इंडिया डायबिटीज स्टडी (आई.डी.एस.) ने खुलासा किया कि भारत में नए1 टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस (टी2डीएम) के 55 प्रतिशत से अधिक रोगियों में एचडीएल–सी (उच्च घनत्व लिपिड – कोलेस्ट्रॉल) वैल्यू कम है, जिससे यह पता चलता है कि उनके जीवन काल में उन्हें किसी न किसी तरह के हृदय रोग होने का खतरा अधिक है। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि सभी टी2डीएम (T2DM) रोगियों में से 42% को उच्च रक्तचाप का अधिक खतरा है। रोगियों का मीन बीएमआई 27.2 दर्ज किया गया था – जिसे इंडिया कंसेंसस ग्रुप के दिशानिर्देशों के अनुसार अधिक वजन के रूप में वर्गीकृत किया गया था।


एरिस लाइफसाइंसेज द्वारा समर्थित और 2020 -2021 के बीच 16 डॉक्टरों द्वारा सह-लेखित, यह अपने तरह का पहला राष्ट्रव्यापी अध्ययन 1900 से अधिक चिकित्सकों के सहयोग से किया गया और यह भारत के 27 राज्यों के 48 वर्ष की औसत आयु के साथ 5080 रोगियों पर किया गया। इसे पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस (पीएलओएस) जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

एलएआई (LAI) और क्यूआरआईएसके3 (QRISK3) स्कोर2 की हालिया सिफारिशों के बाद, इस अध्ययन का उद्देश्य भारत में नए निदान किए गए T2DM रोगियों में हृदय रोग (CVD) के जोखिम की जांच करना था। इसने पहचान किये गये नये टाइप 2 डायबिटीज रोगियों में डिस्लिपिडेमिया (Dyslipidaemia) – उच्च कोलेस्ट्रॉल (वसा) – का प्रबंधन करने के कुछ तरीकों को भी रेखांकित किया गया।

पहचान किये गये नये टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस रोगियों के संबंध में इस अध्ययन के अन्य मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

• कुल रोगियों में से 92.5% और 83.5% रोगी कोलेस्ट्रॉल को कम करने और उच्च-रक्तचाप को नियंत्रित रखने के लिए कोई भी उपचार नहीं करा रहे हैं
• निम्न एचडीएल-सी वैल्यू सबसे अधिक प्रमुख जोखिम (55.6%) था
• 82.5%रोगियों में कोलेस्ट्रॉल संबंधी कम से कम एक असामान्यता दिखाई दी
• 37.3% रोगी उच्च रक्तचाप से ग्रस्त थे और उनकी आयु 65 वर्ष से कम थी
• क्यूआरआईएसके3 (QRISK3) गणना के अनुसार, वर्तमान आबादी में मोटापे से ग्रस्त मरीजों में सीवीडी का खतरा 17.1 प्रतिशत है, जबकि निम्न बीएमआई वाले लोगों में यह जोखिम 14.8 प्रतिशत है
• 11.2% रोगियों में टार्गेट ऑर्गन डैमेज था – जो 3b या उच्चतर चरण की पुरानी गुर्दे की बीमारी है

चेल्लाराम डायबिटीज इंस्टीट्यूट, पुणे के सीईओ और चीफ ऑफ एंडोक्राइनोलॉजी और आईडीएस के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ एजी उन्नीकृष्णन ने कहा, “इंडिया डायबिटीज स्टडी के जरिए पूरे भारत के नए मधुमेह रोगियों में कार्डियोवैस्कुलर जोखिम कारकों को चिह्नित किया गया। जबकि उपचार में खान-पान में बदलाव, शारीरिक गतिविधि और ग्लूकोज नियंत्रण पर जोर दिया जाना चाहिए, इसके अलावा रक्तचाप नियंत्रण और लिपिड प्रबंधन जैसे उपायों से कार्डियोवैस्कुलर जोखिम को कम करना एक अधिक समग्रतापूर्ण प्रबंधन तरीका है – जैसा कि इंडिया डायबिटीज स्टडी में भी सुझाव दिया गया है।”

डॉ आरके सहाय, एंडोक्राइनोलॉजी विभाग, उस्मानिया मेडिकल कॉलेज, उस्मानिया जनरल अस्पताल, हैदराबाद, एंडोक्राइनोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट और इस शोध अध्ययन के सह-लेखक ने कहा, “मधुमेह रोगियों में एथेरोस्क्लेरोटिक कार्डियोवैस्कुलर बीमारी का बहुत अधिक खतरा होता है। ग्लूकोज नियंत्रण के साथ, रहन-सहन और खान-पान संबंधी नियम का कठोरता से पालन महत्वपूर्ण है जिसमें लिपिड के स्तर को कम करने का उपचार भी शामिल हो, ताकि सीवीडी के खतरे को कम किया जा सके। अध्ययन से एक और महत्वपूर्ण बात जो सामने आई है, वह है भारतीयों का बढ़ा हुआ औसत बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स)। शारीरिक गतिविधि और आहार नियंत्रण मधुमेह को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ”

एरिस लाइफसाइंसेज के वाइस प्रेसिडेंट, मनीष कपूर ने कहा, “एरिस पुरानी बीमारियों पर भारत-केंद्रित अध्ययनों के माध्यम से कार्रवाई योग्य चिकित्सा प्रमाण तैयार करने में सबसे आगे रहा है। वर्ष 2019 में किए गए इंडिया हार्ट स्टडी के बाद, इंडिया डायबिटीज स्टडी इस दिशा में एक और कदम है। यह अध्ययन भारत के नये T2DM रोगियों की आबादी में देखे गए सीवीडी जोखिम कारकों को समझने के लिए डिज़ाइन किया गया था। हमारा दृढ़ विश्वास है कि ये अंतर्दृष्टि भारत में टाइप 2 मधुमेह के निदान और प्रबंधन में चिकित्सा विशेषज्ञों का मार्गदर्शन करेगी।”