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यूनिफार्म सिविल कोड पर चल रही बहस संविधान सम्मत नही, AIMPLB ने PM/CM को लिखा पत्र

टीम इंस्टेंटखबर
देश में एकबार कॉमन सिविल कोड का मुद्दा गरमा रहा है, उत्तराखंड, असम होते हुए यह विवादित मुद्दा अब उत्तर प्रदेश में भी घुस चूका है. हिजाब, हलाल, अज़ान और लाउडस्पीकर के बाद कॉमन सिविल कोड की चर्चाओं से मुस्लिम संगठनों में रोष है. इस मुद्दे को बेवक़्त की रागनी बताने वाली मुसलमानों की सबसे बड़ी तंज़ीम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को इस सिलसिले में एक पत्र भेजा है.

इस पत्र में कहा गया है कि देश मे समस्त धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक रीतिरिवाज के अनुसार शादी विवाह की संवैधानिक अनुमति है। मुस्लिम समुदाय सहित अनेक समुदायों को अपने धार्मिक विधि के अनुसार विवाह तलाक के अधिकार भारत की स्वतंत्रता के पूर्व से प्राप्त है,मुस्लिम समुदाय को 1937 से इस सम्बंध में मुस्लिम एप्लिकेशन एक्ट के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है।

पत्र में बताया गया है कि स्वतंत्रता उपरांत भी संविधान सभा मे इस सम्बंध में हुई बहस में प्रस्तावना समिति के चेयरमैन बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि सरकार इसे धार्मिक समुदाय पर छोड़ दे और सहमति बनने तक इसे लागू न करे।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस सम्बंध में कहना चाहता है कि यूनिफार्म सिविल कोड पर सभी धर्मिक समूहों के संगठनों पर सर्वप्रथम सरकार अपने मसौदे के साथ सार्थक सकारात्मक चर्चा करे। बिना चर्चा के यूनिफार्म सिविल कोड पर चल रही बहस संविधान सम्मत नही है।

बोर्ड ने कहा कि सरकारों का काम समस्याओं के समाधान का है न कि धार्मिक मसले उत्पन्न करने का। यूनिफार्म सिविल कोड पर अनेक किंतु परन्तु है किंतु समाज और धार्मिक समूहों से चर्चा के बिना कोई भी धार्मिक समूह इसे अंगीकृत नही करेगा। क्योंकि यूनिफार्म सिविल कोड के लागू होने के बाद मुस्लिम समुदाय के निकाह व तलाक सहित महिलाओं के सम्पत्ति में अधिकार जैसे विषय क्या समाप्त हो जायेगे अथवा वह किस विधि के अनुरूप सम्पन्न होंगे।

पत्र में सवाल किया गया है कि धार्मिक मामलों में मुस्लिम समुदाय के निकाह तलाक महिलाओं का सम्पत्ति में अधिकार जैसे अधिकार ही मुस्लिम एप्लीकेशन एक्ट 1937 से लेकर भारतीय संविधान में स्थापित है फिर उसके साथ यूनिफार्म सिविल कोड की आड़ में उसके साथ छेड़ छाड़ की क्या आवश्यकता है?

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा मे यह भी कहा था कि राज्य या केंद्र सरकार इसे लागू करने के पूर्व धार्मिक समुदाय या उनके धर्मगुरुओं से चर्चा के बाद ही इसे लागू करने का निर्णय ले इसे जबरन थोपने का प्रयास उचित नही होगा।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया से अपील की है कि इस गम्भीर विषय पर गम्भीर चर्चा संवाद की आवश्यकता है।इसलिए इस विषय की गम्भीरता के दृष्टिगत ही अंतिम निर्णय मुस्लिम समुदाय के निकाह,तलाक उत्तराधिकार जैसे धर्म व संविधान सम्मत अधिकार के संरक्षण की अपेक्षा करते है। बोर्ड ने उम्मीद जताई है की सरकार गम्भीरतपूर्वक इस मामले में संवेदनशील निर्णय करेगी।

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