वर्ल्ड सूफी फोरम ने संयुक्त राष्ट्र सहित ओआईसी को लिखा पत्र

ऑल इंडिया उलमा व मशाइख बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवम वर्ल्ड सूफी फोरम के चेयरमैन हज़रत सैय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने पूरे विश्व का आह्वाहन करते हुए कहा है कि सब मिलकर सऊदी अरब सरकार पर दबाव बनाएं कि वह मदीना स्थित जन्नतुल बक़ी कब्रिस्तान में तोड़े गई कब्रों और गुंबदों को दुबारा तामीर करवाये। उन्होंने कहा की पूरी दुनिया के मुस्लामाइन का यह एक संवेदनशील मसला है।

हज़रत ने कहा कि पिछले 100 बरस से यह मांग चली आ रही है अब वक्त आ चुका है कि अब इसे कर दिया जाना चाहिए क्योंकि मदीना में रौज़ये रसूल के बाद इस्लाम की सबसे ज़्यादा मोहतरम शाहज़ादी हज़रत फतिमा सहित नवासये रसूल हज़रत इमाम हसन और उसके बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और इमाम मुहम्मद अल बाकिर व इमाम जाफर सादिक सहित सहाबिये रसूल की मज़ारात इसी जन्नतुल बक़ी कब्रिस्तान में मौजूद हैं जिनको साल 1806 में कट्टरवादियों ने तोड़ा उनकी बेहुरमती की उसके बाद पुनः 1923 में आले सऊद और कट्टरवादी वहाबी आंदोलन ने इसे धराशाही किया तब से आज तक पूरी दुनिया में इसे दुबारा तामीर किए जाने के लिए लोग प्रदर्शन करते चले आ रहे हैं अब इस घटना को 100 वर्ष होने को आ गए लिहाज़ा पूरी दुनिया के मुसलमानों की इस पीड़ा को दूर करने का समय आ चुका है।

उन्होंने कहा कि वर्ल्ड सूफी फोरम द्वार इस संबंध में बड़ा फैसला लेते हुए इस आशय का मांग पत्र संयुक्त राष्ट्र संघ सहित इस्लामिक देशों के संगठन ओ आई सी को भेजा गया है और भारत सरकार से भी ऑल इण्डिया उलमा मशाईख बोर्ड ने मांग की है कि भारत सऊदी सरकार से बात कर इस संबंध में भारतीय मुसलमानों की भावनाओं से अवगत कराये और सऊदी सरकार पर दबाव बनाए कि जन भावनाओं का ख्याल रखते हुए जन्नतुल बक़ी कब्रिस्तान में तोड़े गए गुंबदों और मजारों की दुबारा बनाए ।

फोरम के सदस्य 37 देशों के प्रतिनिधियों ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए अपने अपने देश की सरकारों से भी इस संबंध में प्रयास करने हेतु पत्राचार करने का आश्वासन दिया है इतना ही नहीं फोरम ने यहां तक कहा है कि यदि सऊदी हुकूमत इसे नहीं बनाना चाहती तो हमें इजाज़त दे हम धन एकत्रित कर इस कार्य को करने के लिए तैयार हैं।

ऑल इंडिया उलमा मशाईख बोर्ड ने सभी मुस्लिम संगठनों से इस मुद्दे पर साथ आने की अपील भी की साथ यह भी कहा की यह मुद्दा असली और नकली सूफी का लिटम्स टेस्ट भी है क्योंकि कुछ लोग अचानक खुद को सूफी कहने लगे और कट्टरवादी वहाबी आंदोलन से खुद को किनारे कर लिया अब यह मौका है कि वह भी इस मुद्दे पर मुखर हों।