मो. आरिफ नगरामी

अदाकारी के बेताज बादशााह, शहेन्शाहे जज्बात, ट्रेजेडी किंग, दादा साहेब फालके अवार्डयाफ्ता यूसुफ खान जिन्हें पूरी दुनिया दिलीप कुमार के फिल्मी नाम से जानती है, आज सुबह अपने मालिके हकीकी से जा मिले। 98 बरस की उम्र मेें तवील अलालत के बाद इन्तेकाल फरमाने वाले बेमिसाल अदाकार के इन्तेकाल पर मुल्क सदर जम्हूरिया राम नाथ कोविन्द, वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी, वजीरे दिफा राज नाथ सिंह, कांग्र्रेस की कारगुजार सदर सोनिया गांधी, कांग्रेस के साबिक सदर, राहुल गांधी, वजीरे दाखिला अमित शाह के अलावा मुल्क के बडे और छोे सियासतदानों के अलावा फिल्मी सन्अत के हर अदाकार और अदाकारा ने दिलीप कुमार के इन्तेकाल पर गहरे रंज व गम का इज्हार करते हुये कहा है कि दिलीप कुमार के इन्तेेकाल से फिल्म इण्डस्ट्री का एक बेहद ताबनाक और रोैशनतरीन दौर का एख्तेताम हो गया। यह बात बहुत ही काबिले तहसीन है कि दिलीप कुमार के इन्तेकाल के बाद उनकी अहेलिया साएरा बानों के पास ताजियत और दिलासे का सब से पहले फोन हमारे मुल्क के वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी का पहुंचा। उन्होंने साएरा बानों को दिलासा दिलाते हुये कहा कि दिलीप साहब अदाकारी का एक बहुत बडा अदारा थे। उनके इन्तेकाल से पूरा मुल्क गमजदा और गमगीन है।

दिलीप कुमार कई महीनों से बीमार थे इस दरमियान कई बार उन को अस्पतालमें इलाज के लिये दाखिल किया गया। मम्बई का हिन्दुजा अस्पताल जहां दिलीप कमार का इलाज हो रहा था कि डाक्टर ने दिलीप साहब के इन्तेकाल पर बडे रंज व गम का इजहार करते हुये कहा कि हम लोग चाहते थे कि किसी न किसी तरह दिलीप साहब को दो साल और रोक लिया जाये और वह पूरे सौ साल पूरे कर लेें मगर भगवान के फैसलों के आगे किसी की भी नहीं चलती है।

दिलीप कुमार को दुनिया ने अफसानवी शख्सियत, शहेन्शाहे जज्बात, सुपर स्टार जैसे खिताबात से नवाजा। वह हिन्दुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब के सच्चे अलमबरदार थे। वह एक सच्चे इन्सान, इज्जतदार जज्बाती और गैरमफादपरस्त बेहद शान्दार और नफीस इन्सान थे। दिलीप कुमार साहब की शख्सियत वह अजीमुश्शन शख्सियत है जिसकी मकबूलियत अवामी सतेह पर परस्तिश की हद तक चली गयी थी।

