मोहम्मद आरिफ़ नगरामी

यौमे फ़ारूके आज़म यकुम मोहर्रम के मौके़ पर खुसूसी मज़मून
हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु हिजरत से नबवी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से चालीस बर्स पहले पैदा हुए। शबाब का आगाज हुआ तो शुरफाये अरब में रायज वह तमाम मशागिल जैसे नस्बदानी, सिपागरी, पहलवानी और खिताबत वगैरह में महारत हासिल की, खुसूसन शहसवारी में कमाल हासिल किया नेज पढने लिखने की तरफ भी खास तवज्जो की। जमानए जाहिलियत में जो लोग पढना लिखना जानते थे, उनमें आपका भी शुमार होने लगा। मआश के लिए आपने अरब के आम दस्तूर के मुवाफिक तिजारत को मशगला बनाया, आपकी खुद्दारी, बलन्द हौसलगी, तजुर्बाकारी और मामला और मामला फहमी का नतीजा था कि कुरैश ने आपको मंसब सिफारत पर मामूर कर रखा था। आम मोअर्रिखीन और अरबाब सैर के मुताबिक जब आपकी उमर सत्ताईस साल हुई और नुबूव्वत का सातवां साल था। हुजूर सल की दुआओं की बदौलत अल्लाह तआला ने आपको मुशर्रफ बा-इस्लाम फरमाया। नुबूव्वत के तेरहवीं साल आपने हिजरत फरमाई। मदीने पहुंचकर हजरत उमर रजि कुबा में रिफाआ बिन अबदुल मुनजिर के मेहमान हुए जब हुजर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने रिश्तए मवाखात कायम फरमाया तो हजरत उमर रजि के बिरादर इस्लामी हजरत उतबा बिन मालिक रज़ि अल्लाहु अन्हु करार पाये, जो कबीला बनी सालिम के रईस थे और मदीना में जब आबादी बढने लगी और आंहजरत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ऐलान नमाज के तरीके को मुईन करने के लिए मशवरा मांगा तो हजरत उमर रजि और दीगर सहाबा रज़ि अल्लाहु अन्हुम के मशवरे पर आजान का सिलसिला शुरू किया गया। इस तरह इस्लाम का एक अजीम शिआर हजरत उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु की राये की मुआफिक कायम हुआ। जिससे तमाम आलम कयामत तक दिन ओर रात में पांच वक्त तौहीद व रिसालत के ऐलान से गूंजता रहेगा।

हजरत अबूबकर सिददीक रज़ि अल्लाहु अन्हु की खिलाफत सिर्फ सवा दो बर्स रही, उनके अहेद में जिस कद्र बडे बडे काम अंजाम पाये सब में हजरत उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु शरीक रहे। कुरान शरीफ की तदवीन का काम खास उनके मशवरे और इसरार से अमल में आया।

हजरत अबूबकर रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु को अपने अहदे खिलाफत में अंदाजा हो चुका था कि मंसब खिलाफत के लिए हजरत उमर रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु से ज्यादा मौजू कोई शख्स नहीं हो सकता। चुनांचे उनकी वफात के बाद आप खलीफा मुकर्रर किये गये और सबसे पहले आपको अमीरूल मोमिनीन कहा गया। हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु खलीफा होने के बावजूद आम हुकूक में सबके साथ बराबरी रखते थे। किसी कानून के असर से मुस्तसना न थे, मुल्क की आमदनी में से जरूरियात जिन्दगी से ज्यादा न लेते, आम मुआशरत में हाकिमाना हैसियत का कोई लिहाज न रखते थे। हर शख्स को नुक्ताचीनी का हक हासिल था। एक मौका पर आप रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु ने इरशाद फरमायाः मुझे तुम्हारे माल में इस कद्र हक है जितना यतीम के मुरब्बी को यतीम के माल में अगर दौलतमंद हूंगा तो कुछ न लूंगा और जरूरत पडेगी तो दस्तूर के मुवाफिक खाने के लिए लूंगा। साहिबों! मेरे ऊपर तुम लोगों के मुताददिद हुकूक हैं जिसका तुम्हें मुझसे मुआखिजा करना चाहिए, एक ये कि मुल्क का खिराज और माले गनीमत बेजा तौर से जमा न किया जाये, एक ये कि जब मेरे हाथ में खिराज और गनीमत आये तो बेजा तौर से खर्च न होने पाये, ये कि मैं तुम्हारे रोजीने बढा दूं और सरहदों को महफूज रखूं। ये कि तुम्हें खतरों में न डालूं’’। एक मौके पर एक शख्स ने कई बार हजरत उमर रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु को मुखातिब करके कहाः ऐ उमर! अल्लाह से डरो’’। हाजरीन में से एक शख्स ने असीरो का और कहा कि बस बहुत हुआ। हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु फरमायाः नहीं कहने दो। अगर ये लोग न कहें तो ये बेमसरफ हैं और हम लोग न मानें तो हम। यही वजह थी कि खिलाफत और हुकूमत के इख्तेयारात और हुदूद सब लोगों पर जाहिर हो गयी थीं और शख्सी शौकत और इक्तेदार का तसव्वुर दिलों से जाता रहा था। एक दफा मजमा आम मंे आपने आमिलों को मुखातिब करके ये अलफाज फरमाये। याद रखो कि मैंने तुम लोगों को अमीर और सख्तगीर मुकर्रर करके नहीं भेजा है, बल्कि इमाम बनाकर भेजा है कि लोग तुम्हारी तकलीद करें तुम लोग मुसलमानों के हुकूक अदा करो उन्हें जोद व कोब न करेा कि वह जलील हों उनकी बेजा तारीफ न करो कि गलती में पडें उनके लिए अपने दरवाजे बंद न करो कि जबरदस्त कमजोरों को खा जायें उनसे किसी बात में अपने आपको तरजीह न दो कि ये उन पर जुलम करना है। हर आमिल से अहद लिया जाता था कि तुर्की घोडे पर सवार न होगा, बारीक कपडे न पहनेगा, छना हुआ आटा न खायेगा, दरवाजे पर दरबान न रखेगा, अहले हाजत के लिए हमेशा दरवाजा खुला रखेगा। हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु का गैर मुस्लिमों के साथ अदल व इंसाफ भी मशहूर हैं आपके अदल व इंसाफ का दायरा सिर्फ मुसलमानों तक महदूद न था, बल्कि आपका दीवान अदल मुसलमान, यहूदी, ईसाइ सबके लिए यक्सां था। चुनांचे गैर मुस्लिम मकतूल का मुसलमान से कसास लिया गया। कबीलए बकर बिन वायल के एक शख्स ने हीरा के एक ईसाई को मार डाला।

हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु ने लिखा कि कातिल मकतूल के वरसा के हवाले कर दिया जाये। चुनांचे वह शख्स मकतूल अजीज के बदले कतल कर दिया। जिम्मी गरीब बूढे से टैक्स माफ करके उसका वजीफ मुकर्रर किया गया। नजरान के ईसाईयों से हुस्ने सुलूक किया गया। हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु के फरामीन, खुतूत, ताकीआत और खुतबे मुलाहिजा फरमायें। इस्लाम से कब्ल अरब में लिखने पढने का रवाज न था। चनांचे जब आंहजरत सल मबउस हुए तो कबीलए कुरैश में सिर्फ सत्तारह आदमी ऐसे थे जो लिखना जानते थे। हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उसी जमाने में लिखना पढना सीख लिया थां हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु के फरामीन, खुतूत तौकआत और खुतबे अब तक किताबों में महफूज हैं। उनसे उनकी कूव्वत तहरीर, बरजस्तगी कलाम और जोरे तहरीर का अंदाजा हो सकता हैं खिलाफत के बाद जो खुतबा दिया उसके चंद फिकरे ये हैंः ऐ अल्लाह, मैं सख्त हूं तो मुझे नरम कर दे, मैं कमजोर हूं, मुझे कूव्वत दे, हां अरब वाले सरकश ऊंट हैं जिनकी मुहार मेरे हाथ में दे दी गयी लेकिन मैं उन्हें रास्ते पर चलाकर छोडूंगा। आपकी कूव्वत तहरीर का अंदाजा उस खत से हो सकता है जो हजरत अबू मूसा अशअरी रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु के नाम लिखा गया था। उसके चंद फिकरे हैं, अम्मा बाद! मजबूती अमल की ये हे कि आज का काम कल पर न उठा रखो, ऐसा करोगे तो तुम्हारे बहुत से काम जमा हो जायेंगे, फिर परेशान हो जाओगे कि किसको करें ओर किसको छोड दें, इस तरह कुछ भी हो सकेगा।

जिज़्ये की वसूली में आप नरमी फरमाते। इस्लामी माखज में ये हिदायत बार बार पढने को मिलती हे कि जिज्ये के हुसूल में जिम्मियों पर जुल्म न किया जाये और तारीख की शहादत भी यही है कि मुसलमान हुक्मरानों ने नबी करीम सल के अहद मुबारक से लेकर बाद के अदवार तक उन हिदायात पर उनकी रूह के मुताबिक अमल किया। चनांचे हज़रत उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु अन्हु ने हुक्म दिया थाः उनकी ताकत से बढकर जिज्या अदा करने की उन्हें तकलीफ न दी जाये। ये एक हकीकत है कि अहद फारूक में गैर मुस्लिमों से हुस्ने सुलूक और रवादारी का मामला किया गया। उन्हें हर तरह की मजहबी और मआशरती आजादी दी गयी। बुनियादी इंसानी हुकूक का तहफ्फुज किया गया और समाजी बहबूद और अदल व इंसाफ को बुनियादी अहमियत दी गयी।