मोहम्मद आरिफ नगरामी

‘‘मुहर्रम अल्हराम‘‘ इस्लामी तकवीम का पहला महीना ओर सन जिरी का नुकतये आगाज है, इस्लामी साले नव का वह मतबर्रक ओर मुकद्दस महीना है,जिसे परवरदिगारे आलम ने हुरमत, अजमत और अमन का ‘‘शहरे हराम‘‘ करार दिया है यह इन चार इस्लामी महीनों में एक है। जिन्हें खदावन्द कुद्दूस ने अशहरे हरम और अमन के महीने करार दे कर उनके तकद्दुस और एहतेराम पर मुहर तस्दीके सबत की।

यह एक तारीखी हकीकत है कि इस्लामी साल का आगाज मुहर्रमुल हराम से होता है जो अपने दामन में ग़म व हुज़्न और रंज व अलम, की दास्तानेू समाये हुये हें। चुनांचे यकुम मुहर्रमुल हराम रसूल सल0 अमीरूल मुअमिनीन सैयदना उमर फारूक का यौमे शहादत है। जब कि आशूरे मुहर्रम नवासये रसूल जिगर गोशये अली व बतूल, सैयदना हुसैन इब्ने अली और शोहदाये करबला की शदते उज़मा और जुल्म व सितम की वह दास्तान लिये हुये है जिसे कभी फरामोश नहंी किया जा सकेगाफ यह जुरअत व शुजाअत, तसलीम व रजा, और बातिल के सामने सीनासिपर होने का वह प्याम है जिसकी अहमियत कभी न काम होगी, जब कि इस्लामी तकवीम और सन हिजरी का नुक्तये आगाज वाकये हिजरते नबवी है जो रसूले अकरम सल0 और सहाबे एकराम की जिन्दिगियों में मुशरिकीन मक्का के जुल्म व जब्र, इस्तबदाद, और कर्ब व अलम से इबारत है। यह वह इन्केलाबी मोड है जब जुल्म व जब्र की इन्तेहा हुयी और बिलआखिर पहले मजलूम मुसलमानों और आखिरकार इमामुल अम्बिया, सैयुदुल मुरसलीन, हजरत मोहम्मद सल0 को हिजरत का हुक्म मिला।

हिजरते मदीना इस्लामी तारीख में वह मन्फरिद व तारीखसाज वाकेआ है जिसे जमाने ने लौहे तारीख पर सबत कर दिया है। यह तारीखे इन्सानी का अहेम तरीन वाकेआ है। ऐसा तारीखससाज और अहदे आफरीन मोड है जिसनें इस्लाम की इन्केलाबअंगेज तहरीक और दीन के पैगाम रूश्दो हिदायत को आल मगीर सतेह पर आम करने और इस्लामी की तब्लीग इशाअत में हमागीर नाकाबिले फरामोश किरदार अदा किया। हकीकत तो यह है कि अगर हिजरत न होती तो इन्सान कुफ्र व शिर्क और जुल्म व जेहालत के अंधेरों, गुलामी की अजीयतों और इस्तेहसाली कुव्वतों की जन्जीरो से कभी नेजात हासिल न कर पाता। हिजरते मदीना ही वह इन्केलाबी मोड है जिसने इस्लाम के पैगामे अम्न व मोहोब्बत और रूश्दो हिदायत को आम करने और इस्लाम को एक आलमगीर और अबदी दीन के तौर पर हमेशा बाकी रहने में कलीदी और मरकजी किरदार अदा किया, हिजरत ही की बदौलत इन्सानियत को इज्जत व वकार , तकरिीम व मसावात और आला अखलाकी कद्रें नसीब हुयीं। तारीख इस हकीकत पर गवाह है ‘‘हिजरत‘‘ इन्केलामी तहरीकों का मुकद्दर है। चुनांचा हिजरत की तारीख मजहब की तारीख की तरह बहुत कदीम है, इस लि ये कि करीब करीब हर पैगम्बर औ सूली को अपनी जाये सुकूनत जरूर हिजरत करना पडी। दुनिया में हिजरत की तारीख बहुत कदीम है।

रवायत के मुताबिक अल्लाह तआला की तरफ से यसरब की जानिब हिजरत का हुक्म पाते ही सरकारे दो जहां सल0 अपने हमदम व जांनिगार, यार गार व मजार, सैयदना सिद्दीक अकबर के काशाने पर पहुंचे और उन्हें भी हिजरत के हुक्म से आगाह फरमाया। सिद्दीके अकबर जिनकी किस्मत में इस यादगार और तारीखसाज सफर हिजरते मदीना में सैयुदुल अम्बिया वल मुरसलीन सल0 का रफीक व यारे गार बन कर जिन्दा जावेद हो जाना लिखा था। शाम ही से दीदा व दिल फर्शेराह किये हुये थे। चुनांचा एक हिजरी सन के मुताबिक 622 ई0 को एक ऊंटनी पर पैगम्बरे आजम व आखिर और दूसरी पर सैयदना सिद्दीक अकबर सवार हुये और सफरे हिजरत पर रवाना हो गये। इस तरह अपनी सिदक के बाईस सिद्दीक अकबर था। उसे रिफाकते गार की बदौलत यारे गार बन कर जिन्दा जावेद हो जाने की अबदी सआदत हासिल हुयी।

