उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड्स को कानून के विपरीत पाते हुए इसे रद्द कर दिया है। इस निर्णय के पश्चात, भारत के प्रमुख पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने कहा कि पिछले 5 से 7 वर्षों में यह उच्चतम न्यायालय का सबसे महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला है।

पूर्व चीफ इलेक्शन कमिश्नर ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला जनतंत्र के लिए एक महान अनुग्रह है। हम सभी लंबे समय से इस मुद्दे पर चिंतित थे। उन्होंने बताया कि जो लोग लोकतंत्र को महत्व देते हैं, वे इसके खिलाफ थे। मैंने स्वयं अनेक लेख लिखे हैं और कई दफा इस पर चर्चा की है। जिस समस्या को हमने उठाया था, उसका समाधान इस फैसले में किया गया है।

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चुनावी बॉन्ड के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ले जाने वाली याचिकाकर्ता डॉ. जया ठाकुर का कहना है कि सूचना का अधिकार अधिनियम हमें दान के पैसे के बारे में पूछने का अधिकार देता है। यदि इसका खुलासा नहीं किया जाता है तो यह निश्चित रूप से उल्लंघन है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह है फैसला हमारे लिए बड़ी जीत है। चुनावी बॉन्ड रद्द करने की हमारी मांग आज पूरी हो गई है।

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सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा का मत है कि इस फैसले की देश में सख्त आवश्यकता थी। उनके अनुसार, यह एक ऐसी रणनीति थी जो लोकतंत्र को समाप्त करने का प्रयास थी और यह सिर्फ एक विशेष सरकार के हित में थी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए शिव सेना (यूबीटी) का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना के तहत यह छिपाया जाता था कि राजनीतिक दलों और सरकार को कहां से फंड मिल रहा है, लेकिन आज से चुनाव आयोग को सबकुछ बताना होगा। यह बहुत बड़ा फैसला है।

इस फैसले का स्वागत करते हुए कांग्रेस से राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की काफ़ी प्रचारित-प्रसारित चुनावी बॉन्ड योजना को संसद द्वारा पारित कानूनों के साथ-साथ भारत के संविधान का भी उल्लंघन माना है। चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिए जाने का फ़ैसला स्वागत योग्य है। यह नोटों पर वोट की शक्ति को मजबूत करेगा। इस फ़ैसले की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी। सरकार ‘चंदादाताओं’ को विशेष तरह के अधिकार और छूट दे रही है, जबकि ‘अन्नदाताओं’ के साथ अन्याय पर अन्याय करती जा रही है।

जयराम रमेश ने कहा कि हमें यह भी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस बात पर भी ध्यान देगा कि चुनाव आयोग लगातार वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) के मुद्दे पर राजनीतिक दलों से मिलने से इनकार कर रहा है। यदि मतदान प्रक्रिया में सब कुछ पारदर्शी और साफ़ है तो फिर समय न देने की ज़िद क्यों।