मोहम्मद आरिफ नगरामी

इन्सान अपनी जिन्दगी की रेनाईयों इसकी दिल फरीबों और उसकी शादाबियों दो आजेदों में यह भूल जाता है कि यह नेमतों कुदरत की अता करदा और उसकी फियाजियों की मजहर है। परवरदिगार आलम ने अपनी इस सफत आलिया को तमाम आलमें इन्सानी के लिए बिला तखसीस आम किया है जाड़ों में धोप की गरमी गरमियों में हवाओ के खनक व नरम और लतीफ झोके और बारिश के मौसम में आसमान से रहमतों का नुजूल सबके लिए है अल्लाह की वहदानियत पर यकीन व इमान रखने वाला भी उससे मुस्तफीज होता है औश्र उसकी रबोनियत औश्र उसकी कुदरत कामला का इन्कार करने वाला भी उनसे महरूम नही रहता। सूरा फातिहा की पहली आयत का आगाज ही यही से होता है जिसमें अल्लाह ताला ने खुद को रब्बुल आलमीन फरमाया और उसकी के साथ अपने महबूब इमामुल अनबिया रहमतुल मुरसलीन जनाब मोहम्मद रसूल स.अ. को रहमतुल लिल आलिमीन फरमा कर सारी दुनिया के लिए आपकी जात व शख्सियत का भी इसी तरह तारूफ करा दिया कि जिसने माना उसके लिए भी रहमत और जिसने नही माना इसके लिए भी रहमत अल्लाह ने अपने महबूब के लिए यह मकाम अजीम महफूज रखा था। रवायतों के मुताबिक एक लाख चौबीस हजार अमबिया किराम अपने-अपने वक्त में इसी महबूब की आमद का एलान करते रहे। और यह खुशखबरी सुनाते रहे कि वह तशरीफ लाने वाले है जिनके तुफैल में कायनात बनाई और सवारी गयी है। खुद इन्सान की तखलीक और अर्ज व मस के मजहर इसी जहूर कुदसी के मरहूने मन्नत है।


यह अकीदा जुज व इमान है कि अगर अल्लाह ने अपने महबूब की तशरीफ आवरी का फैसला न फरमाया होता तो कायनात भी अपने वजूद से महरूम रह जाती इसी लिए सच्चे यकीन व एतमाद के साथ इमान का तकाजा समझ कर इसी का एलान व इकरार करना चाहिए। कि अल्लाह ने उस कायनात को जो हुस्न अता फरमाया था इन्सानी जहन व फिक्र में अखज व कुबूल की जो सलाहियतें रखी थी। और खजाना कुदरत से लुत्फ अन्दोज होने का जो जजबा उसे मरहमत फरमाया था उसका कोई मुजाहेरा न होता अगर उस दुनिया में आकाये दो जहां स.अ. सरवरे कायनात तशरीफ न लाते और आखरत के सबक आमूर फिक्र व तसव्वर में सारे तसव्वरात की आमेजिश और उन तमाम मफाहिम पुर कामिल यकीन के बाद इन्सानों की फलाह व बहबूद और उनकी बुनियादी राहतों के साथ आखरी नजात इस तरह रोशन न होते और इन्सान गुमराहों मे भटक कर अपना वजूद खो बैठता इकबाल ने मीलादे आदम में जो कुछ कहा है उसके माने व मतलब में यह तसव्वर कार फरमा है इसी लिए मै। अकसर यह सोचता हूं कि अगर इकबाल की पूरी फिक्र और शायरी के रजहान व व अन्दाज को एक जुमले में बयान करना हो तो यह कहा जा सकता है। इशके रसूल स.अ. की सरपस्ती का दूसरा नाम इकबाल की शायरी है।


मेरे लिए फख्र की बात है कि मेरे हकीकी मामू हजरत मौलाना शकील अब्बासी साहब नदवी मरहूम व मगफूल को जिन्हे मैने जजब व सुलूक की मंजिलों मं इस तरह देखा है कि अजनबी देखकर डर जाता अहम न नात की नेमतों के साथ यह अन्दाजे फिक्र व रूजहान उन्हे हुआ था कि उनकी पचास साला शायरी का तर्जुबा किया जाये तो यह बात नुमाया होती है कि उस कायनात की तखलीक उस में इन्सान का वजूद उसके मजाहर कुदरत अरज व समाल की वसअतें और उसकी दिलफरेब रेनाईयां और उनमें पोशीदा खालिके कायनात के पैगामात की तखलियां सब कुछ बसअते मोहम्मदी का सदका है


न दरिया की मौजो में होती रवानी
न बहता समंद्र में बेथाह पानी
न दुनिया न दुनिया की जलवह फशानी
न यह जिन्दगानी न वह जिन्दगानी
मोहम्मद स.अ. न होते तो कुछ भी न होता


नात की रूहानी मंजिलो में वह अपनी शख्सियत को खो बैठे और फिर अल्लाह ताला ने उन्हे अपनी अैार अपने महबूब की हमदो सना की वह सआदत नसीब फरमाई जिसके आगे सब कुछ हेच है वह दारूल उलूम नदवतुल उलमा में हजरत मौलाना अली मियां मदजल्ला ताला से आगे थे मौलाना ने फरमाया कि उनकी यह नात हम लोग झूम झूम कर पढ़ते थे और इस मिस्रे पर एक कैफियत तारी हेा जाती थी कि मोहम्मद स.अ. न होते तो कुछ भी न होता। खुद मौलान को बहुत दिनो बादम यह मालूम हो सकता कि यह नात मौलाना शकील अब्बासी नदवी मरहूम की है।


रबी-उल अव्वल के इस माह मुबारक मंे अकीत के तौर पर हकीकत को जहनो में ताजा करने के साथ उसके उस पहलू को भी मलहूज रखना चाहिए कि सरकार कायनात स.अ. ने नबूवत की मुखतसर हयात तैयबा में अपने असवा हुस्ना की रहमनुमाई में जो इलकलाब आजम बरपा किया उसकी मिसाल इबतेदाए आफरनीश से लेकर उस वक्त तक जब यह दुनिया आखरी सांस लेकर गुम हो जायेगी। पेश नही की जा सकती हजरात खुलफाए राशदीन और सहाबा किराम जिन्होने चश्म नबूवत के साये में और आपके दस्त मुबारक पर इस्लाम कुबूल किया उन्होने अपनी बोरिया नशीनी के आगे बड़ी सल्तनतों को खम कर दिया। उन्होने अल्लाह के रसूल स.अ. के हुक्म पर हिदायत की रोशनी में खुद अपनी जिन्दगियों में गैर मामूली तागीर व तबदील का मुजाहेरा किया और मजमुई तौर पर उनकी रूहानी खिदमात व सफाअते आलिया से एक ऐसा पाकीजा मुकददस और बरगजीदा मआशरह वजूद में आया जिस की बिना पर दुनिया को हयात इन्सान का मकसद समझ में आया तौहीद का तसव्वर उजागर हुआ रिसालत और आखरत का हकीकी मफहूम वाजेह हुआ।