मक्का मुकर्रमा से निकलते हुये महबूब रब्बुलआलिमीन सैयदुल मुरसलीन सल0 ने बडे दर्द भरे दिल से रब्बे जुलजलाल की बारगाहे अकदस में इन कलमात से दामने दुआ फैलाया। तमाम तारीफें अल्लाह तआला के लिये है जिसने मुझे पैदा किया जब कि मै। कोई शय न था। ऐ अल्लाह दुनिया की हौलनाकियों से जमाने की तबाहकारियों और शबो रोज के मसाएब बर्दाश्त करने में मेरी मदद फरमा। ऐ अल्लाह मेरे सफर में तू मेरा साथी हो, मेरे अहलो अयालमें तू मेरा कायम मकाम हो और जो रिज्क तूने मुझे दिया है उसमें मेरे लिये बरकत पैदा फरमा दें और अपने हुजूर मुझे इज्ज व न्याज की तौफीक अता फरमा और मुझे बेहतरीन अखलाक पर मेरी तरबियत फरमा। मेरे परवरदिगार मुझे अपना महबूब बना ले और मुझे लोगों के हवाले से रिवायत जिक्र की है कि सन हिजरी हजरत अली करमुल्लाहु वजहू की जाती राय और मुशाविरत के नतीजे में रायेज हुआ। (अबुल कलाम आजाद रसूले रहमत सल0 सफा 198) के हवाले न फरमा। तेरी रजा मेरे नजदीक हर चीज से बेहतर है। मेरे पास कोई ताकत कोई कुदरत5 नहंी बजुज तेरे।

8 रबीउल अव्व्ल सन एक हिजरी को मदीना मुनव्वरा से तीन मील दूर आप सल0 कबा में वारिद हुये। इश्तियाके दीद का यह आलम था कि अहले मदीना एक नजर दीदार के लिये टूटे पडे थे। उनकी खुशी और मुसर्रत की इन्तेहा न थी। शौके दीद और सुरूरे दिल का यह नजारा चश्मे फलक ने शायद ही फिर कभी देखा हो।
यह परवरदिगारे आलम का मन्शा और हिकमत है कि हिजरत की तारीख और इस्लामी तकवील के नये साल का नया महीना ‘‘मुहर्रमुल हरामःः बाहम इस तरह मुन्तबिक हो गये कि इस्लामियाने आलम के लिए इस्लामी साले नव का मौजू और प्यामे हिजरते नबी बन कर रह गयी हैं।

हिजरत के इस तारीखससाज वाकये से इस्लामी तारीख के एक नये अहद और आफरीं दौर का आगाज हुआ जो हर लेहाज से फतेह और कामरानी का दौर करार दिया जा सकता है। सीरते नब्वी का यह हिस्सा इतना पुरआलाम, मसाएब और आजमाईशों से इबारत है कि इस्से तुलूए सहेर की उम्मीद नहंी बनती। मगर खुदावन्द कुद्दूस की करमफरमायी से हिजरत ही वह असासी नुक्ता है जिससे रूश्दो हिदायत और इस्लाम की आलमगीर तरवीज व इशाअत का व अजीम और लाफानी सिलसिला शुरू हुआ जो आज तक जारी है और इन्शाअल्ला ताकेयामत जारी रहेगा।

