तौसीफ कुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।जहाँ प्रदेश में चिकित्सा व्यवस्था अपनी बदहाली पर आँसू बाँह रही है ऐसे हालात में क़ाबिल चिकित्सकों को अपनी निजी द्वेष भावना के चलते बिना कोई ठोंस सबूतों के निलंबित कर बहुत से असहाय लोगों को एक अच्छी चिकित्सा से महरूम रखा जा रहा है जिसे किसी भी सूरत में सही नही कहा जा सकता है।लगभग 5 करोड़ मामलों और 13 लाख लोगों की मौतों के साथ कोरोना वायरस दुनिया भर में तबाही मचा रहा है।अगस्त 2020 की भारतीय काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR )की सीरो-सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत की 7% जनसंख्या (62 मिलियन) कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुकी है हालाँकि कोरोना पॉज़िटिव की संख्या 85 लाख और मृतकों की संख्या लगभग 1.3 लाख है।कोरोना की इस महामारी ने भारत की सामुदायिक स्वास्थ्य प्रणाली जो पहले से ही चरमरा गई थी, पतन के कगार पर पहुँचा दिया है।

भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की अव्यवस्था के कुछ बिन्दु –

  • सामुदायिक व्यय कुल सकल घरेलू उत्पाद का 1.2% है जबकि विश्व औसत 6-8 % है।
  • भारत स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता के मामले में 195 देशों में 145वें स्थान पर है।
  • भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स (G.H.I.) मे 107 देशों मे 94वें स्थान पर है।
  • भारत 153 देशों मे महिला स्वास्थ्य मामले मे 150वें स्थान पर है –जेंडर गैप इंडेक्स।
  • स्वास्थ्य सेवा का मूल पहलू – प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा बदतर हालत में है।देश में 51000 से अधिक लोगो के लिए केवल एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (अक्सर एक डॉक्टर द्वारा संचालित) है।
  • 40% लोग जो अस्पताल में भर्ती होते है उन्हे या तो आजीवन कर्ज या गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया जाता है।
  • हर रोज़ 500-1000 लोग कोविड-19 और 28000 गैर कोविड बीमारियों के कारण मर रहे है।
  • 50% बच्चे कुपोषित है .70 % महिलायें एनीमिक है।
  • भारत में 5 साल से कम आयु के 8.8 लाख बच्चो की मौत हुई है जो दुनिया मे सबसे ज्यादा है ( यूनिसेफ 2018 )
  • हर वर्ष 4.5 लाख लोग तेपेदिक से मरते है।
  • भारत मे दुनिया मे HIV से पीड़ित लोगो की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है।
  • भारत विश्व की मधुमेह रोग की राजधानी है।भारत मे 7.7 करोड़ मधुमेह रोगी है।
  • प्राइवेट सेक्टर मे देश के 58% अस्पताल और 81% डॉक्टर कार्यरत है।
  • कोविड-19 लॉकडाउन समाप्त होने के बाद मानसिक रोगियों की संख्या मे काफी बढ़ोतरी हुई है।
  • वायु प्रदूषण, सर्दी, इन्फ़्लुएंजा संक्रमण आने वाले महीनो मे कोरोना वायरस के प्रसार को तेज करेगा।

भारत भर के चिकित्सा क्षेत्र में काम करने वाले लोगो ने इस अव्यवस्था के सुधार के लिए “स्वास्थ्य एक मौलिक अधिकार“ आन्दोलन की शुरुआत की है