दिलीप कुमार साहब की पैदाइश पेशावर जो कि अब पडोसी मुल्क पाकिस्तान में है मेें हुयी उनका घराना फलों के कारोबार से वाबस्ता थे। मगर दिलीप कुमार साहब की पैदाईश के बाद उनका पूरा खानदान मुम्बई मेे सुकूनत अख्तियार कर ली। आहिस्ता आहिस्ता दिलीप कुमार साहब ने अपना खानदानी पेशा छोड कर हिन्दुस्तानी फिल्म इण्डस्ट्री से वाबिस्ता हो गये। कई कामयाबं फिल्मो के बाद उनकी फिल्म ‘‘मुगले आजम‘‘ आयी जिसने बाक्स आफिस पर तमाम रेकार्ड तोड दिये। फिल्म मुगले आजम में दिलीप साहब ने शहजादा सलीम का किरदार अदा किया था और उनके सामने शहेन्शाहे अकबर का पावरफल किरदार अदाकारी के भीष्म पितामह पृथ्वी राजह कपूर ने निभाया था। दिलीप साहब फिल्म मुगले आजम से पहले तक इतने मशहूर और मकबूल नहीं हुये थे मगर फिल्म में उन्होंने शहजादा सलीम का जो रंग भरा और साथ ही साथ डाइलॉग की अदायेगी का जो बेहतरीन कारनामा अन्जाम दिया डायलॉग अदायगी और एक बागी शहजादे का उन्होंने ऐसा किरदार निभाया जिसकी तारीफ आज तक उनके मद्दाह करते है। फिल्म मुगले आजम के दोनों किरदार शहेन्शाह अकबर और बागी शहजादे सलीम का जानदार किरदार इन दोनों अदाकारों ने किया है। कहा जाता है कि अगर अकबरे आजम और शाहजादा सलीम देखते तो हैरान जदा हो जाते। फिल्म मुगले आजम वह फिल्म है जो आज भी जब सिनेमा हालों में लगती है तो हाउस फुल हो जाती है।

दिलीप कुमार साहब की पहली फिल्म ज्वार भाटा थी। जो 1944 में आयी थी। मगर 1949 मेें बनी फिल्म अन्दाज की कामयाबी ने उनको फिल्म इण्डस्ट्री के अलावा पूरे मुल्क में मशहूर कर दिया। अन्दाज मेें दिलीप कुमार ने उस वक्त के एक और सुपर स्टार राज कपूर के साथ काम किया था। 1951 में दिलीप कुमार साहब की एक और फिल्म देवदास आयी जिसने कामयाबी के सारे रिकार्ड तोड दिये । और दिलीप कुमार साहब के पास फिल्मों का एक अन्बार लग गया। मगर दिलीप कुमार ने सिर्फ उन्हीं फिल्मों में काम किया जिसकी कहानी संगीत से वह मुतमईन होते थे। वह चाहते तो आज कल के अदाकारों की तरह एक साल में कई कई फिल्में करते मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। और हमेशा अपनी मनपसंद फिल्में ही कीं। इसके अलावा दिलीप कुमार ने 1961 मेें मशहूर फिल्म ‘‘गंगा जमुना‘‘ में काम जो देहात के पसेमंजर पर बनी थी। उस फिल्म को भी दिलीप कुमार के मद्दाहों ने बहुत पसंद किया। दिलीप कुमार और विजयंती माला की शानदार अदाकारी के साथ लाजवाब संगीत ने गंगा जमुना को एक बहुत ही बडी कामयाबी दिलाई। इस फिल्म मेें लाजवाब और बेमिसाल अदाकारी के लिये दिलीप कुमार को बेहतरीन अदाकार के एवार्ड से नवाजा गया। शहेन्शाहे जज्बात की आखिरी फिल्म ‘‘किला‘‘ थी जो 1998 में बनी थी। उसके बाद दिलीप साहब ने किसी भी फिल्म में काम नहंी किया। दिलीप कुमार को बेहतरीन अदाकारी के लिये आठ बार एवार्ड से नवाजा गया। फिल्म इण्डिस्ट्री का सबसे बडा और काबिले फख्र ‘दादा साहेब फाल्के‘ एवार्ड से भी दिलीप साहब की खिदमत में पेश किया गया। 1998 में ही दिलीप कुंमार साहब को पाकिस्तान का सबसे बडा उवार्ड ‘‘निशानये इम्तियाज‘‘ से भी नवाजा गया था और ट्रैज्डी किंग दिलीप कंमार के इन्तेकाल से एक दौर का खात्मा हो गया। हिन्दुस्तानी फिल्म इण्डस्ट्री में ऐसे कम लोग आये जिन्होंने सदियों तक नाजिरीन के दिलों पर राज किया। दिलीप कुमार का जिक्र आते ही सबसे ज्यादा जिस फिल्म का जिक्र होता है वह फिल्म ‘मुगले आजम‘ है। जिसमें शाहजादा सलीम का किरदार उनकी पहचान बन गया। मुगले आजम के बाद दिलीप कुमार ने लगातार कई फिल्मों मेें गमजदा और टेªज्डी वाले किरदार किये जिसकी वजह से वह डिप्रेशन का शिकार हो गये। जिसके बाद माहिरे नफसियात ने उनको हलके फुलके और मजाहिया किरदार अदा करने का मशविरा दिया। मुगले आजम के खालिक महबूब खान ने दिलीप कुमार को डिप्रेशन से निकालने मेें बहुत मदद की। मगले आजम के बाद दिलीप कुमार बर्रे सगीर के दिलों की धडकन बन गये थे। मुगलेआजम वालीवुड की तारीख में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म साबित हुयी। और 11 सालों तक सिनेमा हालों में लगी रही। 1970 के दौर मेें दिलीप कुमार को कई नाकामियों का सामना भी करना पडा। उन्होंने पांच साल का ब्रेक ले लिया था। दरअस्ल उनकी उम्रं और नाजिरीन का बदलता मेजाज उन नाकामियों की वजह बना उसी जमाने में राजेश खन्ना नई नस्ल के दिलों की धडकन बन गये थे। 1981 में दिलीप कुमार ने फिल्म ‘‘क्रान्ति‘‘ के जरिये फिल्मों में वापिसी की। ओर क्रान्ति उस साल की सबसे ज्यादा हिट फिल्मों में शामिल थी।

