महिला सशक्तिकरण के योगी माडल का सच

दिनकर कपूर
अध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट

दिनकर कपूर

उत्तर प्रदेश में 181 रानी लक्ष्मी बाई आशा ज्योति वूमेन हेल्पलाइन के उन्नाव जिले में काम करने वाली 32 वर्षीय आयुषी सिंह (ayushi singh) ने कानपुर में ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली। वजह यह थी कि उसे ग्यारह महीने से वेतन नहीं मिला था और उसे नौकरी से निकालने का नोटिस 5 जून को दे दिया गया था। आयुषी की पांच साल की बेटी है और उसका विकलांग पति है। उसके साथ काम करने वाली सहयोगियों ने बताया कि भाजपा के विधायक कुलदीप सेंगर प्रकरण (kuldeep senger case) में पीड़िता की बड़ी मदद उसने की थी। आयुषी को आत्महत्या करने के लिए तब मजबूर होना पड़ रहा है जब योगी जी की सरकार रोज अखबार में महिला सशक्तिकरण का बड़ा-बड़ा विज्ञापन दे रही है। आखिर आयुषी या उसके जैसी महिलाएं इस हालत तक पहुंचती क्यों है? इसको समझने के लिए आपको उत्तर प्रदेश सरकार के महिला सशक्तिकरण के माडल के सच को देखना होगा।

उत्तर प्रदेश में महिला एवं बाल कल्याण विभाग महिलाओं के कल्याण के लिए महिला समाख्या, 181 आशा ज्योति वूमेन हेल्पलाइन, राजकीय महिला शरणालय, वन स्टॉप सेंटर, महिला कॉल सेंटर, बेटी बचाओ-बेटी पढाओं आदि कई योजनाओं का संचालन करता है। घरेलू हिंसा कानून 2005 बनने के बाद तो इस विभाग की महिलाओं को संरक्षण व सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका हो गई है। इस विभाग द्वारा घरेलू हिंसा, बलात्कार से पीड़ित, पति त्यागता समेत अन्य यौनिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक किस्म के गंभीर उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं की रक्षा करने और महिलाओं को जागरूक, शिक्षित और साथ ही सामुदायिक रूप से करके आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है। खुद मुख्यमंत्री योगी जी ने अपनी सरकार बनने के बाद भाजपा के संकल्प पत्र के अनुसार सौ दिन के प्राथमिक कामों में महिला सशक्तिकरण एक प्रमुख काम माना था और अपनी पहली कैबिनेट बैठक के बाद जारी हुए शासनादेश में महिला सामाख्या और 181 वूमेन हेल्पलाइन को मजबूत बनाने व इसका विस्तार करने को शीर्ष प्राथमिकता में रखा था।

लेकिन इस शीर्ष प्राथमिकता की हकीकत हम योगी जी की सरकार के बजट 2020-21 में महिला एवे बाल कल्याण विभाग के आवंटित धन से देख सकते है। महिला एवं बाल कल्याण विभाग को वर्ष 2020-21 में जो बजट आवंटित किया है वह महंगाई बढ़ने के बावजूद लगभग वही है जो पिछले वित्तीय वर्ष में दिया गया था। इसमें ज्यादातर मद में दिया धन इस वर्ष रखे बजट में अनुमानित श्रेणी में ही है यानी इसे खर्च नहीं किया गया है। वहीं यह भी कि जो योजनाएं महिलाओं को सीधे तौर पर लाभान्वित करती थी उनके बजट को बुरी तरह कम किया गया या एक तरह से समाप्त कर दिया गया है। वहीं महिला सशक्तिकरण के विज्ञापनों और प्रचार प्रसार के मद में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी की गई है।

महिलाओं के समग्र विकास, उन्हें जागरूक कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए 1989 से भारत सरकार के शिक्षा विभाग की महत्वपूर्ण योजना महिला समाख्या को केन्द्र में मोदी जी की सरकार ने बनते ही राजनीतिक बदले की भावना से खत्म करने का प्रयास शुरू कर दिया गया था। उसे राष्ट्रीय आजीविका मिशन का भाग बनाया गया पर यह चल न सका और सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। लेकिन 2016 में भारत सरकार ने इसे राज्यों द्वारा चलाने की अनुमति प्रदान कर केन्द्र से मिलने वाली बजट सहायता खत्म कर दी। बहरहाल तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इसे जारी रखा और प्रदेश के 19 जनपदों में इसे घरेलू हिंसा कानून की धारा 8 (1) के तहत अधिसूचना जारी कर महिला कल्याण विभाग के अंतर्गत विधिक रूप से शामिल कर लिया। महिला उत्थान के इस कार्यक्रम महिला समाख्या को इस वित्तीय वर्ष में योगी जी की सरकार ने बजट में एक हजार रूपए आवंटित किया है। आप बजट को देखेंगे तो पायेंगे कि पिछले वित्तीय बजट में इस योजना को दिया 2 करोड़ रूपया अभी भी अनुमानित ही है यानी यह धन खर्च नहीं हुआ। उससे पहले वर्ष 2018-19 में इस संस्था को 5 करोड़ रूपए ही दिया गया। जबकि महिला समाख्या द्वारा इस योजना के संचालन के लिए सरकार से महज 10 करोड़ रूपए की मांग की गयी थी। परिणामस्वरूप इस योजना में कार्यरत कार्मिकों जिनमें ज्यादातर महिलाएं है उन्हें 18 महीनों से वेतन नहीं मिला है और उन पर छंटनी की तलवार लटकी है। अधिसूचना से लागू हुई इस योजना को विधिविरूद्ध शासनादेश द्वारा सरकार द्वारा समाप्त कर इस योजना के कर्मचारियों से जिला प्राबेशन अधिकारियों को चार्ज देने के लिए कहा जा रहा है।

इसी तरह राजकीय महिला शरणालय जो उत्तर प्रदेश में विक्षिप्त या बेसहारा महिलाओं का एक बड़ा शरणस्थल है उसके लिए सरकार ने इस बजट में 4000 रुपए ही आवंटित किया है। वन स्टॉप सेंटर (one stop centre) जहां महिलाएं घर से उत्पीड़न के बाद 5 दिन तक खाने व रहने की सुविधा के साथ शरण लेती रही उसे पिछली वर्ष 15 लाख 26 हजार करोड़ रूपए आवंटित हुआ था और इस बार महज एक हजार रूपए मिला है। जिस योजना का सबसे ज्यादा प्रचार भाजपा के लोगों द्वारा किया जाता है और जिसका बड़ा विज्ञापन अखबार व टीवी चैनलों पर आप देखते है ‘बेटी बचाआ-बेटी पढ़ाओ’ योजना उस योजना में सरकार ने पिछले वर्ष 2 करोड़ 12 लाख रूप्ए आंवटित किया था और इस बार महज एक हजार रूपए आवंटित किए है।

प्रदेश में गर्भवती, धात्री, किशोरी बालिकाओं व 6 साल से कम उम्र के बच्चों के कुपोषण को खत्म करने, उन्हें शिक्षित करने के लिए बाल सेवा एवं पुष्टाहार विभाग द्वारा योजना चलाई जा रही है। जिसमें तीन लाख से ज्यादा आंगनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिकाएं और मुख्य सेविकाएं है जो सभी महिलाएं है। इसका प्रदेश में क्या हाल है। कुपोषण दूरा करने का ठेका पिछले बीस वर्षो से एक मृतक हो चुके शराब माफिया की कम्पनी को दिया जा रहा है। उससे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अवहेलना करते हुए दिल्ली व हरियाणा की कम्पनियों में बनी पंजीरी को सोनभद्र समेत पूरे प्रदेश में बांटवाया जा रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने खाद्य सुरक्षा के लिए दाखिल पीयुसीएल (PUCL) की रिट में स्पष्ट कहा है कि पोषाहार का निर्माण स्थानीय स्तर पर किया जाए। हर सरकार में प्रदेश में पंजीरी घोटाला एक बड़ा सवाल बनता रहा है। यहीं वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा सरकार को फटकार लगाई है और इसके बाद सरकार ने प्रदेश के 18 जनपदों के 204 ब्लाकों में इस भ्रष्टाचार रोकने के लिए एनजीओ को देने का फैसला कल लिया है। सरकार इस कुपोषण दूर करने के लिए अनुपूरक आहार वितरण का काम अभी तक आंगनबाड़ी केन्द्रों से करा रही थी जिसे मातृ समिति द्वारा संचालित किया जा रहा था और सरकार के आदेशानुसार बकायदा उसकी फोटो तक खींचकर अपडेट किया जा रहा था। तब मातृ समिति इसे न करा कर एनजीओ से पोषाहार बनवाने व वितरण का कार्य भ्रष्टाचार के नए द्वार खोलने का ही काम करेगा।

कुपोषण (Malnutrition) दूर करने की इस योजना में काम करने वाली आंगनबाड़ियों की स्थिति तो बेहद नाजुक है। बिना बीमा सुरक्षा, मास्क, सेनिटाइजर के उन्हें कोरोना महामारी की जांच में लगा दिया गया है। यह जानते हुए कि आंगनबाड़ी स्वास्थ्य सेवा में प्रशिक्षित नहीं है उनसे घर-घर जाकर परिवार के हर सदस्य की स्वास्थ्य जांच करायी जा रही। इस सम्बंध में हाल ही में भोपाल हाईकोर्ट ने आंगनबाडियों की Covid-19 में ड्यूटी पर रोक लगाते हुए कहा कि उनका काम गर्भवती, धात्री व 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए है और कोविड़-19 के लिए भारत सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन में इनकी जीवन सुरक्षा शीर्ष प्राथमिकता है ऐसे में आंगनबाड़ी की ड्यूटी कोविड में किसी प्रकार भी नहीं लगानी चाहिए।

इन आंगनबाडियों को मनरेगा मजदूर से भी कम महज 5500 रूपए मानदेय दिया जाता है जबकि भाजपा के संकल्प पत्र में इनके मानदेय वृद्धि का भी संकल्प लिया गया था। इनके लिए भारत सरकार द्वारा चलाई गयी प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और आंगनवाडी कार्यकत्री बीमा योजना का दो साल बीत जाने के बाद लाभ नहीं दिया गया, केन्द्र सरकार द्वारा 4500 रूपए तक के भवन किराए भुगतान को लागू नहीं किया और उनके बच्चों को मिलने वाली छात्रवृत्ति तक नहीं दी जाती है। अब तो हाल यह है कि इन्हें स्वयंसेविका मानने वाली सरकार द्वारा 62 साल से ज्यादा उम्र की आंगनबाडी कार्यकत्री व सहायिका को पूरा जीवन समाज सेवा में लगा देने के बाद बिना ग्रेच्युटी व पेंशन का लाभ दिए ही मनमाने व गैरकानूनी ढ़ग से सेवा से पृथक कर दिया जा रहा है। हालत इतनी बुरी है कि हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी इन आंगनबाडियों के सेवा शर्त व नियोजन की कोई नियमावली सरकार ने नहीं बनाई है।

सबसे जरूरी जिस महिला सहायता काल सेंटर में आयुषी काम करती थी उसकी दुर्दशा का है। उत्तर प्रदेश वर्ष 2016 में भारत सरकार के सार्वभौमिकरण महिला हेल्पलाइन योजना के तहत प्रदेश के 11 जनपदों आगरा, बरेली, इलाहाबाद, गाजियाबाद, गाजीपुर, गोरखपुर, कन्नौज, कानपुर नगर, लखनऊ, मेरठ, वाराणसी में 181 रानी लक्ष्मीबाई आशा ज्योति केंद्र की स्थापना की गई। जिसे 8 मार्च 2016 को महिला दिवस के अवसर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा शुरू किया गया। इसमें लखनऊ में 6 सीटर कॉल सेंटर बनाया गया और जनपदों में घरेलू हिंसा समेत अन्य तमाम किस्म के उत्पीड़न की स्थानीय स्तर पर जाकर मदद करने की योजना एक फोन नंबर 181 से महिलाओं को उपलब्ध कराई गई। जब योगी जी की सरकार आई तो इस सरकार ने 2017 में इसे प्रदेश के अन्य 64 जिलों में भी लागू करने की घोषणा की और 24 जून 2017 को मुख्यमंत्री जी के आवास पर हरी झंडी दिखाकर इस योजना को शुरू किया गया। इसमें लखनऊ में 30 सीटर कॉल सेंटर बनाया गया, हर जनपद में रेसक्यू वैन ली गयी और सीधे घटनास्थल पर जाकर महिलाओं की मदद की गयी। इसमें इस वक्त 351 महिला कर्मचारी है जिनमें से एक आयुषी चली गई अब तो 350 ही बचे।

इस योजना के क्रियांवयन के लिए अक्टूबर माह में प्रमुख सचिव महिला कल्याण ने बाकायदा शासनादेश द्वारा इसका प्रोटोकाल प्रदेश के समस्त जनपदों के लिए निर्धारित किया। जिसमें विस्तार से इस योजना की आवश्यकता, उद्देश्य, संचालन, लक्ष्ति समूह, हस्तक्षेप का क्षेत्र और इसके कर्मचारियों की नियुक्ति व सेवा से पृथक करने की व्यवस्था का निर्धारण किया गया। यह भी कि 2016 में इस योजना के पूर्व जिस सिंकदराबाद की सेवा प्रदाता कम्पनी जीवेकेईएमआरआई (GVKEMRI) के साथ इस योजना को लागू करने का समझौता किया गया। उससे सरकार के प्रतिनिधि निदेशक महिला कल्याण ने अनुबंध किया है कि उसे इस योजना के संचालन के लिए छः माह पूर्व ही धनराशि दे दी जायेगी ताकि योजना के क्रियांवयन में बाधा उत्पन्न न हो। बहरहाल इस महिला हेल्पलाइन को दो मद में पहला रानी लक्ष्मी बाई आशा ज्योति केन्द्र के मद में पिछले वित्तीय वर्ष में 5 करोड़ रूपया आवंटित किया गया था जो खर्च नहीं किया गया और इस वित्तीय वर्ष में महज 20 लाख रुपए दिया गया है वहीं बजट में आंवटित दूसरे मद संख्या 0204 महिला हेल्पलाइन में पिछले वित्तीय वर्ष में 25 करोड़ रूपए आवंटित किया गया था जिसे खर्च नहीं किया गया और आपको जानकर आश्चर्य होगा इस बार बजट में इसे महज एक हजार रूपए दिया गया है। बात साफ है जब बजट ही नहीं दिया जायेगा तो आयुषी जैसों को वेतन कहां से मिलेगा और इसके कारण आयुषी जैसी निराशा महिलाओं को अवसाद में ले जायेगी उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर करेगी।

दरअसल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और इसके राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी के पूरे दर्शन को ही अगर आप देखें तो उसमें महिलाएं दोयम दर्जे की नागरिक बना दी जायेगी। इनके वैचारिक केन्द्र विनायक दामोदार सावरकर हिन्दुत्व पर लिखी अपनी किताब में हिंदू की परिभाषा में कहते है कि हिंदू वह है जो सिंधु नदी से समुद्र तक सम्पूर्ण भारत वर्ष को अपनी पितृभूमि और पुण्य भूमि मानता हो। स्पष्ट है कि वह एक पितृसत्तात्मक समाज बनाना चाहते हैं जहां महिलाओं का स्थान सिर्फ और सिर्फ दोयम दर्जे के नागरिक का ही होगा। इस वैचारिक सोच रखने वाले संघ और उसकी सरकार निश्चित रूप से महिलाओं के सवाल पर सिर्फ राजनीतिक प्रचार ही करेगी वास्तविकता में वह कुछ नहीं करेगी और इसका नया संस्करण उत्तर प्रदेश का ‘योगी माडल’ बना हुआ है। महिलाओं की जिंदगी की बेहतरी की जितनी भी योजनाएं हैं एक-एक कर उनको मारा जा रहा है। इसलिए इसके विरुद्ध महिलाओं को अपनी नागरिकता, समानता, सम्मान और अधिकार के लिए समवेत आंदोलन खड़ा करना होगा। अपनी जिदंगी और पहचान को बचाने के इस लोकतांत्रिक संघर्ष का नेतृत्व करना आज वक्त की जरूरत है जिसे महिलाओं को करना चाहिए ताकि समाज में कोई निराश होकर आयुषी न बन सके।