये में गिरावट क्यों ? पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका की करेंसी में गिरावट क्यों नहीं?

तब गुजरात के मुख्यमंत्री कहते थे कि मनमोहन को सिर्फ कुर्सी बचाने की चिंता है रुपया बचाने की नहीं, तब रूपये में गिरावट के साथ देश की गरिमा गिरने की बात होती थी, तब आज के प्रधानमंत्री कहते थे कि निकम्मी सरकार के चलते रुपया गिर रहा है. तब मोदी जी मनमोहन सरकार को दिशाहीन बताते थे. रूपये के अवमूल्यन पर मोदी जी ने मनमोहन सरकार को घेरने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा। पर क्या पता था कि जब वह खुद प्रधानमंत्री बनकर विश्वगुरु बनने का दावा करेंगे तो उनके सामने भी वही नौबत आएगी जो कभी मनमोहन सिंह के सामने आयी थी. तब मोदी जी कहते थे पूछता है भारत, आज उन्हीं मोदी जी से पूछता है भारत।

मोदी से भारत पूछ रहा है कि क्या हुआ आज? क्या रूपये की गिरावट से अब देश की, प्रधानमंत्री की गरिमा गिरनी बंद हो गयी? क्या अब रुपया कागज़ का टुकड़ा हो चूका जिसके अवमूल्यन से देश की प्रतिष्ठा का जुड़ाव ख़त्म हो चूका है? क्या अब रूपये में गिरावट का सरकार की निकम्मी पॉलिसियों से कोई मतलब नहीं रहा? क्या आप भी रूपये में गिरावट की परवाह नहीं कर रहे हैं? क्या आप भी सरकार बचाने में लगे हैं? आपके पास तो अपार बहुमत है, फिर क्यों चुप हैं आप? क्या अब सरकार और पैसे की गिरावट में कम्पटीशन नहीं चल रहा है? यह सारे जुमले किसी और ने नहीं आप ही ने कहे थे. मनमोहन को तो आप मौन प्रधानमंत्री बताते थे लेकिन आप तो बड़े मुखर हैं, फिर यह ख़ामोशी क्यों? क्या आत्मग्लानि हो रही है जो यह सब आपने पहले बोल रखा है अब आप के सामने है. आपको आइना दिखा रहा है. मोदी जी आप भले ही चुप्पी धारण कर लें लेकिन रूपये के गिरावट के साथ गरिमा आज भी गिरती है, देश की भी प्रधानमंत्री की भी.