लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।बिहार चुनाव के परिणाम सेकुलरिज्म की ताल ठोंकने वाले दलों के साथ-साथ विषैली सियासत के खेवनहारों के लिए भी बहुत कुछ सबक़ दे गया है सबसे बड़ा संदेश सेकुलरिज्म के अलमबरदारों के लिए बहुत कुछ विचारणीय है जिनको हिन्दुत्व से भी लगाव है और सेकुलरिज्म का लबादा भी ओढ़े घूमते है क्योंकि इसके चलते उनके साथ एक बहुत बड़ा वोटबैंक मिल जाता है यह ऐसा वोटबैंक है जिसके लिए कुछ करो या ना करो बस वह यह देखता है कि साम्प्रदायिकता की सियासत करने वालों को कौन हरा रहा है जबकि लोकतंत्र को बचाना अकेले उसी की (यानी मुसलमान की) ज़िम्मेदारी नही है लेकिन फिर भी वह आसानी से उसके साथ चला जाता है और सियासत में अपनी हैसियत सिर्फ़ बँधवा मज़दूर की बना ली है जिसे मुसलमान कहते है।मुसलमान देश की आज़ादी के बाद के भारत में बहुत ही पीड़ादायक ज़िन्दगी जीने को विवश है यह मैं नही मुसलमानों की दिशा और दशा को मालूम करने के लिए बनी जस्टिस राजेन्द्र सच्चर कमेटी और जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्टें कहती है उन रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद रोने के अलावा कोई चारा नही बचता है यह दोनों रिपोर्ट कहती है कि भारतीय मुसलमान किस तरह से अपना जीवन व्यतीत करने को विवश है जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती है बिंदु वार एक-एक समस्या को प्रमुखता से रेखांकित किया गया है कि कैसे मुसलमान दलितों से बत्तर हालात जी रहा है ना शिक्षा का स्तर है ना विकास का स्तर ना स्वास्थ्य सुविधा ना ही सियासी सलीक़ा , साज़िशन भीड़तंत्र का हिस्सा बनाकर रख दिया गया है या बना दिया गया है।मुसलमान अपने इस हालात का एक हिसाब से खुद भी ज़िम्मेदार है उसने अपने बौद्धिक विकास को मार दिया अपना ज़मीर गिरवी रख दिया है और जिसका ज़मीर मर जाए या गिरवी रखा जाए उसका कोई उद्गार नही कर सकता है।मुसलमान ने आज़ादी के बाद से आज तक अपनी आईडियोलोजी में अपनी कयादत का ज़िम्मा किसी मुसलमान को नही दिया उसकी सियासी कयादत अभी तक हिन्दू नेताओं ने ही की है नाम अलग-अलग हो सकते है लेकिन कोई मुसलमान नही था अब क्या वजह है कि असदउद्दीन ओवैसी क्यों उभर रहे है इसके क्या कारण है इस पर भी गौर फ़िक्र होना चाहिए इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण है उस पर चर्चा करने के बजाय असदउद्दीन ओवैसी को मिस्टर जिन्ना के नाम से नवाज़ा जा रहा है मैं असदउद्दीन ओवैसी का समर्थन नही कर रहा हूँ लेकिन उन फ़र्ज़ी ठेकेदारों की आलोचना भी होनी चाहिए जो मुसलमानों का वोट पाकर सियासत तो करना चाहते है लेकिन उनकी समस्याओं को गंभीरता से नही लेना चाहते उससे बचते है जब वह आपको अपनी कयादत मानता है तो उनकी समस्याओं को कौन उठाएगा उसकी लड़ाई लड़ने के लिए अमरीका से कोई नेता नही आएगा जब लड़ाई लड़ने या कुछ देने का नंबर आता है वह भल जाते है अपने उस बँधवा मज़दूर को जिसकी पीठ पर बैठकर वह सियासी बुलंदियों को छू रहे है।हिन्दुत्व ने इतना ज़हर फैला दिया कि आज कोई नेता मुसलमान का नाम लेना भी गवारा नही समझता अल्पसंख्यक कहकर सम्बोधित करते है स्टेजों पर मुसलमान को नही बैठाया जाता है कब तक मुसलमान इस अपमान को सहेगा ? असदउद्दीन ओवैसी का उदय सेकुलर और साम्प्रदायिक नेताओं की वजह से हो रहा है न कि ओवैसी की वजह से यही सच है।