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लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह ने तीन काले कृषि कानून पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पिछले सात या आठ वर्षों में, सरकार, भाजपा या उसके मंत्रियों ने कभी भी आंदोलनों में लोगों की मौत पर एक भी शब्द नहीं कहा, चाहे छात्र विरोध हो या सीएए-एनआरसी या किसानों का विरोध हो।अपने चिरपरिचित अंदाज़ में किसानों से घर वापिस जाने के लिए कह रहे है परन्तु किसान जानता है कि खेत में फसल पकना तो शुरुआत है लेकिन जब तक फसल का मंडी में उचित मूल्य नहीं मिल जाता तब तक काम पूरा नहीं होता।

एम.एस.पी के लिए कानून बनाना ही पड़ेगा किसानों को खैरात नहीं चाहिए उनको उनका हक चाहिए। श्री सुनील सिंह ने कहा कानून वापसी की घोषणा तो कर दी गई है लेकिन किसानों को तब तक पहरेदारी करनी होगी जब तक कि संसद में इसे वापिस नहीं ले लिया जाता। सिंह ने आगे कहा की 700 से अधिक किसान पिछले एक साल में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में शहीद हुए पिछले एक साल में इन शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में 700 से अधिक किसान मारे गए। जबकि वे सभी जिन्होंने एक कारण के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, उन्हें ‘शहीद’ कहा जाता है, फिर भी इसे नजरअंदाज या भुलाया नहीं जाना चाहिए कि आखिरकार यह केंद्र सरकार है और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है, लोकदल की मांग है कि सरकार उन्हें शहीदों की संज्ञा के साथ मुवाजा भी दे। सरकार द्वारा तीनों कानूनों को खत्म करने से ही काम नहीं चलेगा। लोकदल की मांग मोदी सरकार को किसान आंदोलन की कारपोरेटपरस्त नीतियों को बदलने, सी 2 प्लस के आधार पर एमएसपी पर कानून बनाने, विद्युत संशोधन अधिनियम 2021 की वापसी, पराली जलाने सम्बंधी कानून को रद्द करने, लखीमपुर नरसंहार के दोषी केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी और आंदोलन के दौरान लगाए सभी मुकदमों की वापसी जैसी मांगों पर किसानों के साथ वार्ता कर उन्हें हल करना चाहिए।

सुनील सिंह ने महगाई ,बेरोजगारी ,आर्थिक स्थिति कमजोर के साथ-साथ यह भी कहा है कि न सिर्फ किसान बल्कि नौजवानों, मेहनतकश वर्ग और आम आदमी का इस तानाशाही सरकार में गुस्सा बढ़ रहा है। उसकी तानाशाही पूर्ण जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश बढ़ रहा है। न सिर्फ 2022 के विधानसभा चुनावों में बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा।