मोहम्मद आरिफ नगरामी

शेरे मैसूर, टीपू सुल्तान का आज यौमे पैदाईश है। वह एक आदिल हुक्मरों, एक आला मुन्तजिम, मुस्तकबिल सनाश, एक मर्दे मुजाहिद और एक अजीम सिपहसालार ही नहंी बल्कि एक मुदब्बिर, एक कादिरूल कलाम शायर और एक स्कालर भी थे, जिसे आजादी का जज्बा जुरअत, शुजाअत, अज्म व इस्तकलाल, सख्तकोशी, खतरपसंदी, और जहंगी हिकमते अमली, वरसे में मिली थी, यह कहना बेजा न होगा कि हिन्दुस्तान के तूल व अर्ज पर अगर किसी ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किये तो वह टीपू सुलतानही थे जिनकी जेहानत, फेरासत, मुस्तकबिल शनासी, और कायेदाना, तिलिस्मी सलाहियत, के आगे अंग्रेेज बेबस नजर आये, जब तक टीपू सुलतान की आखिरी सांस बाकी रही, फरेबी अंग्रेजों का हाल आशिफता और मुस्तकबिल लापता रहा। चुनांचे अपनो के गद्दारों मराठों और नेजाम के गठजोड की बदौलत, 4 मई, 1799 को टीपू सुलतान की रगों का सारा लहू मैसूर की खाक में जज्ब हो गया तो उसकी ,खबर अंग्रेज जनरल हार्स को जैसे ही मिली तो फरते खुशी से झूम उठा, कि ‘‘आज हिन्दुस्तान हमारा है‘‘ ।

अंग्रेजों ने वसीअ नजर, इन्साफ पसंद, और रियाया परवर, शेरे मैसूर के बारे मेें मनगढत और बेबुनियाद अफसाने गढ कर गुमराहकुन मवाद पेश किया ताकि हिन्दुस्तान के कदीम हमआंहगी, रवादारी और आपसे रिश्तों को तार तार किया जा सके। इनके झूठे हकाएक और जहेर आलूम बातें अंग्रेजों की किताबों में बिखरी पडी हैं। टीपू सुलतान के बारे में ज्ञानपीठ एवार्ड याफता ग्रिरीश कर्नाड, का बयान काबिले सताइश है कि टीपू सुलतान मुसलमान होने के बजाये हिन्दू होते तो उन्हें भी शिवाजी जैसा एजाज मिलता। गोया शेरे मैसूर के साथ सिर्फ मजहब की बुनियाद पर सौतेला बर्ताव रखा गया।

टीपू सुलतान एक कुशादा जेहन के फरमारवा थे, वह जितने बहादुर थे उतने ही खुदातर्स और असबीअत से पाक भी थे। उनकी नजरों में हिन्दू और मुसलमान दोनों भी बराबर थे। टीपू सुलतान की रवादारी की इससे बडी मिसाल क्या होगी कि टीपू सुलतान का मालियात और मालगुजारी का इन्चार्ज पंडित पूर्णा था जब कि डाक और पुलिस का सरबराह, रंगा ऐंकर था। मूल चंद विसर्जन राय मुगल दरबार में इसके चीफ नुमाइन्दे थे। टीपू का खास पेशकार, सिया राव भी एक हिन्दू था। श्री निवास, और अपाजी राम उनके करीबी साथी थे, टीपू के घुडसवार फौज का सरबराह हरि सिंह था।

टीपू सुलतान एक इन्तेहाई सेक्युलर और मंन्सिफ मेजाज शख्सियत का मालिक था जिसने बिला तफरीक मजहब व मिल्लत अपनी रियाया के लिये काम किया, मैसूर गजट के मुदीर प्रो0 श्री कांता ने 156 मंन्दिरों और मठों की फिहरिस्त पेश की है जिनको टीपू सुलतान बाकायदगी से सालाना अतिया देते थे।
1782, और 1799 के दरमियान टीपू सुलतान ने अपनी सलतनत में मन्दिरों को वक्फ के 34 सनद जारी किये जक कि ज्यादा तर मंदिरों को सोने और चांदी के तहाएफ पेश किये, जब कि फिरंगी के मठ को मराठों ने तबाह कर दिया था, तब टीपू ने ही उस मठ को अस्सरे नव तामीर कराया था।

फादर आफ नेशन महात्मा गांधी ने टीपू सुलतान के बारे में कहा था कि गैर मुल्की मुअर्रिखीन ने टीपू को एक सख्तगीर और जुनूनी के तौर पर पेश किया है जिसने अपनी हिन्दू रियाया पर जुल्म ढाये और उन्हें इस्लाम मजहब कुबूल करने पर मजबूर किया, जब कि टीपू के तअल्लुकात अपनी हिन्दू रियाया से बहुत खुशगवार थे।

बहरकैफ तारीख को उस अहेद के जमा व मकां में देखने की जरूरत है, लेहाजा टीपू सुलतान के किरदार और उसके नजरियात को अट्ठारहवीं सदी के जिम्न में समझना चाहिये जब हर तर शहेन्शाहियत का बोल बाला था, अंगेजों ने मिशनरी को सलतनत खुदादाद के खिलाफ भडकाने मेें कोई कसर नहंी छोडी थीं, चुनांचे टीपू को उनकी सरकूबी के लिए सख्त कदम उठाने पडे।