टीम इंस्टेंटखबर
कुछ दिन पहले गुजरात में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि प्रदेश में 27 साल से राज कर रही भाजपा सरकारों से पहले कांग्रेस के शासन में लगभग पूरे साल कर्फ्यू लगा रहता था, लोग घर से निकलते थे लेकिन उन्हें यह यकीन नहीं था कि वह घर वापस भी लौटेंगे। खैर अमित शाह द्वारा दी इस जानकारी के बारे में गुजरातियों को भी नहीं मालूम कि गुजरात में ऐसा माहौल कब था लेकिन देश के एक हिस्से कश्मीर में ज़रूर इन दिनों ऐसा माहौल है कि घर लौटने की गारंटी नहीं। कश्मीर में बसने वाले हिन्दुओं को 1990 की याद आने लगी है जब आतंकियों द्वारा लक्षित हत्याओं से परेशान कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर भागे थे.

घाटी में टारगेट किलिंग का ये नया दौर है. इसने एक बार फिर से 1990 जैसे माहौल की याद दिला दी है. निशाने पर कश्मीर में बसने आ रहे कश्मीरी पंडित तो हैं ही, बाहरी मजदूर और वो सब हैं जिन्हें आतंकी अपने दहशत भरे राज के लिए खतरा मानते हैं. यही वजह है कि 7 दिन पहले 25 मई को कश्मीरी एक्ट्रेस अमरीन भट्ट और 24 मई को पुलिसकर्मी सैफ कादरी की हत्या हो गई.

कश्मीर में पिछले साल 8 जून को सरपंच अजय पंडित की हत्या से टारगेट किलिंग का सिलसिला शुरू हुआ था. इसके बाद 5 अक्टूबर को श्रीनगर के केमिस्ट एमएल बिंद्रू की हत्या कर दहशत फैला दी गई. दो दिन के बाद ही आतंकियों ने एक स्कूल की प्रिंसिपल सतिंदर कौर और टीचर दीपक चंद की हत्या कर दी. मई में टारगेट किलिंग की 8 घटनाएं सामने आईं. रजनी बाला की हत्या से पहले 12 मई को आतंकियों ने बड़गाम में दफ्तर में घुसकर राजस्व अधिकारी राहुल भट्ट की हत्या कर दी थी.

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35 A खत्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए. ऐसे में फिर से परिसीमन के साथ जम्मू-कश्मीर का सियासी नक्शा बदलने की तैयारी हो चुकी है. परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट भेज दी है. यदि ये रिपोर्ट लागू हुई तो अब तक विधानसभा में जो दबदबा कश्मीर खित्ते का रहता था, वो कुछ कम हो जाएगा.

जम्मू रीजन की 37 सीटों को बढ़ाकर 43 सीटें करने की तैयारी है. वहीं कश्मीर में एक सीट बढ़ाकर उसे 47 करने की सिफारिश की गई है. कश्मीरी पंडित लंबे अरसे से अपने लिए विधानसभा में सीटें रिजर्व करने की मांग कर रहे थे. परिसीमन आयोग ने इस बार उनकी मांगों को सुनते हुए 2 सीटें ‘कश्मीरी प्रवासियों’ के लिए रिजर्व कर दी हैं.

राज्य में आखिरी बार 2014 में विधानसभा के चुनाव हुए थे. इसके बाद दो सियासी ध्रुव बीजेपी और पीडीपी ने एक प्रयोग के तौर पर मिलकर सरकार बनाई. ये बेमेल गठबंधन 2018 में दम तोड़ गया. उसके बाद से ही राज्य में राज्यपाल शासन लागू है. मनोज सिन्हा को राज्य की जिम्मेदारी दी गई है. सरकार ने संकेत दिए थे कि राज्य में जल्द ही चुनाव कराए जाएंगे, लेकिन प्रदेश में चुनाव के लिए माहौल तो नहीं लगता.