अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार अब्दुल बारी अतवान ने प्रसिद्ध अरबी भाषी समाचार पत्र रायुल यौम में अपने संपादकीय में लिखे लेख में संयुक्त अरब इमारात और इस्राईल के बीच हुए षड्यंत्रकारी समझौते की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि, इस समझौते को इमारात सरकार ने अमेरिका की निगरानी और उसके समर्थन से इस्राईल के साथ किया है। उन्होंने लिखा की यह विश्वासघात का चरम है। यह बिल्कुल उन समझौतों की तरह है जो मिस्र, जॉर्डन और फ़िलिस्तीनी प्रशासन ने ज़ायोनी शासन के साथ किया था। अब्दुल बारी अतवान ने लिखा है कि, सबसे दुखद बिंदू यह है कि कुछ लोगों ने इस समझौते का स्वागत किया है और वह प्रयास कर रहे हैं कि इसको सही ठहराएं। ऐसे लोग इस समझौते को ऐतिहासिक भी बता रहे हैं और इसे अरब जगत के लिए उम्मीद की किरण बता रहे हैं, लेकिन यह सोचने की बात है कि क्या संचुरी डील के अंतर्गत फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का सौदा करना, मस्जिदुल अक़्सा को दुश्मनों को सौंपना और सभी अरब और इस्लामी सिद्धांतों को छोड़ देना, ऐतिहासिक दिन कहलाएगा? क्या यह समझौता, जो ईरान से मुक़ाबले के नाम पर बनाया गया है, एक नया युग है या न्याय के नाम पर होने वाली साज़िश का हिस्सा है? यह कैसा समझौता है कि इसमें कहीं भी बैतुल मुक़द्दस और फ़िलिस्तीन सरकार का नाम नहीं आया है? इन अरब शासको का चाहिए कि अगर वे मुसलमानों का सम्मान नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उनकी अंतरात्मा का अपमान तो न करें।

यह कहना कि इस्राईल और संयुक्त अरब इमारात के बीच होने वाला समझौता फ़िलिस्तीनी मुद्दे को एक स्थायी समझौते की ओर बढ़ा रहा है, इस तरह की बातों का अर्थ यह है कि फ़िलिस्तीन मुद्दे को पूरी तरह ख़त्म करना है। इस मामले में नेतनयाहू द्वारा की गई टिप्पणी शायद इसकी सबसे सही व्याख्या हो जिसमें उन्होंने कहा है कि, “वे समझौता बनाम समझौता के आधार पर हमारे साथ अपने रिश्तों को सामान्य करते हैं, क्योंकि हम ताक़तवर हैं और वे कमज़ोर हैं। हालांकि नेतनयाहू यहां उन अरबों के बारे में बात कर रहे थे, जिन्होंने इस्राईल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश की है या ऐसा करने के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन दूसरे अरब भी हैं जो प्रतिरोध के रास्ते पर चलते हैं और उनका प्रतिरोध इस बात का कारण बनेगा कि नेतनयाहू अपनी जान बचाने के लिए किसी चूहे तरह बिल तलाश रहे होंगे। इस चीज़ का नमूना हम नेतनयाहू द्वारा अवैध ज़ोयनी कॉलोनियों में आयोजित एक चुनावी सभा के दौरान देख चुके हैं। जब प्रतिरोध के जियालों ने गज़्ज़ा से मिसाइलों की बारिश की थी और वह अपनी जान बचाने के लिए बिल की तलाश कर रहे थे। वहीं कुछ अरब अमेरिकी राष्ट्रपति डोन्लड ट्रम्प को नक़द या हथियारों की ख़रीदारी के रूप में बाज देने की कोशिश करते रहते हैं, ताकि अमेरिका उनका समर्थन करता रहे। यह विषय विशेषकर फ़ार्स की खाड़ी के अरब देशों में ज़्यादा देखने को मिलता है। यह लोग ज़ायोनी शासन को भी बाज दे रहे हैं। क्योंकि यह इन देशों के शासक डरे हुए हैं और अपने आपको सभी संभावित ख़तरों से सुरक्षित रखना चाहते हैं।

हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि नेतनयाहू और डोनल्ड ट्रम्प एक हारे हुए नेता हैं, लेकिन उन्हें इस समझौते ने थोड़े समय के लिए कथित जीत का एहसास दिलाया है। अब सवाल यह है कि इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद संयुक्त अरब इमारात सरकार के हाथ क्या आने वाला है? यूएई एक तेल से समृद्ध धनी देश है। इस देश का फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ रक्षा समझौता है। इन देशों की सेना इमारात की धरती पर भी मौजूद है। वहीं एक सप्ताह पहले ही यूएई के विदेश मंत्री ने ईरानी विदेश मंत्री से मुलाक़ात करके दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार के क्षेत्र में सकारात्मक वार्ता की थी। इन सबसे अलग बात यह है कि कोई भी देश या सरकार अपने दुश्मन के साथ इस तरह के षड्यंत्रकारी समझौते उस समय करती हैं जब युद्ध का समय हो या उसके बाद के हालात हों। तो क्या यूएई और इस्राईल के बीच कोई युद्ध चल रहा था कि जिसकी किसी को ख़बर नहीं थी। वैसे मिस्र, जॉर्डन और फ़िलिस्तीनी प्रशासन ने उस समय ज़ायोनी शासन के साथ समझौता किया था जब इस्राईल अपने चरम पर था। उस समय इस्राईल ने अपनी आर्थिक, सैन्य और टेक्नोलॉजी की शक्ति का लाभ उठाया, जबकि इसके मुक़ाबले में मिस्र, जॉर्डन और फ़िलिस्तीनी प्रशासन काफ़ी कमज़ोर थे। अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार अब्दुल बारी अतवान ने अंतर्राष्ट्रीय मामलों में संयुक्त अरब इमारात के सलाहकार अनवर क़रक़ाश के उस बयान पर भी कटाक्ष किया जिसमें उन्होंने कहा था कि यूएई कभी भी बैतुल मुक़द्दस में अपना दूतावास नहीं खोलेगा। उन्होंने कहा कि मैं अनवर क़रक़ाश का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने इतनी बड़ी गारंटी दी है।

कुल मिलाकर दुश्मन चाहे जितनी साज़िशें कर ले और घर में छिपे अपनों के भेंस में ग़द्दार चाहे जिस स्तर तक गिरकर अपनी मिट्टी, अपनी क़ौम और विशेषकर मस्जिदुल अक़्सा का सौदा करने का षड्यंत्र कर ले, लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि, मुसलमान कभी झुकने वाला नहीं है, इनका विश्वास, ईमान और राष्ट्रीयता की बुनियाद बहुत मज़बूत है, इन्होंने बहुत ज़्यादा कामयाबियां देखी हैं, मुसलमानों की एक बहुत ही मज़बूत जड़ों वाली विरासत रही है इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इंतेफ़ाज़ा एक क्रांति लेकर आएगा। (RZ)

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार