राजेश सचान, युवा मंच (आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट)

राजेश सचान

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में गिरावट के बावजूद भारत में विगत 7 जून से लगातार 19 दिनों तक प्रतिदिन ईजाफा कर पेट्रोल और डीजल के दामों में 8.66 व 10.62 रू0 की बढ़ोतरी कर इन दोनों पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य 80 रू0 के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है। सरकार का तर्क है कि तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल के मूल्य का निर्धारण करती हैं इसमें उसकी कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में अगर भविष्य में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई तो पेट्रोल और डीजल के दामों में और ईजाफा हो सकता है।

2010 में पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त करने और अक्टूबर 2014 में डीजल को नियंत्रण मुक्त करने के बाद पूरी तरह से सब्सिडी खत्म करने को उदार नीतियों के पैरोकारों द्वारा ऐतिहासिक कदम बताया गया। लेकिन पेट्रोल और डीजल को उसके बेस प्राईस(वास्तविक मूल्य) में कितना मुनाफा जोड़कर बिक्री की जा सकती है, इसकी कोई नीति नहीं बनाई गई और खासकर मोदी सरकार ने राजस्व उगाही का प्रमुख जरिया बना लिया। दरअसल केंद्र और राज्य सरकार द्वारा एक्साइज व कस्टम ड्यूटी, वैट, सेस के भारी मात्रा में लगाने से ही बेस प्राईस और बाजार मूल्य में इतना ज्यादा अंतर है। आप इसे इस तरह समझ सकते हैं। वर्तमान में पेट्रोल और डीजल का बेस प्राईस कृमशः 22.11 व 22.93 रू0 है, यही वास्तविक कीमत है जबकि बाजार दर 79.76 व 79.88 रू0 के रिकार्ड स्तर पर पहंच गई है जोकि करीब 4 गुना अधिक है।

कोविड-19 महामारी के दौर में कच्चे तेल की कीमतों में हुई गिरावट पर मोदी सरकार ने प्रोपेगैंडा किया कि पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी किये बिना ही पेट्रोल और डीजल में टैक्स बढ़ा कर कोविड महामारी से निपटने के लिए संसाधनों को जुटाया जा सकता है और इस अवधि में दो बार 14 मार्च 3-3 रू0 प्रति लीटर व 5 मई को 10 व 13 रू0 प्रति लीटर पेट्रोल और डीजल पर एक्साईज ड्यूटी बढ़ा दी गई। इसी अवधि में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने भी पेट्रोल व डीजल में वैट 1.67 रू व 7.10 रू की बढ़ोत्तरी की । इसी तरह अन्य राज्यों ने भी वैट की दरों में ईजाफा इस दौर में भी किया। महामारी के इस दौर में पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स बढ़ोत्तरी से केंद्र सरकार को 1.99 लाख करोड़ को अतिरिक्त आय इस वित्तीय वर्ष में होगी। अगर राज्य सरकारों के टैक्स को भी जोड़ दें तो यह धनराशि करीब 4 लाख करोड़ से ज्यादा बैठेगी। इससे महामारी और आर्थिक संकटों से जूझ रही जनता की तकलीफों में ईजाफा होगा। दरअसल इसका प्रत्यक्ष और परोक्ष फायदा कारपोरेट्स को होगा। इसी तरह 6 साल की अवधि में मोदी सरकार ने पेट्रोल में 9.48 रू0 से बढ़ाकर 32.98 रू0 और डीजल में 3.56 रू0 से बढ़कर 31.83 रू0 एक्साइज ड्यूटी में ईजाफा किया।

दरअसल जनता पर टैक्स का बोझ डालने और कारपोरेट्स को लाखों-करोड़ की टैक्स छूट व कर्जमाफी की उदार अर्थनीति का मोदी सरकार में तेजी से ईजाफा हुआ। 2009 से 2013 तक कच्चे तेल की कीमतें आम तौर पर 100-110 डालर के ईर्दगिर्द रही। लेकिन बाद में इसमें तेजी से गिरावट दर्ज की गई। मोदी सरकार में कच्चे तेल की कीमतें औसतन 70 डालर से 40 डालर तक रही (हाल में इसमें और ज्यादा गिरावट दर्ज की गई)। लेकिन कच्चे तेल में भारी गिरावट के बावजूद पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में इस गिरावट के सापेक्ष शुरुआत में भी मामूली कमी की गई (यह कमी भी थोड़े दिन ही रही) और इसे राजस्व उगाही के बड़े अवसर में बदला गया। इस तरह मोदी सरकार में पेट्रोल और डीजल में टैक्स केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई का प्रमुख जरिया बन गया। आंकड़ों के मुताबिक 2014-15 से 2018-19 के पाच वित्तीय वर्षों (मोदी सरकार-1) में पेट्रोलियम सेक्टर से 2421912 करोड़ की कमाई हुई, जिसमें केंद्र सरकार 1471899 करोड़ और राज्य सरकारों के हिस्से में 950013 करोड़ आया। मोदी सरकार-1 में पिछले 5 साल के सापेक्ष केंद्र सरकार की पेट्रोलियम पदार्थों में अप्रत्यक्ष करों से आय तकरीबन 3 गुना बढ़ी। पेट्रोलियम सेक्टर को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग को इसी कमाई के चलते ही खारिज किया गया, लेकिन किसी भी उदार नीतियों के समर्थक ने इसकी मुखालफत नहीं की।

स्पष्ट है कि पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य तेल कंपनियों द्वारा निर्धारित करने और मूल्य वृद्धि में सरकार की दखलअंदाजी न होने का तर्क बेबुनियाद है। दरअसल पेट्रोल और डीजल की कीमतों में ईजाफा होने से मंहगाई के बेइंतहा बढ़ने का खतरा है। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर मांग यह हो रही है कि बेकारी व भुखमरी के लिए राजस्व घाटे की परवाह किये बिना संसाधनों को जुटाया जाये और मौजूदा संकट से निपटने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सभी जरुरतमंद परिवारों को 7500 रू अगले 6 महीनों तक दिया जाता। लेकिन मोदी सरकार जितना पेट्रोल और डीजल में टैक्स बढ़ा कर अतिरिक्त आय हुई, उतना भी आम जनता पर मौजूदा संकट से निपटने में खर्च करने को तैयार नहीं है। सिर्फ पेट्रोल और डीजल पर ही नहीं बल्कि आम जनता पर जिस पर पहले से ही टैक्स का भारी बोझ है पर प्रत्यक्ष/परोक्ष तरीकों से और बोझ डाला जायेगा। जाहिरा तौर पर मोदी सरकार कारपोरेट्स के हित में इस दौर में भी काम कर रही है।

पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोत्तरी हो, आर्थिक सुधारों के नाम पर सरकारी-प्राकृतिक संसाधनों को कारपोरेट्स के हवाले करना हो , इससे भविष्य में पहले से त्रस्त जनता की तकलीफों में और ईजाफा हो सकता है।