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इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर नई दिल्ली में ऑल इंडिया उलमा व माशाइख बोर्ड और डॉक्टर पीरजादा फाउंडेशन बंगलौर के तत्वाधान में एक किताब “खसाइसे अली” नामक किताब का उर्दू भाषा में विमोचन किया गया, इस किताब को आज से 600 साल पहले इमाम नसाई ने लिखा था इस समारोह में तुर्की और ईरान के राजदूतों सहित इंडोनेशिया और इराक गणराज्य के कॉन्सिल जनरल शामिल हुए साथ ही देश के जाने माने शिक्षाविद ,प्रोफेसर ,स्कॉलर उलमा और माशाइख ने शिरकत की।

इस मौके पर ऑल इंडिया उलमा व माशाइख बोर्ड के अध्यक्ष हजरत सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने अपने अध्यक्षी भाषण में कहा कि दहशतगर्दी को किसी भी कीमत से तलवार या हथियार से समाप्त नहीं किया जा सकता, इसी तरह शांति को भी हथियार से स्थापित नहीं किया जा सकता इसके लिए किरदार यानी आचरण की जरूरत है । किरदार कैसा हो अगर देखना है तो हमें नबी का किरदार देखना है लेकिन नबी को समझने के लिए अली को समझना जरूरी है, शुरू दौर से हजरत अली को और उनके व्यक्तित्व को छुपाने का प्रयास नफरत के एजेंटो का रहा है ताकि लोग न अली समझ सके जब अली नहीं समझेंगे तो नबी से दूर हो जाएंगे लिहाजा हम सब की जिम्मेदारी है कि मौला अली को लोगों तक पहुंचाए उसका तरीका यही है कि उनके बारे में अधिक से अधिक मालूमात उनकी शिक्षा लोगो तक पहुंचाई जाए । हजरत ने सभी लोगो का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि यह किताब खसाइसे अली जिसका आज विमोचन हो रहा है मैं खुद अपने सभी मदरसों और स्कूलों के कोर्स में शामिल करूंगा और उम्मीद करता हूं आप भी लोगों तक इस किताब को पहुंचाएंगे।

कार्यक्रम की शुरवात तिलावते कुरान से हुई उसके बाद हजरत तनवीर हाशमी ने लोगों का स्वागत किया उन्होंने अपने स्वागत भाषण में कहा कि लोगों को इस समय हजरत अली को जानना जरूरी है नबी के साथ अली की जात नहीं पहचानी गई तो हम गुमराह हो सकते हैं। कट्टरपंथ हर तरह से हजरत अली के व्यक्तित्व को छुपाना चाहता है लेकिन सूफिया के यहां उनकी ही बात होती है यही वजह है कि समाज में शांति का संदेश सूफिया के दर से जाता है इस किताब का अनुवाद कर भारतीय मुसलमानों तक हजरत अली अलैहिस्सलाम की बात पहुंचाने का यह बेहतरीन जरिया होगी, उन्होंने इस मौके पर तशरीफ लाए मेहमानों का इस्तकबाल करते हुए कहा कि आपकी मौजूदगी हमारे हौसले को और बढ़ा रही है हम अपने मकसद में जरूर कामयाब होंगे।


तुर्की के राजदूत फिरत सुलेन ने कहा कि जाते अली को पहचाने बिना हम सही और गलत का फैसला नहीं कर सकते क्योंकि अल्लाह के रसूल ने फरमाया है कि जहां अली है वहां हक को पहचानने के लिए हमें अली को देखना होगा , उन्होंने कहा कि हम इस किताब का उर्दू अनुवाद करने वाली टीम को मुबारकबाद पेश करते है।

ईरान के राजदूत जाफरी ने कहा कि अली अलैहिस्सलाम बाबुल इल्म यानी इल्म का दरवाजा हैं और बिना दरवाजे से गुजरे हम इल्म के शहर में दाखिल नहीं हो सकते लिहाजा यह कारनामा जो आज आप लोगों ने अंजाम दिया है वह आने वाली नस्लों के लिए एक बड़ा तोहफा है इसे लगातार जारी रखना होगा पूरी दुनिया तक हजरत अली की तालीम और शख्सियत को पहुंचाना होगा।

इराक और इंडोनेशिया के काउंसिल जनरल ने भी लोगों को इस किताब के उर्दू अनुवाद के लिए मुबारकबाद पेश की।

इस मौके पर प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने इस किताब के ताल्लुक से बात करते हुए कहा कि इस किताब को लिखने के बाद हजरत इमाम निसाई को कट्टरपंथियों के जुल्म का शिकार होना पड़ा हक बताने वाले के साथ यही सुलूक किया जाता रहा है जो आज भी जारी है लेकिन हक का साथ देने वाले हमेशा मौजूद रहे है और रहेंगे, लोगों तक इस किताब का उर्दू तर्जुमा पहुंचे साथ ही लोगों तक इस किताब को हम सब लोग मिलकर पहुंचाए तभी इसका फायदा मिलेगा।
प्रोफेसर ख्वाजा इकराम ने कहा कि दुनिया नफरतों की जद में है इसे बचाने के लिए लोगों तक हक पहुंचाना जरूरी है इस काम को अंजाम देने के लिए पीरजादा फाउंडेशन और आल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड मुबारकबाद के मुस्ताहिक हैं साथ ही फाउंडेशन की पूरी टीम और बोर्ड के सभी लोग भी इस काम में लगे हैं।

कार्यक्रम में अजमेर शरीफ के गद्दीनशीन और बोर्ड के संयुक्त सचिव हाजी सय्यद सलमान चिश्ती ने बोलते हुए सभी आगंतुकों का शुक्रिया अदा किया साथ ही कहा कि मौला अली की विशेषताओं पर आधारित यह किताब लोगों का ज़हन खोलने वाली है ।

महबूबे इलाही हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह के नायब सज्जादानशीन सय्यद फरीद अहमद निजामी ने कहा कि जाते अली हमेशा मोमिन और मुनाफिक के बीच में फर्क करने वाली रही है आज भी यही हक है कि ज़िक्रे अली से मोमिन का चेहरा खिलता है और मुनाफिक के चेहरे उतर जाते हैं यह एक खूबसूरत कोशिश है इसे लोगों तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है।

तेलंगाना से आए सय्यद आले मुस्तफा पाशा ने कहा कि अली को समझ लिया तो नबी समझ आयेंगे इसके बिना मुमकिन नहीं है अब जब यह काम अंजाम पा गया है तो लोगो तक इस बात को और इस किताब को पहुंचाना है ताकि लोग अली को समझे और उन्हें नबी समझ आ सकें, जिन्हें अली का पता नहीं वह नफरत के वाहक बनते हैं।