तौक़ीर सिद्दीक़ी

टेस्ट मैच की यह एक बड़ी खूबसूरती होती है कि ड्रा मैच में भी इतना रोमांच पैदा हो जाता है कि मैच की अंतिम गेंद तक कुछ हो जाने की सम्भावना बनी रहती है, कानपूर के ग्रीन पार्क में भी आज कुछ वैसा ही रोमांच देखने को मिला। टीम इंडिया को जीत के लिए बस एक विकेट की ज़रुरत, न्यूज़ीलैण्ड की आखरी जोड़ी क्रीज़ पर, फील्डरों का घेरा, विकेट बस अब गिरा कि तब गिरा। बीतता समय, गुज़रते ओवर, गेंद और बल्ले के बीच बरतरी की जंग. एक दिलचस्प नज़ारा , एक परफेक्ट प्लेटफॉर्म, जो टेस्ट क्रिकेट को सबसे ख़ास बनाता है.

टीम इंडिया जीत का दरवाज़ा लगातार खटखटाती रही, लगा कि दरवाज़ा बस अब किसी भी पल खुलने वाला है मगर न्यूज़ीलैण्ड के दो द्वारपाल ज़बरदस्त पहरेदारी करते रहे और अंत में इस जंग में जीत द्वारपालों की ही हुई, टीम इंडिया के लिए दरवाज़ा खुलने का वह पल नहीं आया. यकीनन टीम इंडिया, विशेषकर अस्थायी कप्तान अजिंक्य रहाणे ज़रूर मायूस हुए होंगे। मैच के अंतिम क्षणों में मायूसी के साथ उनके चेहरे पर झल्लाहट भी साफ़ झलक रही थी. होती भी क्यों न! जाम होठों तक जो आ चूका था.

वनडे और टी 20 क्रिकेट की तेज़ रफ्तारी में अब टेस्ट क्रिकेट भी नतीजाख़ेज़ हो चले हैं. अब न के बराबर टेस्ट मैच बराबरी पर छूटते हैं। आप को बता दें कि भारत में 4 साल बाद कोई टेस्ट मैच ड्रॉ हुआ है. इससे पहले 2017 में दिल्ली में भारत और श्रीलंका के बीच खेला गया टेस्ट मैच ड्रॉ हुआ था.

वैसे भारत को यह मैच जीतना चाहिए था, आखरी विकेट जब न्यूज़ीलैण्ड का गिरा था उसके बाद कम से कम 52 गेंदों का खेल बाकी था, यानि लगभग 9 ओवर। हालत पूरी तरह भारत के फेवर में थे, पिच अपना कमाल भी दिखा रही थी मगर असली कमाल रचिन रविंद्र और एजाज़ पटेल दिखा गए. भारत की जो स्पिन तिकड़ी न्यूज़ीलैण्ड के मुख्य बल्लेबाज़ों के लिए unplayable थी उसे इन दोनों ने बड़ी आसानी से खेला। ज़रूर कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूर हुई. मुझे तो लगता है कि जैसे जैसे इन दोनों बल्लेबाज़ों विकेट पर खूंटा गाड़ना शुरू किया, टीम इंडिया स्पिनर्स भटकना शुरू गए, अगर आप अश्विन की इस दौरान की गेंदबाज़ी को देखेंगे तो उन्होंने इतने प्रयोग कर डाले कि शायद उनको भी न पता हो. तीनों ही स्पिनर्स, चाहे रविंद्र जडेजा हों, अक्षर पटेल हो या अश्विन, सभी ने गेंदों में फ्लाइट की जगह रफ़्तार डाली है. गेंद पिच पर लो रह रही थी शायद इसलिए, लेकिन फ्लाइटेड गेंदबाज़ी का उपयोग बिलकुल नहीं किया, पता नहीं क्यों ? शायद ड्रेसिंग में ही इस तरह का निर्णय पहले ही हो चूका हो. वैसे खूंटा गाड़ वाली सिचुएशन में फ्लाइट एक बहुत कारगर हथियार रहा है. मगर अब यह कला भारत में धीरे-धीरे दम तोड़ रही है और इसकी ज़िम्मेदार पूरी तरह से टी 20 क्रिकेट ही है जिसे अब लोग ज़्यादा पसंद करते हैं और खिलाडियों की जीविका का अब मुख्य स्रोत भी है.

चलिए जो बीत गया सो बीत गया, अब आगे बढ़ते हैं. कुछ पॉजिटिव बातें करते हैं. भारत के निश्चित ही सबसे पॉजिटिव बात श्रेयस अय्यर हैं। अपने पहले ही टेस्ट में उन्होंने अपनी शानदार बल्लेबाज़ी से बड़ा श्रेय हासिल किया है. टेस्ट क्रिकेट की शतक के साथ शुरुआत, फिर अगली ही पारी में अर्धशतक। किसी भी नवागंतुक खिलाडी के लिए इससे स्वप्निल शुरुआत और क्या हो सकती है. श्रेयस के शानदार प्रदर्शन ने अब सेलेक्टर्स को संकट में डाल दिया है, आराम कर रहे खिलाडियों की वापसी पर वह किसे अंदर रखेंगे और किसे बाहर, एक बड़ा धर्म संकट होगा उनके सामने।

दूसरी पॉजिटिव बात अक्षर की गेंदबाज़ी जो लगातार चमकदार और धारदार होती जा रही है, कम से कम भारत की धरती पर तो विदेशियों के लिए एक बुरा सपना है.

अगर कमी की बात करें तो बीएस इतना ही कह सकते हैं कि मैच भारत की पकड़ में था और उसे जीतना चाहिए था. बता दें कि यह सीरीज़ टेस्ट चैम्पियनशिप के अंतर्गत खेली जा रही है, इसलिए मैच के बराबरी पर ख़त्म होने से भारत को पॉइंट्स टेबल में नुक्सान उठाना पड़ेगा।

जहाँ तक न्यूज़ीलैण्ड की बात है तो पूरे मैच में टॉम लैथम और विल यंग के अलावा किसी भी बल्लेबाज़ ने स्पिनर्स के खिलाफ तकनीकी तौर पर मज़बूती नहीं दिखाई। लैथम ने दोनों पारियों भारतीय स्पिनर्स का जमकर मुकाबला किया वहीँ यंग ने पहली पारी में शानदार 89 रन्स की पारी खेली, दूसरी इनिंग में वह बदकिस्मती से उस गेंद पर आउट दे दिए गए जिसपर वह आउट नहीं थे, अगर समय रहते डीआरएस ले लेते तो बच जाते मगर उन्होंने समय बीत जाने के बाद डीआरएस का इशारा किया जिसे अंपायर ने ठुकरा दिया।

हालाँकि आखिर में रचिन रविंद्र और एजाज़ पटेल ने साथी बल्लेबाज़ों को दिखा दिया कि स्पिन ट्रैक और विपरीत परिस्थितियों में किस तरह बल्लेबाज़ी की जाती है. इस मैच को ड्रा करवाकर न्यूज़ीलैण्ड के हौसले ज़रूर बुलंद हुए होंगे जिसका फायदा उन्हें अगले टेस्ट में ज़रूर मिलना चाहिए जो मुंबई में 3 दिसंबर से खेला जायेगा।