(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

शुक्र है, नये साल का जश्न बच गया। 2024 चाहे कुछ भी लेकर आए, भारत में तो अब उसका स्वागत ही होगा। वर्ना नये साल के जश्न पर इस बार तो पाबंदी लग ही जानी थी। आखिरकार, अमृतकाल चल रहा है और अमृतकाल में गुलामी की कितनी सारी निशानियां मिटायी जा रही हैं। और तो और, पुरानी संसद से लेकर फौज में पुरानी भर्ती तक को तो 2023 में बाकायदा निपटाया भी जा चुका है। भाइयों ने नये साल के जश्न से भी मुक्ति दिला ही दी होती। पर नया साल जरा-जरा बच गया। दूसरे कई-कई देसी नये साल खोज कर निकाले जाने के बाद भी नया साल बच गया। कैसे? क्योंकि पड़ोस में पाकिस्तान में नये साल के जश्न पर पाबंदी जो लग गयी है। फिलहाल पाकिस्तान में पीएम भी कामचलाऊ यानी टेंपरेरी है, सो पाबंदी भी टेंपरेरी यानी 2024 की आमद के जश्न पर ही लगी है। फिर भी पाबंदी तो लगी है। पाकिस्तान के पीछे-पीछे, हम भी पाबंदी लगाने जाते, तो दुनिया भला क्या कहती? विश्व गुरु और कुछ करे, न करे, पर कम से कम किसी खराब विश्व शिष्य की नकल करता तो नहीं ही दिखाई देना चाहेगा!

और बात सिर्फ नकल तक ही होती, तो फिर भी संभाली जा सकती थी। छेड़ देेते प्रचार अंधड़ कि ऑरीजिनली आइडिया तो हमारे मोदी जी का ही था, पाकिस्तान वाले चुरा ले गए। जब योरप वाले हमारा इतना सारा प्रचीन ज्ञान चुरा-चुराकर, हमारे समेत सारी दुनिया पर राज करने लायक बन सकते हैं, तो क्या पाकिस्तान वाले एक जरा सा आइडिया नहीं चुरा सकते! पर पट्ठे पाकिस्तानियों ने तो नये साल के जश्न पर पाबंदी भी फिलिस्तीनियों के चक्कर में लगायी है। कह रहे हैं कि इस्राइली, फिलिस्तीनियों का कत्लेआम कर रहे हैं, सो फिलिस्तीनियों की हमदर्दी में हम नये साल का जश्न नहीं, सोग मनाएंगे। अब जब फिलिस्तीनियों का मामला बीच में आ गया है, तब उनके लिए सोग मनाने से तो बेहतर है कि हम नये साल का जश्न ही मना लें। गुलामी की निशानी हो भी तो क्या हुआ, जहां इतने साल नये साल की आमद का जश्न मनाया है, एक साल और सही। पर हम फिलिस्तीनियों के लिए कम-से-कम सोग नहीं मना सकते। मोदी जी के अमृतकाल में तो हर्गिज नहीं। नये-नये बने इस्राइली दोस्त नाराज नहीं हो जाएंगे! बाकी सब भूल भी जाएं तब भी, अमृतकाल में मोदी जी के लिए, इस्राइलियों का पैगासस भी तो जरूरी है।

वैसे भी पहले, गांधी-नेहरू वाली विदेशी गुलामी के टैम में फिलिस्तीनियों के लिए सोग मनाया जाता रहा होगा, पर अब अमृतकाल में नहीं। अब हम वैसे भी रामलला की पक्के घर में वापसी का जश्न मनाने में बिजी हैं और कम से कम नये साल के आम चुनाव तक तो उसी में बिजी रहने वाले हैं। जश्नों वाला नया साल है, सो एक जश्न 2024 के आने का भी सही। बल्कि थोड़ा सा एक्स्ट्रा जश्न, पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जवाब देने और इस्राइलियों के पैगासस का कर्जा उतारने के लिए। रामलला की उंगली पकड़कर घरवापसी के लिए भी। और हां! भक्तों को यह विश्वास दिलाने के लिए भी कि भले ही 2024 लग गया हो, भले ही कुर्सी सीएम से बदलकर पीएम की हो गयी हो, मोदी जी वही पुराने 2002 वाले ही हैं — शाह जी के हिसाब से दंगाइयों को पक्का सबक सिखाने वाले!

खैर! इस बार तो नये साल का जश्न बच गया। एक बार और नये साल का जश्न बच गया। लेकिन, बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। पाकिस्तान की नकल की शर्म कब तक गुलामी की इस निशानी को मिटने से बचाएगी।

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)