पुण्यतिथि (18 अक्टूबर) पर विशेष

लेखक : दीवान सुशील पुरी
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह, रोशन सिंह, अशफाकउल्ला,राजेंद्र लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल एवं अन्य क्रांतिकारियों के साथी रहे रामकृष्ण खत्री जी के पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा और मां का नाम कृष्णा बाई था | उनकी मां जंगलों में जाकर दिनभर ढाक के पत्ते तोड़कर एकत्र करती थी और अपने सिर पर ढो घर लाती थी और उन पत्तों के पत्तले व दोने बनाती थी और उसे बेच कर घर का निर्वाह करती थी । क्रांतिकारियों के संपर्क में आकर उन्होंने स्वेच्छा से “हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन” के संगठन का दायितव स्वीकार किया। उन्हें काकोरी कांड में 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा हुई थी । उन्हें पुणे से 18 अक्टूबर 1925 को गिरफ्तार करके लखनऊ लाया गया । उनको हिंदी,बंगाली,मराठी तथा अंग्रेजी की अच्छी जानकारी थी । “काकोरी शहीद स्मारक” के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही । उन्होंनें “शहीदों की छाया में” पुस्तक भी लिखी जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी।

ऐसा कोई क्रन्तिकारी नहीं है जो खत्री जी के निवास २,मेहंदी बिल्डिन्ग (कैसरबाग, लखनऊ) में ना आया हो । नायकों में से एक खत्री जी मुझे अपना पुत्र मानते थे, हम पांच का ग्रुप होता था जिसमें खत्री जी, आजाद हिंद फौज लेफ्टिनेंट एस.के.वर्धन(सुभाष चंद्र बोस के साथी), लीलाधर पर्वतीय जी(जवाहरलालनेहरू के साथी) शिक्षाविद डॉक्टर कंचन लता सभरवाल एवं मैं (सुशील पुरी) थे । जब मेरे घर का गृह प्रवेश हुआ था उसमें खत्री जी के साथ तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल वोहरा जी , स्वामी सनातन जी एवं उपर्युक्त साथी और कई क्रान्तिकारियों के वंशज भी आए थे । वे जहां भी जाते थे मुझे साथ लेकर जाते थे । खत्री जी का फोन आता था कि आज गवर्नर हाउस जाना है या फलानी जगह जाना है , तो मैं उनके साथ जाता था । जब कभी मैं बहुत व्यस्त होता था तो मना कर देता था कि आज मैं बहुत व्यस्त हूं, आज नहीं जा पाऊंगा तो खत्री जी कहते थे कि अगर तुम नहीं जाओगे तो मैं भी नहीं जाऊंगा । फिर मुझे उनके साथ जाना पड़ता था, वे बड़े ज़िद्दी भी थे । खत्री जी प्रमुख क्रांतिकारी थे , उन्होंने हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ का विस्तार किया था । मुझे वह दिन आज भी याद है, वे कहीं भी जाते थे तो उन्हें उनके निवास (कैसरबाग,लखनऊ स्थित) के खड़ी सीढ़ियों से उतारकर मैं ले जाता और वापस उन्हीं सीढ़ियों से उनके कमरे तक छोड़ता था l खत्री जी को कोल्ड ड्रिंक बहुत पसंद थी,लौटते समय ;टंडन चाट ; वाले के यहां, जो हजरतगंज स्थित डीएम ऑफिस के सामने हैं, रुक कर कोल्ड ड्रिंक जरूर पीते थे l वे धीरे-धीरे सीप कर के पीते थे और अपने साथियों के किस्से सुनाया करते थे l उनका मनोबल बड़ा सशक्त था l वे 95 वर्ष के होते हुए भी अभी जीना चाहते थे, वह कहते थे कि मैं 125 वर्ष का होकर ही प्राण त्यागूंगा l कई वर्ष पूर्व खत्री जी के साथ काकोरी में बने शहीद स्मारक स्थल पर खत्री जी के साथ के जाने का मौका मिला था, हम लोग पांचों साथ थे l

अपने साथियों की प्रतिमाओं को देखकर खत्री जी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए थे, क्योंकि उनकी शक्ल मूल अनुकृति से मेल नहीं खाती थी l इस दृश्य को देखकर हम लोग भी भाव विभोर हो गए l इस प्रकरण पर हमारा शिष्टमंडल (हम लोग पांचो) तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल वोहरा जी से मिला था l उन्होंने उसी समय सांस्कृतिक कार्य सचिव श्रीमती रीता सिन्हा को तुरंत बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि भारतवर्ष के विभिन्न संग्रहालयों एवं लाइब्रेरियों आदि से काकोरी शहीद सेनानियों के फोटो मंगा कर खत्री जी को दिखाकर काकोरी शहीद स्मारक में कांस्य की मूर्तियां उनके मूल अनुकृति के रूप में बनाई जाए, हमलोग मूर्तियों के बनवाने में प्रयत्न करते रहे, एक दिन मूर्तियां बनकर तैयार हो ही गई l खत्री जी की इच्छा थी कि उनके सामने ही मूर्तियों का अनावरण हो और यह शुभ कार्य राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जी के हाथ से हो और उसकी अध्यक्षता श्री अटल बिहारी वाजपेई जी करे , हालांकि उस समय अटल बिहारी जी प्रधानमंत्री नहीं बने थे l मुल्क से बेपनाह प्यार करने वाले बाबूजी की कुछ दिन बाद तबीयत खराब हो गई, तब मैं सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट विरमानी जी( जो रिश्ते में मेरे बहनोई लगते हैं),को देर रात खत्री जी के घर लेकर आया, उन्होंने कहा इनको हार्ट की तकलीफ नहीं है, ENT डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा,फिर सुबह ENT डॉक्टर को बुलाया गया, खत्री जी की तबीयत सुधरी नहीं और आए दिन बिगड़ती चली गई l उन्हें अस्पताल में भर्ती होने के लिए कहा गया लेकिन वह चाहते थे कि उनका इलाज घर पर ही हो, लेकिन मैंने और घर वालों ने बहुत जोर लगाया कि किसी तरह उनको अस्पताल में भर्ती करा दिया जाए, ताकि वहां पर इनका इलाज सुचारू रूप से हो , लेकिन खत्री जी को आभास हो गया था कि उनका आखरी समय आ गया है l उन दिनों राज्यपाल श्री रमेश भंडारी जी थे, वो खुद तो देखने नहीं आए लेकिन किसी सचिव को भेजा था l उस समय मैं खत्री जी के पास नहीं था ,मुझे मालूम हुआ कि सचिव ने उन्हें पीजीआई या किसी अन्य अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए कहा था लेकिन खत्री जी नहीं माने और कहा कि अगर आप मेरा इलाज करवाना चाहते हैं तो घर पर ही डॉक्टरों को भिजवा दीजिए, बस एक या 2 दिन बलरामपुर अस्पताल से डॉक्टरों की टीम आई थी, दोबारा नहीं आई l

