लखनऊ
भाकपा (माले) ने परिषदीय स्कूलों के विलय के योगी सरकार के फैसले को जनविरोधी बताते हुए रद्द करने की मांग की है। पार्टी ने कहा है कि केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 से प्रेरित यह फैसला शिक्षा के अधिकार (आरटीई) का उल्लंघन और गरीबों व मासूमों को शिक्षा से वंचित करने वाला है।

भाकपा (माले) के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि योगी सरकार गरीब छात्रों से शिक्षा का अधिकार छीन रही है। सरकार एक तरफ बिजली का निजीकरण कर रही है, तो दूसरी तरफ शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा दे रही है। जनहित के बजाय कारपोरेट के इशारे पर काम कर रही है।

उन्होंने कहा कि गरीब अभिभावकों के बच्चे ही आमतौर पर निकट के परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने जाते हैं। आरटीई के अनुसार कक्षा आठ तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार है और उनमें पढ़ने वाले छह से 14 साल के मासूमों को उनके आवास के एक किमी के दायरे में स्कूल उपलब्ध कराने का प्रावधान भी है। छात्रों की कम संख्या का बहाना बना कर निकट के स्कूल का दूर के स्कूल में विलय करने से खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रॉपआउट (बीच में शिक्षा छोड़ने वाले छात्र) की संख्या बढ़ेगी। इससे शिक्षा का प्रकाश फैलने की जगह अशिक्षा का अंधकार फैलेगा। शिक्षक और शिक्षकेत्तर स्टाफ बेरोजगार होंगे। नई भर्तियां रुकेंगी।

माले नेता ने कहा कि सरकारी प्रायमरी और अपर प्रायमरी (कक्षा एक से आठ) स्कूलों की हालत सुधारने, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, शिक्षकों की संख्या बढ़ाने की जगह स्कूलों को बंद करना बीमारी दूर करने की जगह बीमार को ही मारने जैसा है। निकट के सरकारी स्कूल बंद होने से अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने के लिए विवश होंगे। यह सबके वश की बात भी नहीं होगी।

राज्य सचिव ने कहा कि लोकतांत्रिक छात्र समुदाय नई शिक्षा नीति का तमाम कारणों से पहले से ही विरोध कर रहा है। स्मार्ट कक्षा के नाम पर वंचित समुदाय के छात्र शिक्षा से बहिष्कृत हो रहे हैं। जले पर नमक की तरह प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग का स्कूलों के मर्जर (विलय) का हालिया आदेश भी जुड़ गया है। प्रदेश की एक तिहाई आबादी अभी भी निरक्षर है। प्रारंभिक शिक्षा को सर्वसुलभ और सभी तक पहुंचाने के बजाय सरकार कुछ तक ही सीमित करना चाहती है। यह फैसला आधुनिक लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में रोड़ा है और विकास विरोधी है। इसे वापस नहीं लिया गया, तो आंदोलन होगा।