दिलीप कुमार एक ऐसे अदाकर थे जो कभी फिल्मी पर्दे पर बहुत ज्यादा जज्बाती नजर आते थे। तो कभी संजीदा अदाकारी से रोते हुये लोगों को हंसा दिया करते थे। वह ऐसे अदाकार थे जिन पर उनकी अपनी साथी अदाकारायें मरती थीं। तो आम लडकियां भी उनपर जान फिदा करती थीं। फिल्म अदाकारा मधुबाला से उनके इश्क के चर्चे रहे। लेकिन किसी वजह से उनकी यह मोहोब्बत दम तोड गयी। दिलीप कमार की शख्सियत और अदाकारी की वजह से बर्तान्वी अदाकार डेविडलीन ने उन्हें फिल्म लारेंस आफ अरबिया मेें एक रोल की पेशकश की थी। लेकिन दिलीप कुमार उस आफर को शुक्रिया के साथ ठुकरा दिया था।

दिलीप कुमार ने अपने ऐन शबाब और उरूज पर फिल्म इण्डस्ट्री की ब्यूटी कुईन साएरा बानों से शादी कर ली थी। जब दोनों का निकाह हुआ तो उस वक्त सायेरा बानों दिलीप साहब से 20 साल छोटी थीं। मगर सायरा बानों ने एक बावफा और शौहर परस्त जौजा की तरह अपनी सारी उम्र दिलीप साहब की देखरेख में गुजार दी। उनकी जोडी को फिल्म इण्डस्ट्री की शानदार और सदाबहार जोडी कहा जाता है। आज भी जिस वक्त दिलीप कुमार साहब ने हिन्दुजा अस्पताल में अपनी जिन्दिगी की आखिरी सांस ली तो उस वक्त भी सायरा बानों वहां मौजूद थीं।

जिस शख्स को सायरा बानों और उनके अहले खाना ने फूलों की तरह रखा आज उन्हीं लोगों ने दिलीप कुमार को बाद नमाजे असर शान्दा क्रूज के कब्रिस्तान में मनों मिट्टी के नीचे अबदी नींद सुला दिया। दिलीप कुमार की मौत से पूरे मुल्क में गम की एक लहेर पैदा कर दी हेै। टीवी चैनलों और शोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ दिलीप कुमार की ही बातें हो रही है। दिलीप कुमार की जिस्मानी मौत हो गयी है। मग रवह हमेशा सबके दिलों में जिन्दा रहेंगें। अल्विदा अल्विदा दिलीप साहब अल्विदा।