ज़ीनत क़िदवाई

ज़ीनत क़िदवाई

रमज़ान के पवित्र माह में उपवास के बाद उपहार स्वरुप ईद मनाई जाती है | महीना भर लोग खुदा की इबादत करते हैं | इसबार कोरोना के कारण ईद भी महामारी से उपजे नियमों और क़ानून के बंधन में जकड गयी है | मस्जिदें बंद हैं , इफ्तार पार्टियां बंद हैं और लोग सामूहिक रूप में कोई कार्य नहीं कर रहे इसलिए तरावीह भी घरों में पढ़ी गयी है और सोशल डिस्टेंसिंग कानून के चलते ईद की नमाज़ भी घरों में ही पढ़ी जाएगी | पहले लोग इकठ्ठा होकर ईदगाह और मस्जिदों में ईद की नमाज़ पढ़ते थे और नमाज़ पढ़ने के बाद गले मिलकर एक दूसरे को ईद की बधाई देते थे थे जो अब सोशल डिस्टैन्सिंग के कारण संभव नहीं है| वह लोग जो त्यौहार के समय दूर दूर से अपने परिवार के साथ ईद मनाने आते थे वह भी यात्राएं बंद होने के कारण से नहीं आ पाएंगे |

त्योहारों पर लोग नए नए कपड़े बनाते थे, महिलाओं की तो बात ही न पूछिए, उनके लिए ईद तो एक त्यौहार नहीं एक बहुत बड़ा टास्क होती थी जिसको पूरा करने के लिए पहली रमज़ान से खरीदारी शुरू कर देती थी | कपडे जूते चप्पल चूड़ी बर्तन, घर का सजावटी सामान और न जाने क्या क्या खरीदती थीं| इस खरीदारी से उन्हें जो ख़ुशी मिलती थी वह शायद ईद से बढ़कर होती थी लेकिन कोरोना ने उनसे इसबार यह खुशियां छीन लीं| लॉकडाउन के कारण बाज़ार बंद हैं जिससे यह सब संभव नहीं| बच्चों की अलग समस्या है, वह भले ही नए कपड़ों के लिए उतना परेशान नहीं जितना इस बात को लेकर परेशान कि उनको नातेदारों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों से ईदी कैसे मिलेगी | इस तरह बच्चों को ईदी मिलने की जो ख़ुशी मिलती थी वह भी कोरोना ने छीन ली| ईद की मेन डिश सिवईं है जिसको बनाने के लिए बहुत से सामान की ज़रुरत होती है जो लॉकडाउन के कारण उपलब्ध नहीं इसलिए सिवइयों का बनना भी मुश्किल है, अगर बनेगी भी तो उसमें शायद पिछले साल जैसा ज़ायका नहीं होगा? ईद की एक और ख़ास डिश बिरयानी भी गोश्त की बिक्री बंद होने के कारण नहीं बन पायेगी| इस तरह यह एक बहुत बड़ा बदलाव है जो कोरोना संकट के कारण इस ईद पर आया है जिससे ईद बंधनों में बंध गयी है और केवल रस्म अदायगी भर रह गयी है |

कोरोना के कारण देश में कितनी परेशानी है, कितने मज़दूर सड़कों पर हैं, बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है और दुर्घटनाओं में होने वाली मज़दूरों की मौतों ने इंसानियत को झिंझोड़ दिया है | लोगों के परेशानहाल और दुखी चेहरे देखकर दिल अंदर से निराश हो गया है, ऐसी निराशा की हालत में ईद मनाने की कोई ख़ुशी दिखाई नहीं देती| सड़कों पर भयभीत करने वाला सन्नाटा फैला है | बड़े बड़े बाज़ार जो त्योहारों के समय पर खरीदारों की भीड़ से भरे रहते थे आज वीरान पड़े हैं| यह वीरान बाज़ार दिलों को भी वीरान कर रहे हैं|

हर ज़िम्मेदार व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी को लेकर चिंतित है कि कोरोना काल में अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कैसे करें? कोई आगे आने वाली समस्याओं के विषय में सोच रहा है तो कोई यह कह रहा है कि ऐ ईद तू इस बार क्यों आयी?

यह कैसे ईद? ईद तो अपने रिश्तेदारों पड़ोसियों के साथ मिलकर मनाई जाती है| यह कैसी ईद? जहाँ न कोई गले मिलेगा, न हाथ मिलकर बधाई देगा, जो कुछ करेगा अकेले ही करेगा |

मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी वर्ग ने तय किया है कि इसबार ईद में होने वाले खर्चों को मज़दूरों ग़रीबों और परेशान लोगों की मदद के लिए खर्च किया जाय और फ़िज़ूलख़र्ची से बचा जाय ताकि ज़रूरतमंदों की मदद हो सके और मदद करने वालों से गुज़ारिश है कि मदद करते समय किसी का चेहरा न देखे, किसी के मांगने का इंतज़ार न करें और बढ़कर ख़ामोशी से मदद करें | खुदा का दरबार बहुत बड़ा है, वहां मदद करने वालों की हमेशा मदद होती है| नसीब वाले होते हैं वह लोग जिनके हाथों खुदा ज़ारूरतमन्दों की मदद करवाता है|

खैर कोई बात नहीं, इसबार बंधनों से बंधी ईद ही सही| शायद खुदा अपने बन्दों का इम्तेहान ले रहा है| अब देखना है की उसका बाँदा इस इम्तेहान में पास होता या फेल|