आसिफी मस्जिद के नाएबे इमामे जुमा मौलाना सैय्यद सरताज हैदर ज़ैदी ने माहे रमज़ान के पहले जुमे के ख़ुत्बे में माहे रमज़ान-उल-मुबारक की अज़मत और फ़ज़ीलत बयान करते हुए कहा कि माहे रमज़ान-उल-मुबारक इबादत और गुनाहों से पाक होने का महीना हैं। मौलाना ने कहा कि मोमिन के बहुत से सिफ़ात बयान किये गए हैं लेकिन कुछ मख़सूस सिफ़ात इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स ने बयान किये है। इमाम ने फ़रमाया कि मोमिन वही हैं जिसकी कमाई पाकीज़ा, अख़लाक़ अच्छा और बातिन सही हो। ज़रूरत से ज़्यादा माल को राहे ख़ुदा में ख़र्च कर दे। बिना ज़रूरत कलाम न करें। लोग उसके शर से महफूज़ रहें। और वो लोगों से अज़ ख़ुद इंसाफ करें। मोमिन वो है जो हर एक की मदद करें। अपना खर्च कम रखें और आर्थिक हालात सुधारने की तदबीर करे। एक जगह से दो बार दोखा न खाये। अलबत्ता मोमिन के बहुत से सिफ़ात बयान किये गए हैं। मगर माहे रमज़ान में मोमिन के मक़सूस सिफ़ात बयान किये गए हैं। मौलाना ने रोज़ेदार की अज़मत बयान करते हुए कहा कि हदीसें क़ुदसी में आया हैं कि रोज़ा मेरे लिए है और मैं इसकी जज़ा ख़ुद अपने दस्ते क़ुदरत से से दूंगा या इसकी जज़ा मैं ख़ुद हूँ।

मौलाना ने इफ़्तार की अज़मत बयान करते हुए पैग़म्बर-ए-अकरम (स.अ.व) की हदीस के हवाले कहा कि जो शख़्स हलाल ख़ुरमे से रोज़ा इफ़्तार करें उसकी नमाज़ का अज्र व सवाब चारसौ नामज़ो के बराबर हो जायेगा। ये हलाल ही हैं जो इंसान को इंसानियत पर बाक़ी रखता हैं। अगर इंसान हलाल पर अमल नहीं करेगा तो वो जानवरों की तरह कही भी मुँह मरने लगेगा। इस लिए हलाल चीज़ों पर ज़्यादा हंगामा करना दुरुस्त नहीं हैं ,इन मसाएल को दुरुस्त तरीक़े से समझा जाये।

ख़ुत्बे के आख़िर में मौलाना ने ईरान के शहर मशहद में इमाम रज़ा अ.स के रौज़े में उलेमा-ए-कराम पर एक तकफ़ीरी शख़्स के ज़रिये किये गए हमले की सख़्त अलफ़ाज़ में निंदा की। मौलाना ने कहा कि अफ़सोस है इमाम रज़ा अ.स के रौज़े में एक शख़्स चाक़ू ले कर हमलावर हुआ मगर पूरी दुनिया ख़ामोश रही। लेकिन जब कोई योरोप में या किसी दूसरे मुल्क में कोई पागल शख़्स चाक़ू के ज़रिये हमलावर होता हैं तो पूरी दुनिया मज़म्मत करती हैं और सड़कों पर एहतेजाज करने के लिए निकल आती हैं। जब तक ये दोहरा मेयार बाक़ी रहेगा इंसानियत का तहफ़्फ़ुज़ मुमकिन नहीं।

नमाज़ में नमाज़ियों ने देश में अम्न ओ अमान के लिए दुआए की, साथ ही दुनिया में फ़ैली हुई बद नज़्मी और बद अमनी के ख़ात्मे के लिए भी दुआए की गयी।

वाज़ेह रहे कि मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी अलालत की बुनियाद पर नमाज़े जुमा की इमामत नहीं कर रहे हैं। उनकी जगह पर मौलाना सरताज हैदर ज़ैदी मुसलसल नमाज़े जुमा पढ़ा रहे हैं।