यूपी में पिछले तीस पैंतीस साल से मुसलमान सपा कंपनी को पसंद करता चला आ रहा है लेकिन सपा ने मुसलमान को देने के नाम पर कुछ नही दिया देना तो दूर की बात है उसको सुरक्षा भी नही दे पायीं मुज़फ़्फ़रनगर दंगे इसकी जीती जागती मिसाल है।यादव-यादव खेलते थे जिनकी संख्या सात प्रतिशत है और मुसलमान की संख्या बाइस प्रतिशत है परन्तु मुसलमान के नाम लेने वाला कोई नही था।ओवैसी की पार्टी पिछले कई वर्षों से अपना सियासी फ़न फैलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसे सियासी स्पेस नही मिल रहा था उसे स्पेस मिलने की आस जगी 2014 में जिस तेज़ी से साम्प्रदायिकता ने मज़बूती से अपना विस्तार किया उसके बाद सेकुलर सियासत करने वाले सियासी दल किनारे होते चले गए जब सेकुलर दलों ने सही बात कहनी बंद कर दी उसके बाद असदउद्दीन ओवैसी को ख़ाली रास्ता मिला और वह अपनी सियासी गाड़ी उस रास्ते लेकर निकल पड़े अब जो मुसलमान अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा था या है उसने असदउद्दीन ओवैसी को पसंद करने की शुरूआत कर दी है हालाँकि पूरी तरह से मुसलमान अभी भी असदउद्दीन ओवैसी को पसंद नही कर रहा है क्योंकि आज भी जो मुसलमान अपने आपको जागरूक समझते है या है वो विरोध कर रहे है हो सकता है उनका विरोध जायज़ हो परन्तु ओवैसी को कोसने से क्या होगा कोसना उन्हें चाहिए जिन्होंने ओवैसी को ख़ाली स्पेस दिया दौड़ने के लिए लेकिन अब इतना कहा जा सकता है कि शुरूआत हो चुकी है जिसमें मुसलमान की ग़लती नही है इसके ज़िम्मेदार वह सियासी नेता है जो मुसलमानों के वोटबैंक को अपने साथ लेकर चलने की सियासत करते थे या है उन्होंने क्यों उनकी आवाज़ बनना बंद कर दिया ? क्यों उनका नाम लेना बंद कर दिया ? नरेन्द्र मोदी असदउद्दीन ओवैसी के लिए काफ़ी मुफ़ीद साबित हो रहे है यह भी एक सच है।संघ ने लगातार यह दुष्प्रचार किया कि सेकुलर दलों की सरकारों में मुस्लिम तुष्टिकरण किया जा रहा है जिसे बहुसंख्यकों ने सही मान लिया और बहुसंख्यक साम्प्रदायिक होता चला गया जबकि यह सच नही था अगर यह सच होता तो मुसलमान अपना जीवन दलितों से बदतर जीने को विवश नही होता जस्टिस राजेन्द्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट इसकी दलील है।मुसलमानों पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाना बेबुनियाद है एक मिसाल बताए सियासी विशेषज्ञ कि कब मुसलमान ने साम्प्रदायिकता को पसंद किया आज़ादी के बाद मिस्टर जिन्ना का विरोध करने वाला मुसलमान साम्प्रदायिक हो ही नही सकता अगर वह साम्प्रदायिक होता तो वह बँटवारे के समय मिस्टर जिन्ना के साथ खड़ा होता लेकिन वह राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ,प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू , डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद व मौलाना अबुल कलाम आज़ाद आदि सरीखे नेताओं के साथ खड़ा था उनके साथ क़दमताल कर रहा था।आज मुसलमान क्यों साम्प्रदायिक हो रहा है इसकी वजह सेकुलर दल और साम्प्रदायिकता का फ़न फैलाकर सियासत करने वाले दल ज़िम्मेदार है न कि मुसलमान और ओवैसी,इसको बहुत गंभीर होकर सोचने की ज़रूरत है न कि असदउद्दीन ओवैसी को कोसने से काम चलेगा क्यों उसको ख़ाली स्पेस दिया ? यह बात चिंता की भी है और चिंतन की भी।