पटना से तौसीफ़ क़ुरैशी

पटना।लोकतंत्र में चुनाव भी ऐसा मेला या उत्सव होता है कि इस मेले या उत्सव में शामिल क्या नेता क्या अभिनेता जनता जनार्दन के दरबार हाज़िरी लगाने को बेताब रहता और जनता भी ख़ूब आनन्द लेती है लेकिन अगर जनता भावनाओं में बहकर वोट करती है तो फिर रोती भी जनता ही है पूरे पाँच साल।बिहार चुनाव के बाद क्या परिणाम निकलकर सामने आएँगे यह कहना तो अभी जल्द बाज़ी होंगी क्योंकि बिहार चुनाव की मतगणना दस नवंबर को की जाएँगी ज़ाहिर सी बात है यह तभी साफ़ हो पाएगा कि पूरे चुनाव के बाद यह परिणाम आएँ है।हाँ इतना ज़रूर है कि दस नवंबर तक क़यासों का दौर चलता रहेगा जो चल भी रहा है।हालाँकि पटना-सीएसडीएस-लोकनीति का ओपिनियन पोल आया है जैसा हर चुनाव से पूर्व आते है आरोप है कि यह सब कुछ ख़ास दलों के हक़ में माहौल बनाना का मक़सद होता है उसी के चलते ओपिनियन पोल होते हैं उसी के अनुसार बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को 133-143 सीटें मिलने का अनुमान है बताया जा रहा है जबकि आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को 88-98 सीटें मिलना दिखाया गया हैं।चिराग पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी (एलजेपी) को महज 2-6 सीटों पर विजयी होना दिखाया है।अन्य दलों को ओपिनियन पोल में 6-10 सीटें दी गई हैं।जबकि ज़मीनी हक़ीक़त कुछ ओर ही इसारा कर रही है उसको देखकर ओपिनियन पोल बेमानी लगता है।इसी को ध्यान में रखते हुए हमने भी बिहार के चुनाव को लेकर मंथन कर निष्कर्ष निकालने की कोशिश की आम लोगों से बात कर यह जानने की कोशिश की कि आखिर बिहार चुनाव किस तरफ़ जा रहा क्या उसी रास्ते जा रहे जिस रास्ते 2014 से चुनावी परिणाम आ रहे है या बिहार उस रास्ते से अलग रास्ता चुन रहा हैं जिसके बाद वह पूरे देश को यह संदेश देगा कि 2014 वाला रास्ता देश के लिए ठीक नही है और ना ही जनता के लिए ठीक है।हालाँकि बिहार चुनाव 2014 के आमचुनाव में वही खड़ा था जहाँ अधिकांश देश खड़ा था लेकिन उसके अगले साल यानी 2015 के विधानसभा चुनाव में वह अलग संदेश दे रहा था उसी बिहार ने जदयू ,राजद व कांग्रेस गठबंधन को सरकार बनाने का जनादेश दिया था लेकिन बीच में नीतीश कुमार ने अपनी आदत के मुताबिक़ पलटी मारते हुए मोदी की भाजपा के साथ चले गए थे जनता ने जो जनादेश मोदी की भाजपा के ख़िलाफ़ दिया था वह ख़त्म हो गया था और सरकार भाजपा के सहयोग वाली बन गई थी।वही उसके बाद उसने 2019 के आमचुनाव में फिर वही परिणाम दिए जैसे उसने 2014 में दिए थे 39 लोकसभा सीट एनडीए को दे दी थी।ख़ैर इस बार विधानसभा चुनाव है पहले चरण का चुनाव 3 नवंबर को होगा।अब सवाल उठता है कि क्या बिहार से मोदी मय होने वाले परिणाम आने वाले है या पंद्रह साल के स्वयंभू सुशासन बाबू नीतीश कुमार और केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के जनविरोधी कार्यों का भी असर होगा जैसे लॉकडाउन के बाद सबसे ज़्यादा प्रभावित बिहार के लोग थे क्योंकि वह दो जून की रोटी के लिए देश के विभिन्न राज्यों में रहता है अचानक लगाए गए लॉकडाउन से वही राज्य और उसके वासी सबसे ज़्यादा परेशान हुए थे खाने पीने के भी लाले पड़ जाने के बाद वह अपने घरों की ओर पैदल ही निकल पड़े थे यह पूरे देश ने देखा कोई सवारी न होने की वजह से कैसे सड़कें भर-भर कर चल रही थी भूखे प्यासे कोई उनकी सूद लेने वाला नही था अगर देश के लोग सामने न आते उनकी मदद को तो हालात और भयावह होते इसके बाद भी बहुत लोगों ने लॉकडाउन के चलते भूखों प्यासों अपनी जान गँवा दी।पूरे लॉकडाउन सरकारों का रवैया सकारात्मक नही था प्रवासी मज़दूरों को छोड़ दिया था उनके हाल पर मरने के लिए सिर्फ़ बयानबाज़ी चलती रही सरकारों के द्वारा जो कुछ करना चाहिए था वह कुछ नही कर पायीं चाहे वह केन्द्र की मोदी सरकार हो या राज्यों की सरकारें सब लीपा पोती करती रही यही सच है कहने को कुछ भी कह लिया जाए।क्योंकि वो मंज़र आज भी अगर याद आ जाता है तो संवेदनशील व्यक्ति के शरीर में कंपन आ जाती है यह बात अपनी जगह है।क्या लॉकडाउन का दर्द इस विधानसभा चुनाव में बाहर निकलकर आएगा ? रही बात बेरोज़गारी की ,महँगाई की , गिरती जीडीपी की , शिक्षा की , सड़कों की , विकास की ,विदेश नीति की केन्द्र की सरकार हर विषय पर विपक्ष फ़ेल क़रार देता है जो किसी हद तक सही भी है यह अपनी जगह है।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूरा ज़ोर इस बात पर है कि बड़े बुजुर्ग नौजवानों को इस बात को समझाएँ कि पंद्रह साल पहले हमने कैसा बिहार लिया था और आज कैसा है इस बात पर वह इस लिए ज़ोर दे रहे है क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल राजद के नेता और मुख्यमंत्री पद के दावेदार पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अपनी हर सभा में यही एलान कर रहे है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहला क़लम राज्य के दस लाख नौजवानों को सरकारी नौकरी दिलाने पर चलाएँगे यह बात राज्य के नौजवानों को उनकी तरफ़ आकर्षित कर रही है जिसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाँपकर बुजुर्गों से यह अपील कर रहे है कि वह नौजवानों को समझाएँ कि वह ऐसा ना करे अब वह कौनसा बुज़ुर्ग होगा जो यह नहीं चाहेगा कि उसका लल्ला सरकारी नौकरी पर ना लगे।नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव शुरूआती दौर में भारी पड़ता दिख रहा है।हालाँकि अभी चुनाव में धार्मिक तड़का भी लगना बाक़ी है क्योंकि अभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह , केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय मंत्री नितिन गड़करी, मोदी की भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित क्षेत्रीय नेताओं की सभाएँ होनी बाक़ी है इनके प्रचार में उतरने के बाद क्या कुछ बदलाव होगा यह अभी देखना बाक़ी है।विपक्ष की ओर से अभी फ़िलहाल राष्ट्रीय जनता दल के नेता एवं मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव ही सत्ता पक्ष से लोहा लेते नज़र आ रहे है और सत्ता पक्ष पर भारी दिख रहे है।विपक्ष की ओर से कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी,पूर्व प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह, कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री यूपी की प्रभारी श्रीमती प्रियंका गाँधी, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी , झारखंड राज्य के कांग्रेस प्रभारी पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुंवर आरपीएन सिंह , इंक़लाबी शायर इमरान प्रतापगढी सहित बहुत बड़ी फ़ौज प्रचार करने ज़मीन पर उतरेगी तब क्या होगा क्या तेजस्वी यादव और मज़बूत होंगे या ये सब कुछ काम नहीं आएगा।तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ रही जबरदस्त भीड़, राजद ने बताया बदलाव का संकेत है राजद सुप्रीमो लालू यादव की अनुपस्थिति में तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान अपनी सभाओं में तेजस्वी यादव केंद्र सरकार पर तो निशाना साध ही रहे हैं, लेकिन उनका मुख्य निशाना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं।बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार में पूरे जोरशोर से जुटे हुए हैं।अपनी पार्टी की तरफ से चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे है तेजस्वी यादव प्रतिदिन छह से भी ज्यादा चुनावी सभाएँ कर रहे हैं, जिनमें कोरोना संकट के बावजूद लोगों की भारी भीड़ दिखाई दे रही है।इस भीड़ को देखकर राजद सहित महागठबंधन के सभी दल उत्साहित हैं और इसे बदलाव का संकेत बता रहे हैं।राजद के नेता तेजस्वी यादव ने मंगलवार को भी नौ चुनावी सभाओं को संबोधित किया। इसमें भोजपुर, औरंगाबाद, गया, जहानाबाद और पटना जिले के कई विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इससे पहले सोमवार को भी तेजस्वी यादव ने गया और नवादा में छह चुनावी सभाओं को संबोधित किया था, जहाँ हर जगह लोगों की भारी भीड़ देखी गई।राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी भी कहते हैं कि बिहार में नीतीश सरकार से लोग नाखुश हैं और लोग एक युवा मुख्यमंत्री की चाहत में तेजस्वी यादव के साथ जुट रहे हैं। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि रैलियों में भीड़ से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह भीड़ तेजस्वी यादव को सुनने पहुँच रही है।राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, यही कारण है कि तेजस्वी यादव पूरे दमखम के साथ चुनावी प्रचार में जुटे हैं।वैसे, तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव के लिए प्रचार में जाने के पहले 10 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा कर यह संकेत दे दिया था कि अपनी चुनावी सभाओं में वे बेरोजगारी को प्रमुख मुद्दा बनाएंगे। चुनावी सभाओं में उमड़ रहे जनसैलाब को लेकर कहा भी जा रहा है कि इसी मुद्दे के कारण लोग, खासकर युवा उनसे जुड़ रहे हैं।वैसे, चुनावी सभाओं में भीड़ को देखकर राजद के नेता जरूर उत्साहित हैं, लेकिन यह भीड़ वोट के रूप में कितना बदलेगी,यह तो 10 नवंबर को चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन फ़िलहाल की स्थिति में इतना तो तय है कि तेजस्वी यादव की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही है जो नीतीश कुमार और मोदी की भाजपा के माथे पर पसीना लाने के लिए काफी है।कुल मिलाकर बिहार चुनाव के शुरूआती दौर में सत्तारूढ़ पार्टी पर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भारी पड़ते नज़र आ रहे है अब यह बात अलग है कि क्या यही बढ़त चुनाव के आखिर तक जारी रहेगी।