आइये एक-एक स्वस्थ भारत का निर्माण करें –

  • बिना किसी वित्तीय कठिनाई का सामना किए अच्छी गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच – बिना किसी जाती / धर्म / क्षेत्र / लिंग / विकलांगता / आर्थिक स्थिति के भेदभाव मुफ्त में उपलब्ध होनी चाहिए | उचित अधिनियमन के माध्यम से स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार को एक कानून बनाया जाए |
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को GDP के 5% तक बढ़ाया जाए |
  • कोविड-19 वैक्सीन आने पर सभी भारतियों को मुफ्त मे लगाई जाए।
  • आक्सीजन, पीपीई किट, आईसीयू उपकरण, मैडिसिन, सेनीटाइजर की निर्वाह आपूर्ति होनी चाहिए।
  • कोरोना योद्धाओं की मृत्यु के मामले मे तत्काल क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए।
  • निःशुल्क परीक्षण क्षमता बढ़ाएँ, कोरोना के मूल प्रसार जानने के लिए पूरे भारत में तत्काल सीरो सर्वे कराया जाए |
  • अफवाहों तथा अवैज्ञानिक बयानो पर पाबन्दी लगाया जाए |
  • सभी मौजूद रिक्तियों को भरे और हर साल नई नौकरियों का सृजन करें।
  • एनएमसी (राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ) कानून वापस लिया जाए।

डाक्टर कफील खान का 3 साल से अधिक निलम्बन

डाक्टर कफील खान को 22 अगस्त 2017 से ( 1200 दिनों ) से निलम्बित किया गया है ( बीआरडी आक्सीजन त्रासदी के बाद पहली बार और 31 जुलाई 2019 को जांच समिति द्वारा क्लीन चिट मिलने के बाद दूसरी बार ) हालाँकि सर्वोच न्यायालय का कहना है कि निलम्बन 90 दिनों से अधिक नही होना चाहिए।
बीआरडी आक्सीजन त्रासदी 10 अगस्त 2017 को हुई, जिसमे कई बच्चे मर गए जिसका मूल कारण वेंडर को बकाया भुगतान न करने के कारण तरल आक्सीजन की आपूर्ति रुकना था।सरकार की विफलता को छुपाने के लिए डाक्टर कफील खान को बाली का बकरा बनाया गया और 9 महीनो तक जेल मे रखा गया हालांकि उन्होने ने उस दिन बच्चों की जान बचाने मे कोई कसर नही छोड़ी थी .

अब हमारी चिंता यह है कि पिछले 3 सालों मे 9 अलग-अलग जांच समिति की रिपोर्ट और उच्च न्यायालय से चिकित्सा लापरवाही और भ्रष्टाचार पर क्लीन चिट मिलने के बावजूद उनका निलम्बन समाप्त नही किया जा रहा है। अन्य सभी डॉक्टर, जिन्हें उनके साथ निलम्बित कर दिया गया था, को बहाल कर दिया गया है।

विभिन्न जांच समितियां जिन्होंने से जांच की –

  • जिला मजिस्ट्रेट गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
  • आयुक्त, गोरखपुर जोन, उत्तर प्रदेश
  • महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा, उत्तर प्रदेश
  • एसजीपीजीआई, लखनऊ ,उत्तर प्रदेश
    अगस्त 2017 को केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सफदरगंज अस्पताल की टीम भेजी थी अपनी रिपोर्ट दी |
  • मुख्य सचिव मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश।
    उच्च न्यायालय ने सितम्बर 2017 मे जांच पूरी की।
  • विभागीय जांच प्रमुख सचिव स्टाम्प और पंजीकरण श्री हिमांशु कुमार द्वारा 18 अप्रैल 2019 को प्रस्तुत की गई।

डाक्टर कफील खान ने अधिकारियों को 25 से अधिक पत्र लिख कर अपना निलम्बन रद्द करने का अनुरोध किया है . रासुका निरस्त होने के बाद उन्होंने 18 सितम्बर 2020 / 13 अक्टूबर 2020 / 6 नवम्बर 2020 को लिखा है।

डाक्टर कफ़ील खान ने आइएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन), आइएपी (इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स), एनएनएफ़ (नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम), पीएमसएफ़ (प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम) और एमएससी (मेडिकल सर्विस सेंटर) को पत्र लिख कर अपने निलम्बन को ख़त्म कराने में मदद माँगी है।

हम मांग करते है कि उनके निलम्बन को तत्काल रद्द कर उनकी बहाली की जाए, कोरोना वायरस महामारी और डाक्टरों की अत्यधिक कमी को देखते हुये उन्हे देश की सेवा का मौका दिया जाए।