तौसीफ़ क़ुरैशी

पूर्व मंत्री और 18 वीं विधानसभा के वरिष्ठतम विधायक मौहम्मद आज़म खां को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम ज़मानत मिल गई है। ज़मानत मिलने के बाद अब प्रदेश की सियासत सहित सपा में भी उथल-पुथल होंगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. यह बात सपा के मालिक अखिलेश यादव को अहसास हो रहा है इसी ध्यान में रखते हुए कुछ सपा के नेताओं को भेजा गया था जेल में मिलने लेकिन आज़म खां ने बैरंग लौटा दिया था।

हमारे सूत्र बता रहे हैं कि मौहम्मद आज़म खां के साथ सपा ने जो रवैया अख़्तियार किया उसको वह ऐसे ही भूल जाएंगे यह नहीं हो सकता है उनको जो क़रीब से जानते हैं वह ये ज़रूर जानते हैं कि जेल से बाहर आने के बाद वह ऐसा कोई क़दम ज़रूर उठाएँगे जिसे सपा कंपनी को सियासी नुक़सान उठाना पड़े। उनके सियासी हमदर्दों ने कहना शुरू कर दिया है कि अखिलेश यादव मुसलमानों से नफ़रत करते हैं आज नहीं पहले से ही। वैसे देखा जाए तो सपा कंपनी ने आज़म खान के साथ ही सौतेला व्यवहार नहीं किया है जितने भी मुस्लिम लीडर रहे हैं सबको निपटाने का काम किया। इस तरह के दर्द को अपने दिल में लिए मुसलमानों ने फिर भी विधानसभा चुनाव 2022 में भरपूर वोट दिया लेकिन अखिलेश यादव मुसलमानों से लगातार दूरी बनाए रखना ही ज़रूरी समझते हैं न उनके मुद्दों पर बोलना चाहतें है और न ही उनके लीडरों को पनपने देना चाहतें है।अखिलेश यादव अपने कुछ जनाधार विहीन दोस्तों के साथ ही रहना पसंद करते हैं.

पूर्व एमएलसी उदयवीर सिंह अभी हुए एमएलसी के चुनाव में अपना नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर पाए उनके साथ हुई मारपीट में उनका कुर्ता तक फट गया था और वह कोई विरोध नहीं कर पाए थे. टिकटों के बँटवारे में वहीं सबसे आगे-आगे रहते थे यही हाल सुनील साजन ज़मानत नहीं बचा पाए एमएलसी संजय लाठर ये वो कुछ नाम हैं जो सपा कंपनी पर कुंडली मारे बैठे हैं और सपा को ख़त्म करने पर उतारू हैं। सपा के मालिक अखिलेश यादव इसी मंडली के सहारे यूपी की सत्ता प्राप्त करना चाहते थे जो पूरा न हो सका जबकि मुसलमानों ने अपने अपमान को सहन करके हिम्मत से ज़्यादा बम्पर वोट दिया जबकि यादव उस तादाद में वोट नहीं कर पाया जैसी उससे अपेक्षा की जाती है।

ख़ैर सपा के मालिक अखिलेश यादव ने मौहम्मद आज़म खां के मामले को लेकर ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया जिससे कहा जा सके कि सपा ने अपने नेता की रिहाई के लिए लड़ाई लड़ी है जबकि यह बात सर्वविदित थी कि आज़म खान पर जो भी मुक़दमे दर्ज किए गए हैं वह राजनीति से प्रेरित हैं फिर भी सपा के मालिक ख़ामोशी की चादर ओढ़ कर सोते रहे। आज़म खां के मुद्दे पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अखिलेश यादव नहीं चाहते कि आज़म खां बाहर आए सियासी जानकारों का कहना है कि आज़म खां को लेकर सपा नेतृत्व और भाजपा नेतृत्व दोनों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है।अब सवाल उठता है कि जब सपा मुसलमानों की आवाज़ नहीं उठा सकती फिर उसके वोटबैंक बने रहने का क्या मतलब है, क्यों न यूपी का मुसलमान किसी नए सियासी समीकरण पर विचार करे ?

इस आठ साल में मुसलमानों का क्या सियासी रूख होना चाहिए और क्या है और उससे कितना नुक़सान हुआ है यह तो सिखाया ही है और अगर यह सीख कर भी बँधवा मज़दूर ही बना रहे तो उसका इलाज नहीं है ? आज़मगढ़ के उपचुनाव में मुसलमानों को सपा के मालिक को आइना दिखा देना चाहिए ? हमारे सूत्रों के मुताबिक़ आजमगढ़ लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव के द्वारा इस्तीफ़ा दिए जाने के बाद वहाँ उपचुनाव होने हैं और पार्टी वहाँ से सपा के मालिक अखिलेश यादव की पत्नी पूर्व सांसद डिम्पल यादव को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही हैं। यादव परिवार की यह ख़ासियत रही हैं पहले मेरा परिवार फिर अपनी जाति यादव (जो मौक़ा पड़ने पर धार्मिक धुर्वीकरण का शिकार हो जाती हैं) उसके बाद अपने जनाधार विहीन दोस्त फिर अन्यों का नंबर आता हैं। रही बात आज़म खान और अन्य मुस्लिम नेताओं की अगर उनकी अंतरात्मा ज़िन्दा हैं तो वह विचार ज़रूर करेंगे कि उनका अगला सियासी क़दम क्या होना चाहिए यह सवाल सियासी गलियारों में तैर रहा है।