दिल्ली:
उत्तराखंड के जोशीमठ संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है। इस मामले की सुनवाई 16 जनवरी को तय की गयी है। यह याचिका स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका दाखिल की गई है और तुरंत सुनवाई की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर केस की जल्द सुनवाई नहीं हो सकती। इन मामलों के लिए लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं, जो काम कर रही हैं।

रिपोर्ट की मानें तो जोशीमठ में सोमवार शाम तक नौ वार्ड के 678 मकानों की पहचान हुई है, जिनमें दरारें हैं। सुरक्षा की नजर से दो होटल को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत बंद किए गए हैं। 16 जगहों पर अब तक कुल 81 परिवार ही विस्थापित किए जा चुके हैं। जोशीमठ में सरकार का दावा है कि अब तक 19 जगहों पर 213 कमरे में 1191 लोगों के ठहरने की व्यवस्था बनाकर रखी है। लेकिन जोशीमठ की जनता को स्थापित से विस्थापित होने के दर्द के बीच सरकार के दिए भरोसे में भी दरार नजर आती है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि जोशीमठ में आज जो भी हो रहा है वह खनन, बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का निर्माण और उसके लिए किए जा रहे ब्लास्ट के चलते हो रहा है। यह बड़ी आपदा का संकेत है। नगर में लंबे समय से भू-धंसाव हो रहा है। लोग इसको लेकर आवाज उठाते आ रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। इसका खामियाजा आज एक एतिहासिक, पौराणिक व सांस्कृतिक नगर और वहां रहने वाले लोग झेल रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि यह घटना बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण के कारण हुई है और उत्तराखंड के लोगों को तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजा दिया जाना चाहिए। याचिका में एनडीएमए को निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वह इस चुनौतीपूर्ण समय में जोशीमठ के लोगों की सक्रिय सहायता करे। सरस्वती ने याचिका में कहा, इन्सानी जान और उनके पर्यावास की कीमत पर किसी विकास की जरूरत नहीं है। यदि ऐसा होता है तो यह राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह युद्ध स्तर पर कदम उठाकर इसे रोकें।