तारीखी रेवायत के मुताबिक जहूरे इस्लाम कब्ले दुनिया की मुतमद्दिन अकवाम में मुखतलिफ सनराईज थेू। इनमें ज्यादा शोहरत यहूदी, रूमी, और ईरानी सनीन को हासिल थी जब कि अरब जाहिलियत अन्दूरी जिन्दिगी इस कद्र मुतमदिदन नहीं थी कि हिसाब व किताब के लिए किसी वसीअ पैमाने पर जरूरत पेश आती क्योंकि उनके यहां याददाश्त और हाफिजे को बुनियादी दखल था चुनांचे उनके यहां यह एक तरीका रायेज था कि मुखतलिफ हालात व वाकेआत, मौसम वगैरा या मुल्क का कोई मशहूर वाकेआ ले लिया जाता था और उससे वक्त का हिसाब और तारीख का तआव्वुन किया जाता था। दौरे जाहिलियत के सनीन में वाके आमुलफील को बुनियादी अहमिूयत हासिल थी। तवील अर्से तक यही वाकेआ अरब के हिसाब व किताब में बतौरे सन मुश्तमिल व मुरव्वुज रहा जब कि जहूरे इस्लाम के बाद यह अहमियत तारीखे इस्लाम के मुखतलिफ वाकेआत ने ले ली। सहाबये केराम का यह मामूल था कि अहदे इस्लाम के मुखतलिफ वाकेआत में से कोई एक अहेम वाकेआ ले लेते ओर उसी पर हिसाब का तअय्युन करते। मसलन हिजरते मदीना के बाद सूरह हज की आयत केताल नाजिल हयी। जिसमेें केताल की इजाजत दी गयी थी। कुछ दिनों तक यही वाकेआ तौरे सन रायेज रहा। वह उसे सने इजन से ताबीर करते और यह ताबीरे वक्त के खास अदद की तरह याददाश्त में काम देती। इसी तरह सूरहे बरअत के नुजूल के बाद सन बरअत भी रायेज रहा। जब कि अहदे नब्वी का आखिरी सन सनतुलवदा था यानी रसूले सल0 का आखिरी हज जिसे इस्लामी तारीख में हजतुलवदा के नाम से खास शोहरत हासिल है। बाज रिवायत से दीगर सनीन का भी पता चलता है जिनमें से चंद के नाम यह हैं, सन्नतुल महीस, सन्नतुल तरफह, सन्नतुल जिल्जाल, सन्नतुल इस्तीनात वगैरा बैरूनी में आसारूल बाकिया में इस तरह के दस सनो ंका जिक्र किया है।

इस्लामी तारीख में सन हिजरी के आगाज व इजराके हवाले से मुतअद्दिद रवायात मिलती है। ताहम मोअर्रिखीन का इस अमर पर इत्तेफाक है कि सन हिजरी का बाकायदा इजरा और नेफाज दौरे फारूकी में 30 जमादुस्सानी बरोजे जुमेरात 17 हिजरी को अमल में आया। सैयद मुरतजा के मशवरे से इस्लामी तकवीम का शुमार वाके हिजरते मदीना से किया गया। इस तरह सन हिजरी इस्लामी तकवीम की बुनियाद करार पाया जब कि खलीफये सोम हजरत उसमान गनी के मशविरे से मोहर्रमुल हराम को नये साल का पहला मीना करार दिया गया (रहमतुल लिल्आलमीन सफा 392)।

इसका मुखतसर तारीखी पसे मन्जर कुछ यूॅ है कि एक मरतबा हजरत उमर के खेलाफत में उनके सामने एक सरकारी दस्तावेज पेश की गयी जिसपर शाबान का महीना दर्ज था। यह देखते हुये हजरत उमर ने फरमाया कि शाबान से कौन सा शाबान मुराद है। इस बरस का या आइन्दा साल का । फिर आपने केबारे सहाबा को जमा किया और मुशाविरत के लिए उनके सामने मसला पेश किया कि रियासत के माली और इन्तेजामी मामलात बहुत बढ गये हैं लेहाजा जरूरी है कि हिसाब किताब के लिए ऐसा तरीके कार वजा किया जाये जिससे औकात और तारीख का दुरूस्त तअय्युन हो सके। इस पर बाज सहाबा की राय यह थी कि हस सिलसिले में ईरानियों से मशविरा करना चाहिये कि इनके यहां इस हवाले से क्या तरीके रायेज है। चुनांचा हजरत उमर ने हुरमुजान को बुंलाया उसने कहा कि इसके लिये हमारे यहां एक हिसाब मुरूव्वज है जिसे माहे रोज कहा जाता है। इस माहे रोज को अरबी में मोरखा बना लिया गया है । बादे अजां एक सवाल पैदा हुआ कि इस्लामी तकवीम और तारीख के तअय्युन के लिए जो सन अख्तियार किया जाये उसका आगाज कब से हुआ? सैयदा अली मुर्तुजा की राय से इत्तेफाक करते हुये सबने यही राय दी कि सन हिजरी नये इस्लामी सालका आगाज वाके हिजरते नबवी से किया जाय। चुनांचे इसके बाद से सन हिजरी का नेफाज अमल में आया।

अबुहेलाल अस्करी ने कितबुलअवाईज ने और अल्लामा मकरेजी ने अपनी तारीख में नामवर ताबेइन और अजीम मुहद्दिस सईद बिन मुसैयिद के हवाले से जिक्र कर रहे कि सन हिजरी हजरत अली वजहू की जाती राय अल्मुशाविरत के नतीजे में रायज हुआ।