नरेन्द्र मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही कुछ इस तरह के मसलें उठाए जिसके बाद मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पैदा होती चली गई चाहे वह तीन तलाक़ का मसला रहा हो या राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला रहा हो हालाँकि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला एक हिसाब से बाबरी मस्जिद के हक़ में आया है क्योंकि कोर्ट ने यह नही माना कि बाबरी मस्जिद मंदिर तोड़कर बनाई गई थी मस्जिद में मूर्ति रखने को भी ग़लत माना मस्जिद को तोड़ना (शहीद) करने को ग़लत माना जिसको ग़लत तरीक़े से साम्प्रदायिक दल या संगठन दुष्प्रचार करते थे कि ज़बरदस्ती मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायी गईं थी कोर्ट ने इसको पूरी तरह नकार दिया रही बात बहुसंख्यकों की इन सब मसलों से उनको क्या मिला यह भी विचारणीय है क्या सिर्फ़ हिन्दू मुसलमान करने से उनका जीवन यापन चल जाएगा? ।फिर एनआरसी एनपीआर का मामला खड़ा कर दिया इन सब इश्यू पर मुसलमानों के हिन्दू सियासी रहनुमा ख़ामोशी की चादर ओढ़े सौ गए मुसलमान उनकी तरफ़ को बड़ी आशा भरी नज़रों से देखते रहे लेकिन उनकी नींद जगने को तैयार नही थी।जबकि एनआरसी और एनपीआर का मुद्दा मुसलमानों में भय उत्पन्न कर रहा था मुसलमान निराश हताश होकर अपनी लड़ाई खुद लड़ने के लिए विवश हुआ जब असदउद्दीन ओवैसी उनकी आवाज़ बन रहा था और उनके दिलो में घर बना रहा था।जो मुसलमान असदउद्दीन ओवैसी को पसंद कर रहे है शायद उन्हें लगता है जब हारना ही है तो ओवैसी को वोट देकर हारा जाए कम से कम वह हमारी आवाज़ तो बनेगा ? दूसरी बात जिस मुखरता के साथ साम्प्रदायिकता का ज़हर लिए मोदी की भाजपा हिन्दुओं की सिर्फ़ बात करती है और करती कुछ नही वैसे ही ओवैसी भी मुसलमानों की आवाज़ बन रहे है जिस मज़बूती के साथ संसद से लेकर सड़क तक अपनी बात रखते है मोदी की भाजपा की साम्प्रदायिकता और सेकुलर दलों की ख़ामोशी की वजह से ओवैसी मुसलमानों की पसंद बनते जा रहे है।अगर आप संसद में ओवैसी का भाषण सुनेंगे तो संवैधानिक तरीक़े से इतना खरा भाषण किसी भी सरीखे नेता का नही लगेगा।वह यह काम पिछले कई सालों से कर रहे है संसद में बोलने का उनका अंदाज सियासी कला से भरपूर्व होता है।उनका संसद में दिया गया भाषण मुसलमानों के साथ-साथ हिन्दू समाज के पढ़े लिखें लोगों में भी आशा की किरण जगाता है।जिस हिन्दू नेतृत्व पर मुसलमान विश्वास करता था उसने उसे निराश किया है और वह उसके हितों की रक्षा करने में फ़ेल रहा है इस लिए ओवैसी में भारतीय मुसलमान अपना भविष्य देखने लगा है।अब किसी के हिसाब से यह ग़लत हो सकता है लेकिन सख़्त हिन्दुत्व और सॉफ़्ट हिन्दुत्व की बात करने वालों को क़तई हक़ नहीं है कि वह ओवैसी को या मुसलमान को ग़लत कहें यह कहाँ का इंसाफ़ हुआ कि हम करे तो ठीक और मुसलमान व ओवैसी करे तो ग़लत सबको साथ लेकर चलने में यह कहाँ लिखा है कि जनेऊ पहन कर प्रदर्शन करूँ कि मैं पक्का हिन्दू हूँ आपने अपनी आईडियोलोजी को त्याग दिया फिर उसके परिणाम ऐसे ही आते है जैसे आ रहे है मुझे या इस सोच को मानने वालों को इन परिणामों को देखकर कोई हैरत नहीं होती है।