उसके बाद प्राइवेट डॉक्टर का इलाज चलता रहा और उनकी तबीयत खराब होती चली गई और अंततः 18 अक्टूबर 1996 को हुकूमत को झकझोर देने वाले प्रसिद्ध ;काकोरी कांड; के नायक व वयोवृद्ध स्वर्गीय रामकृष्ण खत्री जी नें आंखें सदा सदा के लिए मूंद ली l खामोश विदाई ने लाखों देशभक्तों को स्तब्ध कर दिया,उनके जाने के बाद आजादी की लड़ाई के क्रांतिकारी और भारत की नई पीढ़ी के बीच पुल टूट गया l

खत्री जी का जन्म 3 मार्च, 1902 को महाराष्ट्र के जिला के बुलढाना बरार के चिखली गांव में हुआ था l खत्री जी के देहांत के बाद माननीय स्वर्गीय अटल जी प्रधानमंत्री बने l कई बार हमारी समिति का शिष्टमंडल ( जिसमें मैं भी था) आदरणीय स्वर्गीय लालजी टंडन ( तत्कालीन आवास विकास मंत्री एवं बिहार के पूर्व राज्यपाल) के माध्यम से मिला, लेकिन प्रधानमंत्री जी ज्यादा व्यस्त होने के कारण काकोरीस्मारक स्थल पर मूर्तियों के अनावरण के लिए समय नहीं दे सके l काकोरी शहीद स्थल पर क्रांतिकारियों की मूर्तियों का अनावरण प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह जी के हाथों से हो गया l लेकिन खत्री जी की अंतिम इच्छा पूर्ण ना हो सकी l अगर प्रधानमंत्री अटल जी जी के हाथों से होता तो स्वर्गीय अटल जी यश के भागी होते, और हमारे देश की भावी पीढ़ी में हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति आदर भाव उत्पन्न होता तथा देश भक्ति की लौ प्रज्वलित होती l मुझे इस समय खत्री जी का वही रोबीला चेहरा नजर आ रहा है, जो छड़ी के सहारे चलते थे l खत्री जी ने 23 जुलाई 1996 को अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस पर गांधी भवन में आखरी बार भाग लिया था ।


मुझे वो दिन याद है मेरे पास एंबेसडर कार होती थी हमलोग पांचों शहीद स्मृति समारोह समिति के तत्वाधान में क्रांतिकारियों के जो भी कार्यक्रम होते थे चाहे गवर्नर हाउस, विश्वविद्यालय,गांधी भवन या विद्यालयों आदि में हो, हम लोग कार्यक्रम के कार्ड खुद जाकर बांटते थे । कभी-कभी पत्रकार पद्मश्री बचनेश त्रिपाठी जी(पूर्व सम्पादक,राष्ट्रधर्म ) एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी जी के दोस्त भी साथ होते थे । बचनेश त्रिपाठी जी अक्सर मेरे कार्यालय में आते थे और दो घंटे जरूर बैठते थे । इस संस्था के संस्थापक रामकृष्ण खत्री जी ने मुझे उपाध्यक्ष बनाया था । खत्री जी के स्वर्गवास के बाद श्री एस के वर्धन जी ( संस्था के कोषाध्यक्ष) का भी स्वर्गवास हो गया और कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मुझे सौंप दी गई । इस संस्था के अध्यक्ष श्री सुनील शास्त्री जी( सुपुत्र स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी, भूतपूर्व प्रधानमंत्री) और महामंत्री श्री उदय खत्री जी हैं। खत्री जी की अंतिम इच्छा थी कि संस्था (;शहीद स्मृति समारोह समिति;) का नाम चलता रहे, जिससे कि युवा पीढ़ी दिशा विहीन ना हो सके और ये संस्था उनकी इच्छाओं का सम्मान बराबर देती आ रही है । खत्री जी (बाबू जी) के निधन के बाद उनकी यादें हरपल मेरे साथ रहती है ।अंततः मैं उस क्रांतिकारी को कोटि-कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

( दीवान सुशील पुरी )
बी.-13 , सेक्टर – सी ,एल.डी.ए. कॉलोनी ,
कानपुर रोड , लखनऊ -226012